भारत में ऐसी क्या बात है कि अमेरिका और ब्रिटेन से भी ज्यादा महिला पायलट हमारे देश में हैं
भारत में 12.4 फीसदी महिला पायलट हैं, जबकि दुनिया की सबसे बड़ी एविएशन इंडस्ट्री अमेरिका में 5.5 फीसदी और ब्रिटेन में 4.7 फीसदी हैं.
इंटरनेशनल सोसाइटी ऑफ विमेन एयरलाइन पायलेट्स (International Society of Women Airline Pilots) के अनुसार आज की तारीख में भारत में 12.4 फीसदी महिला पायलट हैं जबकि दुनिया के सबसे ताकतवर देश और सबसे बड़े एविएशन बाजार अमेरिका में महिला पायलट्स की संख्या सिर्फ 5.5 फीसदी है. ब्रिटेन में महिला पायलट्स की संख्या 4.7 फीसदी है. इंटरनेशनल सोसाइटी ऑफ विमेन एयरलाइन पायलेट्स की रिपोर्ट के मुताबिक पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा महिला पायलट भारत में हैं. अमेरिका, ब्रिटेन, चीन, ऑस्ट्रेलिया से भी ज्यादा.
भारत में सबसे ज्यादा महिलाएं रीनजल एयरलाइंस में काम कर रही हैं, जहां यह संख्या 13.9 फीसदी है. इसके अलावा मुख्य एयरलाइंस में 12.3 फीसदी, कार्गो एयरलाइंस में 8.5 फीसदी और लो कॉस्ट एयरलाइंस में 10.9 महिलाएं हैं.
कैसा अंतर्विरोध है? एक ओर ग्लोबल जेंडर इंडेक्स के मुताबिक लैंगिक समानता के मामले में भारत दुनिया के 146 देशों की सूची में 135वें नंबर पर है. यह इंडेक्स वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम का साल 2021 का है. और दूसरी ओर किसी आश्चर्य की तरह भारत की महिलाएं एविएशन के क्षेत्र में सफलता के झंडे गाड़ रही हैं. आखिर यह कैसे मुमकिन हुआ है कि पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा महिला पायलट भारत में हैं.
भारत में महिला पायलट्स का इतिहास
1959 में दूर्बा बनर्जी भारत की पहली कमर्शियल महिला पायलट बनीं. हालांकि भारत में पहला एयरक्राफ्ट उड़ाने का श्रेय सरला ठकराल को जाता है, जिन्हें आजादी के पहले 1936 में पहला एविएशन पायलट लाइसेंस मिला था. दूर्बा बनर्जी ने 1959 में एयर सर्वे इंडिया के साथ अपने फ्लाइंग कॅरियर की शुरुआत की. यह वो जमाना था, जब पूरे देश में सिर्फ 8.86 फीसदी महिलाएं शिक्षित थीं. आजाद भारत में महिला सशक्तिकरण के प्रयास अपने शुरुआती चरण में थे. महिलाओं को लेकर सामाजिक पूर्वाग्रह बहुत गहरे थे. वो ऐसा समय था कि अगर विमान में यात्रा कर रहे लोग देख लें कि कोई महिला जहाज उड़ाने वाली है तो डर के मारे कई बार विमान से उतर भी जाते थे.
1990 में निवेदिता भसीन 26 साल की उम्र में कमर्शियल पायलट बनने वाली न सिर्फ भारत, बल्कि दुनिया की पहली महिला बनीं. निवेदिता एक इंटरव्यू में कहती हैं, “30 साल पहले जब मैंने एयरक्राफ्ट उड़ाना शुरू किया, तब मेरे अलावा सिर्फ एक और महिला पायलट थी. मैं इतनी मेहनत और ट्रेनिंग के बाद यहां तक पहुंची थी, लेकिन अकसर मुझसे कॉकपिट में रहने और बाहर न निकलने के लिए कहा जाता. एक महिला को विमान उड़ाता देख यात्रियों को डर लगने लगता था.” उस इंटरव्यू में निवेदिता यह कहते हुए हंसती भी हैं, लेकिन उनके हंसी में एक गहरी चिंता और उदासी भी होती है.
वो कहती हैं कि हवाई जहाज को नहीं पता कि आपका जेंडर क्या है. आप औरत हैं या मर्द. वो एक मशीन है और जिस भी व्यक्ति को वो मशीन चलाना आता है, जिसके पास काबिलियत, ट्रेनिंग और एक्सपर्टीज है, वो उस मशीन को चला सकता है.
एविएशन इंडस्ट्री में महिलाओं की सफलता के कारण
दूर्बा और निवेदिता की कहानी गवाह है कि आज जब दुनिया में सबसे ज्यादा महिला पायलट भारत में हैं, औरतों के लिए यह यात्रा आसान नहीं रही है. लेकिन आखिर वह कौन से कारण है, जिन्होंने इसे मुमकिन बनाया है. जैसे जुलिआना बर्नेंदेली और अंतोनिया पैट्रीजिया की किताब “विमेन इन फायनेंशियल सर्विसेज” बताती है कि पूरी दुनिया में बैंकिंग सेक्टर में महिलाओं का सफल होने महज एक इत्तेफाक नहीं था. महिलाओं को इस क्षेत्र में ऐसे मौके और सुविधाएं मुहैया कराई गईं, जिन्होंने उनके आगे बढ़ने को मुमकिन बनाया.
