जब हवाई रेस के बीच JRD टाटा ने दिखाई स्पोर्ट्समैनशिप... यूं की कॉम्पिटीटर की मदद और जीत लिया दिल
रेस का भारत से इंग्लैंड या इंग्लैंड से भारत का रूट एक दुष्कर रूट था, जिसमें ईराक, मिस्र और बसरा के उमस भरे रेगिस्तानों, दलदलों पर कई दिनों तक अकेले उड़ान भरनी थी.
यह किस्सा उस वक्त का है, जब JRD टाटा महज 25 साल के थे. भारत में एविएशन और फ्लाइंग को लोकप्रिय बनाने के लिए शिया इमामी इस्माइली मुस्लिम्स के स्प्रिचुअल लीडर महामहिम आगा खान (Aga Khan) ने 1930 में एक अनूठी हवाई रेस (Air Race) की घोषणा की. भारत, बंटवारे से पहले वाला भारत था. घोषणा कुछ इस तरह थी...
‘आगा खान ने रॉयल एयरो क्लब के माध्यम से भारतीय राष्ट्रीयता के व्यक्ति द्वारा इंग्लैंड से भारत के लिए या फिर भारत से इंग्लैंड के लिए पहली उड़ान के लिए 500 ब्रिटिश पाउंड के पुरस्कार की पेशकश की है. यह एक एकल उड़ान होनी चाहिए, जो उड़ान शुरू होने की तारीख से छह सप्ताह के भीतर पूरी हो. यह पुरस्कार 1 जनवरी 1930 से एक वर्ष के लिए खुला रहेगा.’
इस हवाई रेस की खबर जैसे ही जेआरडी टाटा तक पहुंची, उन्होंने झट से इसमें शामिल होने का फैसला कर लिया. जेआरडी टाटा भारत के पहले लाइसेंस प्राप्त पायलट थे. उन्होंने उस वर्ष की शुरुआत में ही अपना फ्लाइंग लाइसेंस प्राप्त किया था. उन्हें एयरो क्लब ऑफ इंडिया और बर्मा द्वारा लाइसेंस जारी किया गया था. रेस का भारत से इंग्लैंड या इंग्लैंड से भारत का रूट एक दुष्कर रूट था, जिसमें ईराक, मिस्र और बसरा के उमस भरे रेगिस्तानों, दलदलों पर कई दिनों तक अकेले उड़ान भरनी थी. उन वर्षों के छोटे बाई प्लेन्स को देखते हुए पहले पहुंचने की दौड़ में रास्ते में कई स्टॉप-ओवर्स भी शामिल थे.
रेस के तीन प्रतियोगी
रेस में जेआरडी टाटा के साथ दो अन्य लोगों ने भी हिस्सा लेने का फैसला किया. एक थे मनमोहन सिंह, जो रावलपिंडी की एयरोनॉटिकल ट्रेनिंग के साथ एक उत्साही सिविल इंजीनियर थे. दूसरे थे एस्पी मेरवान इंजीनियर, जो एक तेजतर्रार युवक थे और जिन्होंने कराची में अपना फ्लाइंग लाइसेंस प्राप्त किया था. एक रेस, तीन दावेदार और बड़ा सवाल...आखिर जीतेगा कौन? मनमोहन सिंह और एस्पी इंजीनियर ने इंग्लैंड से भारत के लिए उड़ान भरने का फैसला किया, जबकि जेआरडी टाटा ने कराची से इंग्लैंड के लिए. उन्होंने कराची से शुरुआत करते हुए इंग्लैंड में क्रॉयडन हवाई अड्डे तक पहुंचने का लक्ष्य रखा. मनमोहन सिंह ने अपने प्लेन को नाम दिया ‘मिस इंडिया’.
रेस के अपने-अपने संघर्ष...
दुर्भाग्य से मनमोहन सिंह के प्रयास सफल नहीं हुए. रेस के दौरान एक बार वह दक्षिणी इटली में एक पहाड़ी सड़क पर घने कोहरे में खो गए और उनका विमान बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया. उन्होंने बहादुरी से काम लिया लेकिन एक और प्रयास में उन्हें मार्सिले के पास एक दलदल में जबरन उतरना पड़ा. वे अंततः भारत पहुंच तो गए लेकिन निर्धारित समय में रेस पूरी नहीं कर सके.
