पोलियो ने व्हीलचेयर पर बिठा दिया तो टेबल टेनिस से बना दिया नया कीर्तिमान
सुवर्णा के अनुसार ‘समाज को अभी विकलांगों के प्रति जागरूक और संवेदनशील होने की आवश्यकता है। आज भी लोग विकलांगों को लेकर टिप्पणी करते हैं, ऐसे लोगों का माइंडसेट एक गंभीर मुद्दा है।‘
सुवर्णा राज आज देश की जानी-मानी अंतर्राष्ट्रीय पैरा एथलीट हैं, इसी के साथ वह दिव्यांग समूह के अधिकारों की लड़ाई के साथ ही समाजसेवा का काम भी करती हैं। 37 साल की सुवर्णा नागपुर से आती हैं, हालांकि फिलहाल वे नई दिल्ली में रह रहीं हैं।
सुवर्णा राज जब महज दो साल की थीं तब ही उन्हे पोलियो ने जकड़ लिया। पोलियो के चलते सुवर्णा के दोनों पैरों ने काम करना बंद कर दिया और उनका लगभग 90 प्रतिशत शरीर इसकी चपेट में आ गया।

राष्ट्रपति द्वारा 2014 में राष्ट्रीय रोल मॉडल पुरस्कार प्राप्त करती हुईं सुवर्णा
किया चुनौतियों का सामना
सुवर्णा को पोलियो होने के बाद उनका पूरा परिवार असहाय सा हो गया था। उनके परिवार के अनुसार एक लड़की का विकलांग हो जाना उसके जीवन में कठिनाइयों का एक बड़ा सा पहाड़ खड़ा देता है लेकिन सुवर्णा ने अपने लिए कुछ और ही सोच रखा था। सुवर्णा ने लिए शुरुआती दौर में सबसे बड़ी मुश्किल उनकी शिक्षा के रूप में सामने आई।
सुवर्णा ने अपनी कमजोरियों को कभी अपने सपनों के आड़े नहीं आने दिया और खुद को खेल की तरफ मोड़ा। उनकी लगातार मेहनत और लगन का नतीजा था कि सुवर्णा ने टेबल टेनिस में देश का प्रतिनिधित्व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर किया और इसी के साथ वह दिव्यांगजनों के अधिकारों के लिए भी लड़ना शुरू कर दिया।
अपने पति और दोस्तों से मिलने वाले समर्थन के बारे में बात करते हुए सुवर्णा कहती हैं, ‘मैं अपने खेल प्रति जुनूनी रही हूँ और मुझे किसी भी चीज ने नहीं रोका है। हमारे समाज को इस क्षेत्र में अभी और अधिक रोल मॉडल की आवश्यकता है।‘
सुवर्णा ने नागपुर विश्वविद्यालय से बीकॉम, बी.एड और एम.कॉम की पढ़ाई की है और दिल्ली की इग्नू से MSW की डिग्री ली है।
खेल में गाड़े झंडे
खेल की तरफ अपने रुझान को बरकरार रखते हुए सुवर्णा ने शुरुआत पावर लिफ्टिंग से की थी, लेकिन अब उन्हे लोग टेबल टेनिस चैंपियन के रूप में पहचानते हैं। साल 2014 में सुवर्णा ने कोरिया में हुए एशियाई पैरा खेलों में हिस्सा लिया था, इसके पहले साल 2013 में हुई थाईलैंड पैरा टेबल टेनिस ओपेन प्रतियोगिता में सुवर्णा ने दो मेडल भी झटके थे।

2013 की गणतन्त्र दिवस परेड में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के साथ सुवर्णा
उनके इस बेहतरीन प्रदर्शन को देखते हुए साल 2013 में ही तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी द्वारा नेशनल वीमेन एक्सलेन्स अवार्ड से भी नवाजा गया था।
सुवर्णा नकारात्मक्ता से खुद को दूर रखने का प्रयास करती हैं। उनके अनुसार शुरुआत में कई लोग उनकी शारीरिक स्थिति पर कमेन्ट कर उन्हे पीछे घसीटना चाहते थे लेकिन सुवर्णा की लगन और मेहनत के चलते वे लोग इसमें सफल नहीं हो सके।
अधिकारों की लड़ाई
सुवर्णा लगातार देश में दिव्यांगजनों को मिलने वाली सेवाओं और सुविधाओं को लेकर एक सक्रिय आलोचक की भूमिका अदा करती रही हैं। साल 2017 में दिल्ली से नागपुर की ट्रेन में उन्हे अपर बर्थ दे दी गई थी और टीटीई ने भी उनकी मदद से इंकार कर दिया था, जिसके बाद उन्होने खुल कर इसका विरोध जताया था।
सुवर्णा के अनुसार ‘समाज को अभी विकलांगों के प्रति जागरूक और संवेदनशील होने की आवश्यकता है। आज भी लोग विकलांगों को लेकर टिप्पणी करते हैं, ऐसे लोगों का माइंडसेट एक गंभीर मुद्दा है।‘