यह कौन लोग हैं जो डेढ़ लाख रुपये का छाता लगाकर भी भीग जाएँगे?
Gucci और Adidas फ़ैशन और स्पोर्ट्स की दुनिया के बड़े और महँगे ब्रैंड्स हैं. इन दोनों कम्पनियों ने लगभग डेढ़ लाख रुपये का एक ऐसा छाता चीन के बाज़ार में बेचने के लिए निकाला है, जो बारिश से नहीं बचाता. आईये समझते हैं इस पर क्यूँ हो रही है इतनी बहस सोशल मीडिया पर.
Gucci और Adidas फ़ैशन और स्पोर्ट्स की दुनिया के बड़े और महँगे ब्रैंड्स हैं. इन दोनों कम्पनियों ने जब लगभग डेढ़ लाख रुपये का एक ऐसा छाता चीन के बाज़ार में बेचने के लिए निकाला जो बारिश से नहीं बचाता तो सोशल मीडिया पर हंगामा होना ही था. चीन के सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म Weibo पर एक दिन में इससे जुड़ा हैशटैग को 14 करोड़ लोगों ने देखा. उसके बाद google, twitter पर ट्रेंड करने लगा. सब बड़े छोटे टीवी चैनलों, अख़बारों, वेबसाइटों ने इस पर स्टोरी की. Gucci की वेबसाइट पर इसके विवरण में लिखा गया कि इसका उपयोग बारिश से नहीं धूप से बचाने के लिए या सजावट के लिए किया जाना चाहिए. आइये समझते हैं कि आख़िर मसला क्या है?
क़ीमत कोई मुद्दा ही नहीं है
जितने भी लोग Gucci और Adidas की आलोचना कर रहे हैं वो इस बात के लिए नहीं कर रहे हैं कि यह छाता महँगा है. इससे ज़्यादा महँगे छाते, और घड़ियाँ, और जूते और टायलट क्लीनर बहुत सारे हैं. ग़ुस्सा इस बात पर है कि यह बारिश से नहीं बचाता, कि यह वाटरप्रूफ़ नहीं है. यानि लोग सुपर लग्ज़री और फ़ैशन ब्रांड्स के प्रॉडक्ट से भी यह उम्मीद करते हैं कि उनकी एक मिनिमम उपयोगिता [utility] हो. और यह उम्मीद ही ग़लत है. यह छाता या ऐसा कोई भी प्रॉडक्ट ख़रीदने वाला कोई भी इंसान उन्हें उपयोगिता के लिए नहीं ख़रीदता. तो फिर क्यूँ ख़रीदते हैं?
स्टाईल स्टेटमेंट
पिछेल साल 9.6 अरब यूरो यानि क़रीब 825 अरब रुपये कमाने वाली Gucci 101 साल पुरानी कम्पनी है. उसने हमेशा अमीरों के लिए प्रॉडक्ट्स बनाये हैं. उन्हें पहनना, उन्हें own करना हमेशा से एक स्टाईल स्टेटमेंट रहा है. Gucci और Adidas दोनों ऐसे ब्रांड हैं जो अपने कंज़्यूमर को डिफ़ाइन करते रहे हैं. उनको यूज करने वालों की पहचान उनकी वजह से बनती है. जब कोई Gucci और Adidas पहनता है तो वो अपने अमीर दोस्तों से कहता है कि मैं तुम सबसे अलग और बेहतर हूँ क्यूँकि अमीर तुम भी हो पर तुम्हारी स्टाईल और टेस्ट मेरे जितने अच्छे नहीं है.
मिडल क्लास की हसरत
हमने अभी तक स्टडी तो नहीं किया कि इस छाते का मज़ाक़ उड़ाने वाले किस वर्ग से आते हैं. लेकिन यह अनुमान लगाना मुश्किल नहीं कि ज़्यादातर मिडल क्लास के होंगे. गरीब लोग सोशल मीडिया पर न हैं न उनको वक्त है इन बातों पर ग़ुस्सा होने का. उनकी अपनी ज़िंदगी में ग़ुस्सा करने के लिए बहुत कुछ है.
और मिडिल क्लास के लिए हर लग्ज़री ब्रांड एक हसरत है. “कोई एक दिन ऐसा होगा जब मेरे पास आई फ़ोन होगा, मैं रे बेन के चश्में पहनूँगा, मर्सीडीज ख़रीदूँगा, और हाँ बिज़नेस क्लास में हवाई यात्रा करूँगा.” अपनी इस हसरत के साथ उसका रिश्ता बहुत नाज़ुक है. जब तक यह पूरी नहीं होती, तब तक इसमें जलन और ग़ुस्सा भी मिले रहते हैं. आपने Onida टीवी का वह पुराना विज्ञापन देखा ही होगा, “Neighbour’s envy, owner’s pride” वाला. यह भारत में इस हसरत को समझने वाला शायद पहला विज्ञापन था. उसके बाद तो उसकी क़मीज़ मेरी क़मीज़ से अक्सर सफ़ेद होने लगी.
“मैं अमीर हूँ, and I don’t care”
सुपर लग्ज़री ब्रांड्स का असली मनोवैज्ञानिक मेसेज शायद यही है. उन्हें इस्तेमाल करने वाला उन सबको जो ऐसे प्रॉडक्ट इस्तेमाल नहीं कर सकते, शायद यही कह रहा होता है कि “मैं अमीर हूँ, and I don’t care”. महँगे प्रॉडक्ट्स ख़रीदने वालों की सोच पर गूगल सर्च करेंगे तो पहला रिज़ल्ट ही आपको यह बता देगा कि वैसा खुद को अपनी नज़र में और बड़ा करने के लिये करते हैं. आप क्या सोच रहे हैं उसकी परवाह उन्हें नहीं होती.
इसलिए आप भी चिल करिये, और यह सोचिये कि जब मानसून आयेगा तब आपका छाता आपको बारिश से बचा पायेगा कि नहीं.