अब जानते हैं दूसरे प्रतियोगी के बारे में. दूसरे प्रतियोगी एस्पी इंजीनियर 25 अप्रैल 1930 को अपने सेकेंड हैंड डेहैविलैंड जिप्सी मोथ बाय.प्लेन में इंग्लैंड से चले. वह केवल 17 वर्ष के थे. उन्होंने बहुत अच्छी तरह से उड़ान भरी लेकिन दोषपूर्ण स्पार्क प्लग के कारण उन्हें बेंगाजी में लीबिया के ऊपर इंजन में कुछ परेशानी का सामना करना पड़ा. एस्पी अपने मैकेनिकल और इंजीनियरिंग स्किल्स के लिए अच्छी तरह से जाने जाते थे और इसलिए इन समस्याओं के बावजूद वह मिस्र में अलेक्जेंड्रिया के पास अबूकिर हवाई पट्टी तक पहुंच गए.
यहां एस्पी ने अपना विमान खड़ा किया और तुरंत अच्छी स्थिति वाले स्पार्क प्लग की तलाश शुरू कर दी ताकि वह आगे उड़ सकें. उस दूर-दराज के स्थान में यह एक आसान खोज नहीं थी और स्पार्क प्लग्स को उन तक पहुंचने में कई दिन लग सकते थे. परिणाम बेशकीमती समय निश्चित तौर पर नष्ट होने वाला था
JRD टाटा कहां थे..
अब बात करते हैं रेस के तीसरे प्रतियोगी जेआरडी टाटा के बारे में. जेआरडी ने 3 मई 1930 को Gyspy Moth G-AAGI विमान में कराची से उड़ान भरी थी. ईरान के तट पर एक छोटे, गर्म और धूल भरे शहर जस्क की ओर उड़ान भरने के दौरान उन्हें जोरदार हेडविंड का सामना करना पड़ा. वहां वह रात भर रुके और फिर ईराक के बसरा की ओर रवाना हुए. वह थोड़ा सा भटक गए और बसरा पहुंचने के लिए उन्हें लिंगोह के उत्तर में नमक के दलदल से दोगुना वापस जाना पड़ा. बसरा से उन्होंने बगदाद की ओर उड़ान भरी और फिर आगे काहिरा की ओर बढ़े.
रास्ते में उनके दोषपूर्ण कंपास ने उन्हें फिर से भटका दिया और वह हाइफा में एंथिल्स से ढके एक पुराने, प्रथम विश्व युद्ध की अप्रयुक्त हवाई पर उतर गए. लेकिन वह इस गलती से जल्द ही उबर गए और काहिरा पहुंचे, जहां उन्हें अबूकिर हवाई पट्टी पर उतरने के लिए रीडायरेक्ट किया गया. दूसरे शब्दों में वह अलेक्जेंड्रिया के पास उसी हवाई अड्डे पर पहुंच गए, जहां एस्पी इंजीनियर ने स्पार्क प्लग्स की तलाश में कुछ समय के लिए अपना विमान खड़ा किया था.
JRD टाटा और उनकी स्पोर्ट्समैनशिप
जेआरडी टाटा ने अपने बायोग्राफर आरएम लाला को बताया था, ‘अलेक्जेंड्रिया में सुबह 7 बजे मैंने देखा कि एक और मोथ वहां पार्क्ड है और अंदाजा लगाया कि यह एस्पी इंजीनियर होना चाहिए.. जब उसने सुना कि मैंने लैंड किया है तो वह मुझसे मिलने के लिए हवाई अड्डे पर आया. मैंने उससे पूछा कि वह वहां क्या कर रहा है. उसने बताया कि वह कुछ स्पेयर प्लग्स की प्रतीक्षा कर रहा है क्योंकि उसने स्पार्क प्लग्स का एक्स्ट्रा सेट साथ नहीं लिया था. यह बहुत अच्छी योजना नहीं थी! चूंकि मेरा हवाई जहाज था 4 सिलेंडर वाला था और मेरे पास आठ स्पेयर प्लग थे तो मैंने उसे उनमें से चार दे दिए. वह इतना प्रसन्न और आभारी था कि उसने जोर देकर कहा कि मैं उससे कुछ लूं. उसने मुझे अपना मे वेस्ट लाइफ जैकेट दिया. उसके पास एक मे वेस्ट था, लेकिन कोई स्पार्क प्लग नहीं था!’
