इंडिया में टोन्ड मिल्क का कॉन्सेप्ट लाने वाले शख्स कौन थे?
दारा नुसुरवानजी खुरोडी को देश में डेरी इंडस्ट्री में उनके योगदान के लिए जाना जाता है. 2 जनवरी 1906 को जन्मे भारतीय आंत्रप्रेन्योर ने ही ऐरे मिल्क कॉलोनी की शुरुआत की थी. उन्होंने ही सेफ मिल्क पॉलिसी और नए कानून पेश किए, जिसे बाद में यूनिसेफ ने यूरोप में भी प्रमोट किया.
दारा नुसुरवानजी खुरोडी को देश में डेरी इंडस्ट्री में उनके योगदान के लिए जाना जाता है. 2 जनवरी 1906 को जन्मे भारतीय आंत्रप्रेन्योर ने अपने करियर के शुरुआत में निजी और सरकारी संस्थाओं में काम किया था. बाद में उन्होंने सरकारी संगठनों में अधिकारी पद भी संभाला.
1946 से 1952 तक उन्होंने मिल्क कमिश्नर ऑफ बॉम्बे का पद भी संभाला. 1950 के समय में उन्हें डेयरिंग यानी दूध के प्रोडक्शन, स्टोरेज और डिस्ट्रीब्यूशन बिजनेस का पर्यायवाची कहा जाता था.
उन्हें वर्गीज कुरियन और त्रिभुवनदास किशीभाई पटेल 1963 के साथ रैमन मैग्ससे अवॉर्ड से भी नवाजा गया था. इतना ही नहीं 1964 में सरकार की तरफ से उन्हें पद्म भूषण भी दिया गया. खुरोडी की 1 जनवरी, 1983 को मध्य प्रदेश में मृत्यु हो गई थी.
खुरोडी जब छोटे थे तब वो अपने चाचा के साथ मिलिट्री कैम्प्स में दूध और दूध उत्पाद डिलीवर करने जाते थे. 1923 में उन्होंने इंपिरियल इंस्टीट्यूट ऑफ एनिमल हसबैंड्री, बेंगलुरु में दाखिला लिया.
उसके बाद आनंद, गुजरात में चीज और बटर बनाने वाली सरकारी फैक्ट्री में ट्रेनिंग ली. 1925 में उन्हें ऑल इंडिया डेयरी डिप्लोमा एग्जाम में गोल्ड मेडल भी मिला.
पढ़ाई और ट्रेनिंग पूरी करने के बाद खुरोडी ने जमशेदपुर में टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी में डेयरी फार्म सुपरिनटेंडेंट की तरह काम किया. इसके अलावा डेनमार्क और नीदरलैंड्स में कई ट्रेनिंग सेशन भी लिए.
आइए जानते हैं डेयरी इंडस्ट्री में किस तरह से उन्होंने योगदान दिया था…………
1935 में खुरोडी ने एग्रीकल्चर मार्केटिंग डिपार्टमेंट ऑफ दी गवर्नमेंट को जॉइन किया. उन्होंने यहां डेयरी और एनिमल हसबैंड्री मार्केटिंग ऑफिसर की तरह काम किया.
उन्होंने एगमार्क के ग्रेडिंग सिस्टम को फॉर्मलाइज करने में भी बहुत काम किया था. दूध की मार्केटिंग से जुड़ी कई स्ट्रैटजी उनकी रिपोर्ट्स के आधार पर तैयार कई गई हैं. उनकी ही रिपोर्ट में ऐरे मिल्क कॉलोनी और टोन्ड मिल्क जैसे प्रस्ताव पेश किए गए थे.
उन्होंने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि भारतीय बाजारों में टोन्ड मिल्क (2 पर्सेंट फैट), डबल टोन्ड (1 पर्सेंट) और नॉन-फैट (10 पर्सेंट) को प्रमोट किया जाना चाहिए.
टोन्ड मिल्क को भैंस के दूध में पानी और स्कीम मिल्क पाउडर को मिलाकर बनाया जाता है. इस तरह दूध के अंदर न्यूट्रिशन बने रहते हैं और सस्ता भी रहता है. टोन्ड मिल्क को सबसे पहले बॉम्बे में 13 फरवरी, 1946 को मार्केट में उतारा गया था.
वर्ल्ड वॉर 2 के दौरान मिलिट्री की तरफ से घी की डिमांड एकदम से बढ़ गई थी. जिस वजह से बॉम्बे पहले से ही दूध की सब्सिडाइज्ड सप्लाई हो रही थी. खुरोडी इस दौरान बॉम्बे में डेप्यूटी मिल्क कमिश्नर थे.
उन्होंने हालात देखते हुए सेफ मिल्क पॉलिसी और नए कानून पेश किए. जिसके जरिए होटलों के लिए स्कीम्ड मिल्क की अनिवार्यता तय की गई, जो बाहर से इंपोर्ट होते थे और सरकार की तरफ से महंगे दामों पर बेचे जाते थे.
बाद में, UNICEF ने सेफ मिल्क पॉलिसी को यूरोप में भी प्रमोट किया. स्कीम्ड मिल्क के इंपोर्ट से जो प्रॉफिट हुआ उससे उन्होंने ऐरे में बुफैलो कॉलेनी बनाई जिसे आज ऐरे मिल्क कॉलोनी के नाम से जाना जाता है.
1949 में शुरू हुई इस कॉलोनी का 1951 में जवाहरलाल नेहरू ने उद्घाटन किया था. इस कॉलोनी में मिल्क प्रोसेसिंग, टोनिंग, स्टर्लाइजेशन और लार्ज स्केल पर चीज प्रोडक्शन के लिए मॉडर्न टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल होता है.
इस ऐरे कॉलोनी पर यूनिसेफ ने खुरोडी के साथ कई और मसलों पर चर्चा की. उस समय इस कॉलोनी में 15000 के आसपास भैंसें रखी गई थीं और तब तक तो ये एक टूरिस्ट स्पॉट बन चुका था.
खुरोडी और यूनिसेफ ने मई 1963 में वर्ली डेयरी खोलने के लिए साथ मिलकर काम किया. जिसकी रोजाना की कैपेसिटी 3 लाख लीटर थी. उस समय यह दुनिया की सबसे बड़ी डेयरी थी.
Edited by Upasana