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आपका अपने पैसे के साथ रिश्ता क्या कहलाता है?

जरूरत और शौक या लग्जरी में भी फर्क होता है. अक्सर हम अपनी कुछ लग्जरी को जरूरत का नाम दे देते हैं.

आपका अपने पैसे के साथ रिश्ता क्या कहलाता है?

Sunday July 24, 2022 , 3 min Read

हर कोई चाहता है कि वह अमीर हो, ढेर सारा पैसा हो ताकि वह जो मर्जी खरीद सके, खा-पी सके, जहां चाहे जा सके. सरल शब्दों में खुल कर खर्च कर सके. मेरी तमन्ना भी यही है. लेकिन वह मुहावरा तो आपने सुना ही होगा कि ‘उतने पैर पसारिए, जितनी लंबी चादर’... बस मैं भी इसी मुहावरे के हिसाब से चलना पसंद करती हूं. खर्च बजट में रहे, कोशिश यही रहती है और साथ में सेविंग्स बढ़ाने के बारे में भी सोचती रहती हूं. ऐसे में इस चीज पर भी नजर रहती है कि कहां फिजूलखर्ची हो रही है, जहां मैं कटौती कर बचत कर सकती हूं.

लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि मैं कंजूस हूं. भई, किफायत से खर्च करने और कंजूसी में फर्क होता है. जरूरत की हर चीज खरीद ली जाती है, हां लेकिन बजट पर न चाहते हुए भी गौर करना पड़ता है. इसी तरह जरूरत और शौक या लग्जरी में भी फर्क होता है. अक्सर हम अपनी कुछ लग्जरी को जरूरत का नाम दे देते हैं. बस यहां थोड़ी समझदारी से काम लेने की जरूरत है.

खैर... पैसों के साथ अपने रिलेशनशिप पर आते हैं. मिडिल क्लास फैमिली से ताल्लुक रखते हैं तो हाथ को थोड़ा बांधकर खर्च करना बचपन से ही आ चुका है. जरूरत और लग्जरी में भी काफी हद तक फर्क कर लेते हैं. साथ ही कुछ दिल के बेहद करीब शौकों पर खर्च भी करते हैं. जैसे कि रिस्ट वॉच. बचपन से ही रिस्ट वॉच का शौक है तो 12 वर्ष की उम्र से रिस्ट वॉच पहन रहे हैं. लोकल हो या फिर ब्रांडेड...एक रिस्ट वॉच तो हमेशा रही है. अब जब खुद कमा रहे हैं तो इस शौक को रिस्ट वॉच की संख्या में इजाफा करके लेकिन अपने बजट के अंदर रहते हुए पूरा किया जा रहा है.

सच तो यह है कि मुझे पैसे खर्चना पसंद है. जो चाहूं, झट से ले लूं, ऐसी ख्वाहिश मेरी भी है. जरूरी चीजों के लिए खर्च करते वक्त बजट पर गौर न करना पड़े, यह चाह मेरी भी है. लेकिन मुझे उधार लेना पसंद नहीं, इसलिए अपने खर्चों पर लगाम कसने की, कहां फिजूलखर्ची हो रही है, यह जांच पड़ताल करने की, सेविंग्स करने और उसे बढ़ाने की कवायद जारी रहती है. वित्तीय अनुशासन का थोड़ा बहुत पालन मैं कर लेती हूं. खर्चे मेरे हाथ से निकल न जाएं और मैं कर्ज के जाल (Debt Trap) में न फंस जाऊं, इस डर से क्रेडिट कार्ड भी नहीं रखती हूं. कभी-कभी तो यह भी सोचती हूं कि जब से कैशलेस पेमेंट स्टार्ट किया है, UPI, पेमेंट ऐप्स की सहूलियतें मिली हैं तब से शायद हाथ ज्यादा खुल गया है. कुछ लेना चाहा, कैश नहीं है तो झट से फोन निकाला, खट से पेमेंट किया और चीज अपनी. लेकिन यह छोटे-मोटे खर्च तक ही सीमित है, जैसे कि खाने-पीने की चीजें.

खैर...पूरे लेखे-जोखे का सार यह है कि पैसे और मेरा अभी तक का रिश्ता, नियंत्रित तरीके से खर्च करने, वित्तीय अनुशासन बरकरार रखने और बचत की कोशिश में लगे रहने का रहा है. अपनी जरूरतों और शौकों को पूरा करने, मेडिकल इमर्जेन्सी के लिए पर्याप्त फंड जुटाए जाने, फ्यूचर के लिए सेविंग्स की कोशिश जारी है. साथ में बजट में आ सकने वाले शौक भी धीरे-धीरे पूरे करने की कोशिश है. लेकिन यह कवायद भी जारी है कि वित्तीय अनुशासन बरकरार रहे और उधार लेने की नौबत न आए.  

तो भई, यह तो था मेरे पैसों के साथ मेरा रिश्ता...आपका, आपके पैसों के साथ कैसा रिश्ता है...