कौन जीता रेस
तो आगे हुआ यूं कि फंसे हुए एस्पी इंजीनियर ने अपने प्रतिद्वंद्वी जेआरडी से स्पार्क प्लग प्राप्त किए, अपने विमान को ठीक किया और भारत की ओर उड़ान भरी. जेआरडी भी तेजी से आगे बढ़े लेकिन नेपल्स में उन्होंने और समय गंवा दिया, जहां वह देर शाम एक सैन्य हवाई क्षेत्र में उतरे थे. वहां सख्त सैन्य नियमों के कारण उन्हें उड़ान भरने की अनुमति प्राप्त करने के लिए सैन्य कमांडेंट का इंतजार करना पड़ा और चार मूल्यवान घंटे गंवाने पड़े. इसके बाद उन्होंने रोम और पेरिस की ओर असमान रूप से उड़ान भरी और फिर पेरिस से इंग्लैंड में क्रॉयडन के लिए अंतिम चरण की उड़ान भरी. जब तक जेआरडी पेरिस में लैंड हुए, तब तक एस्पी इंजीनियर भारत में कराची पहुंच चुके थे और आगा खान पुरस्कार जीत चुके थे. जेआरडी टाटा ने यह हवाई रेस 2 घंटे 30 मिनट से गंवा चुके थे.
...प्रतियोगी बन चुके थे दोस्त
रेस खत्म करने के बाद जब जेआरडी टाटा कराची एयरपोर्ट लौटे तो वहां एस्पी इंजीनियर उनसे मिले और उनका एक प्लाटून के साथ औपचारिक स्वागत किया. साथ में रेस जीतने में मदद के लिए उन्हें एक विशेष पदक भी दिया. इस रेस के 27 साल बाद यानी 1957 तक जेआरडी टाटा और एस्पी इंजीनियर अपने करियर और जीवन में काफी वृद्धि कर चुके थे. जेआरडी टाटा टाटा समूह के चेयरमैन बन गए थे और एस्पी इंजीनियर भारतीय वायु सेना में शामिल होकर एयर-वाइस मार्शल तक बने चुके थे. कुछ साल बाद एस्पी, भारतीय वायु सेना का नेतृत्व करने वाले दूसरे भारतीय बन गए. एस्पी इंजीनियर ने जेआरडी टाटा को भारत की पहली एयरलाइन एयर इंडिया की 25वीं वर्षगांठ पर बधाई देने के लिए एक लेटर लिखा था. इसे जेआरडी ने 1932 में स्थापित किया था. जेआरडी उनके लेटर से बहुत प्रभावित हुए. 19 अक्टूबर 1957 को उन्होंने एस्पी को लिखे जवाब में कहा था...मैंने आगा खान प्रतियोगिता में आपको कम से कम कम नहीं आंका था...मैंने आपको एक प्रतियोगी के रूप में इतनी गंभीरता से लिया कि मैंने कम से कम एक दिन और बिताया. विमान में सब कुछ और यात्रा से जुड़ी हर चीज की जांच करने में. उस हवाई रेस में उस दिन अबूकिर में जो हुआ वह जेआरडी टाटा के जीवनी लेखक आरएम लाला द्वारा खूबसूरती से वर्णित है.
नहीं हुआ पछतावा
जेआरडी टाटा ने ऑल इंडिया रेडियो को एक इंटरव्यू में यह किस्सा बताया था. जब उनसे पूछा गया कि क्या उन्हें रेस हारने का पछतावा है, तो उन्होंने कहा था कि यह कुछ ऐसा है, जो उन्हें लगता है कि कोई भी और होता तो करता. इसी के लिए तो खेल हैं. अगर आपमें स्पोर्ट्समैनशिप नहीं है तो फिर क्या मतलब?
(यह अंश टाटा सन्स में ब्रांड कस्टोडियन हरीश भट्ट की The Race नाम की लिंक्डइन पोस्ट और tata.com पर इस रेस के बारे में मौजूद जानकारी से लिया गया है.)