हवा में उड़ने का थ्रिल और महिला रोल मॉडल्स
वैसे ही असल सवाल यह है कि भारत में वह कौन से कारण हैं, जिन्होंने महिलाओं के पायलट बनने की राह में उत्प्रेरक की भूमिका निभाई. निवेदिता भसीन अपने उस इंटरव्यू में कहती हैं कि महिलाओं को जहाज उड़ाता देख लोगों की दो तरह की प्रतिक्रियाएं होती हैं. या तो वो डरते हैं या फिर बहुत ज्यादा गर्व महसूस करते हैं. मेरे साथ ये दोनों बातें होती थीं. बहुत सारे लोगों को इतनी आश्चर्य भरी खुशी होती, मानो एक औरत होने के बावजूद हवाई जहाज उड़ाकर मैंने कोई असंभव सा कारनामा कर दिखाया है.
पायलट होने में एक तरह का ग्लैमर और आकर्षण तो था ही. दूर्बा सहाय और निवेदिता भसीन जैसे रोल मॉडल भी हमारे सामने थे. 1948 में भारत में एनसीसी (नेशनल कैडेट कोर) की शुरुआत हुई, जिसमें स्कूल लेवल से ही लड़कियों को शामिल किया जाता था, जिसमें हल्के एयरक्राफ्ट उड़ाने की भी ट्रेनिंग दी जाती थी. एक बार वह अनुभव अर्जित करने के बाद लड़कियों के लिए कमर्शियल पायलट ट्रेनिंग में जाने का रास्ता आसान हो जाता है.
दूर्बा बनर्जी ने एक बार एक इंटरव्यू में कहा था, “एयरक्राफ्ट उड़ाना ऐसा अनोखा अनुभव है, जिसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता. इतना थ्रिल और एक्साइटमेंट. आप सैकड़ों फीट की ऊंचाई पर आसमान में होते हैं. शक्ति, नियंत्रण और दायित्वबोध, सबकुछ का जबर्दस्त संतुलन चाहिए. एक बार यह महसूस करने के बाद जमीन पर उतरना मुश्किल है.”
पायलट होना ऐसा है कि अगर कहीं से भी आपको उसकी झलक, रौशनी, प्रेरणा, रास्ता, मदद और अनुभव मिले तो आप आगे ही बढ़ना चाहेंगे. भारत में एविऐशन इंडस्ट्री ने अपने कई आउटरीच कार्यक्रमों के जरिए महिलाओं को ज्यादा से ज्यादा संख्या में महिलाओं को जोड़ने और उन्हें प्रेरित करने की कोशिश की.
राज्य सरकारों और एविएशन कंपनियों के आउटरीच प्रोग्राम
कुछ राज्य सरकारों और निजी कंपनियों ने भी लड़कियों को पायलट ट्रेनिंग प्रोग्राम में सब्सिडी देनी शुरू की. होंडा मोटर कंपनी इंडियन फ्लाइंग स्कूल में लड़कियों को स्कॉलरशिप देती है. क्वालीफाई करने वाली लड़कियों को 18 महीने की फुली फंडेड ट्रेनिंग मिलती है.
साथ ही दुनिया के अन्य देशों की तुलना में भारत में एविएशन कंपनियों ने नब्बे के दशक से ही महिलाओं को पायलट बनाना शुरू किया. इंडियन एयरफोर्स ने 1990 से ही ट्रांसपोर्ट हेलीकॉप्टर उड़ाने के लिए महिलाओं को रिक्रूट करना शुरू कर दिया था.
प्रेग्नेंसी और मैटर्निटी को लेकर एविएशन कंपनियों का उदार रवैया
“विमेन इन फायनेंशियल सर्विसेज” किताब बताती है कि बैंकिंग सेक्टर में महिलाओं की सफलता की एक बड़ी वजह ये भी है कि प्रेग्नेंसी, मैटर्निटी और मातृत्व से जुड़ी महिलाओं की खास जरूरतों के प्रति इस सेक्टर ने उदारता बरती. उन्हें जरूरी सुविधाएं और काम की फ्लेक्जिबिलिटी दी, जिसका कारण उन्हें कॅरियर से ब्रेक नहीं लेना पड़ा और या कॅरियर और मदरहुड में से किसी एक चुनाव नहीं करना पड़ा.
कुछ ऐसी ही कहानी भारत में एविएशन सेक्टर की भी रही है, जहां महिला पायलटों के काम की स्थितियां और शर्तें काफी फ्लेक्जिबल होती हैं. तकरीबन सभी एयरलाइंस में प्रेग्नेंसी के दौरान महिलाओं को उड़ान की ड्यूटी नहीं दी जाती. उस दौरान उन्हें ग्राउंड पर रहकर प्रशासनिक ड्यूटी निभाने का विकल्प दिया जाता है. उनके वर्किंग आवर्स फ्लेक्जिबल होते हैं. साथ ही उस दौरान उनका वर्किंग कॉन्ट्रैक्ट भी फ्लेक्जिबल होता है, जिसमें 15 दिन लगातार काम करने के बाद 15 दिन की छुट्टी मिलती है. एक महिला पायलट को यह सुविधाएं तब तक मिलती हैं, जब तक उसका बच्चा 5 साल का न हो जाए.