चीन में मानवाधिकार उल्लंघन पर UN में मसौदा प्रस्ताव से भारत क्यों नदारद रहा?
मानवाधिकार समूह संसाधन संपन्न उत्तर-पश्चिमी चीनी प्रांत में (मानवाधिकार हनन की) घटनाओं को लेकर वर्षों से खतरे की घंटी बजाते रहे हैं. इनका आरोप है कि चीन ने 10 लाख से अधिक उइगरों को उनकी इच्छा के विरुद्ध कथित ‘रिएजुकेशन कैंप्स’ में हिरासत में रखा है.
भारत ने चीन के अशांत शिनजियांग क्षेत्र में मानवाधिकार की स्थिति पर चर्चा के लिए संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UNHRC) में एक मसौदा प्रस्ताव पर मतदान में हिस्सा नहीं लिया.
मानवाधिकार समूह संसाधन संपन्न उत्तर-पश्चिमी चीनी प्रांत में (मानवाधिकार हनन की) घटनाओं को लेकर वर्षों से खतरे की घंटी बजाते रहे हैं. इनका आरोप है कि चीन ने 10 लाख से अधिक उइगरों को उनकी इच्छा के विरुद्ध कथित ‘रिएजुकेशन कैंप्स’ में हिरासत में रखा है.
ह्यूमन राइट्स वॉच में चीन की निदेशक सोफी रिचर्डसन ने एक बयान में कहा कि अपने इतिहास में पहली बार, संयुक्त राष्ट्र के शीर्ष मानवाधिकार निकाय ने चीन के जिनजियांग क्षेत्र में मानवाधिकार की स्थिति पर बहस करने के प्रस्ताव पर विचार किया.
खारिज हो गया मसौदा प्रस्ताव
47 सदस्यीय परिषद में यह मसौदा प्रस्ताव खारिज हो गया, क्योंकि 17 सदस्यों ने पक्ष में तथा चीन सहित 19 देशों ने मसौदा प्रस्ताव के विरुद्ध मतदान किया. भारत, ब्राजील, मैक्सिको और यूक्रेन सहित 11 देशों ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया.
मसौदा प्रस्ताव का विषय था- ‘‘चीन के जिनजियांग उइगर स्वायत्त क्षेत्र में मानवाधिकारों की स्थिति पर चर्चा.’’ मसौदा प्रस्ताव कनाडा, डेनमार्क, फिनलैंड, आइसलैंड, नॉर्वे, स्वीडन, ब्रिटेन और अमेरिका के एक कोर समूह द्वारा पेश किया गया था, और तुर्की सहित कई देशों ने इसे सह-प्रायोजित किया था.
भारत ने पुरानी नीति का पालन किया
चीन के अशांत शिनजियांग क्षेत्र में मानवाधिकार की स्थिति पर चर्चा से अनुपस्थित रहने का भारत का यह कदम उसकी लंबे समय से आ रही पॉलिसी का हिस्सा है. भारत का लंबे समय से यह रुख रहा है कि कथित मानवाधिकार उल्लंघन को लेकर किसी देश विशेष को सार्वजनिक तौर पर शर्मसार करने की नियत से लाए जाने वाले प्रस्ताव कभी मददगार नहीं होते. भारत ऐसे मुद्दों से निपटने के लिए सहयोग और रचनात्मक बातचीत का हिमायत करता आया है.
भारत इसके माध्यम से चीन को यह संदेश देने की भी कोशिश कर रहा है कि वह कश्मीर जैसे भारत के आंतरिक मामले से दूर रहे और पश्चिमी देश भी दूसरे देशों के आंतरिक मामलों में ज्यादा हस्तक्षेप न करें.
2017 से उठ रहा है मुद्दा
चीन में उइगरों और अन्य मुस्लिम बहुल समुदायों के खिलाफ मानवाधिकारों के उल्लंघन के गंभीर आरोपों को 2017 के अंत से संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय और संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार तंत्र के ध्यान में लाया जाता रहा है.
गौरतलब है कि चीन अपने शिनजियांग प्रांत में उइगर मुसलमानों के खिलाफ बड़े पैमाने पर कार्रवाई के गंभीर आरोपों का सामना कर रहा है. हालांकि चीन इन आरोपों को खारिज करता रहा है. चीन उन्हें रोजगार की ट्रेनिंग के तौर पर बताता है.
जून में संयुक्त बयान जारी कर चिंता जताई गई थी
इससे पहले जून में चीन के पश्चिमी शिनजियांग प्रांत में उइगर मुसलमानों के साथ दुर्व्यवहार के मामले पर 47 देशों ने एक संयुक्त बयान जारी कर चिंता जताई थी. 47 देशों की ओर से एक संयुक्त बयान देते हुए संयुक्त राष्ट्र में डच राजदूत पॉल बेकर्स ने शिनजियांग से सामने आई कई विश्वसनीय रिपोर्टों का जिक्र किया. शिनजियांग से सामने आई कई रिपोर्टों से ये पता चलता है कि चीन ने 10 लाख से अधिक उइगर और अन्य मुस्लिम अल्पसंख्यकों को मनमाने ढंग से हिरासत में लेकर रखा है.
सातवें राष्ट्रीय जनगणना के शुरुआती आंकड़ों के अनुसार, 2020 में शिनजियांग की कुल जनसंख्या 2.5 करोड़ थी जिसमें हान जातीय समुदाय की आबादी 1 करोड़ और जातीय अल्पसंख्यकों की संख्या 1.4 करोड़ थी. शिनजियांग में जातीय समूहों की जनसंख्या 1953 में जहां 44 लाख थी वो 2020 में बढ़कर 1.4 करोड़ हो गई.
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Edited by Vishal Jaiswal