मौलाना अबुल कलाम आजाद की जयंती पर क्यों मनाया जाता है राष्ट्रीय शिक्षा दिवस?
राष्ट्रीय शिक्षा दिवस साल 2008 से हर साल मनाया जाता है. साल 2008 में मानव संसाधन विकास मंत्रालय (MHRD) ने 11 नवंबर को भारत के लिए राष्ट्रीय शिक्षा दिवस घोषित किया था.
आज 11 नवंबर को राष्ट्रीय शिक्षा दिवस के रूप में मनाया जाता है. देश के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद की जयंती के उपलक्ष्य में साल 2008 से ही इसे मनाया जाता है.
राष्ट्रीय शिक्षा दिवस भारत में शैक्षणिक संस्थानों को मजबूत करने और शैक्षिक मानकों को आगे बढ़ाने के इरादे से मनाया जाता है. इसे भारत की शिक्षा प्रणाली की नींव स्थापित करने में मौलाना आजाद की भूमिका और एक स्वतंत्र भारत बनाने के उनके प्रयासों का सम्मान करने के लिए मनाया जाता है.
राष्ट्रीय शिक्षा दिवस साल 2008 से हर साल मनाया जाता है. साल 2008 में मानव संसाधन विकास मंत्रालय (MHRD) ने 11 नवंबर को भारत के लिए राष्ट्रीय शिक्षा दिवस घोषित किया था. अब MHRD का नाम बदलकर शिक्षा मंत्रालय कर दिया है.
साल 2022 की थीम
2022 में वर्ष के लिए राष्ट्रीय शिक्षा दिवस की थीम ‘चेंजिंग कोर्स, ट्रांसफॉर्मिंग एजुकेशन’ है. यह थीम भारत में शिक्षा प्रणाली को बदलते समय के अनुकूल बनाने के लिए सुधार करने का आह्वान करता है. हर साल मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा शिक्षा दिवस पर एक अलग थीम निर्धारित की जाती है ताकि किसी विशेष विषय या मुद्दे पर विशेष ध्यान दिया जा सके.
कौन थे मौलाना अबुल कलाम आजाद?
आजाद का जन्म 11 नवंबर, 1888 को मक्का में हुआ था, जो उस समय ऑटोमन साम्राज्य का एक हिस्सा था. मक्का अब सऊदी अरब में है. उनका असली नाम सैय्यद गुलाम मुहियुद्दीन अहमद बिन खैरुद्दीन अल हुसैनी था, लेकिन बाद में उन्हें मौलाना अबुल कलाम आजाद के नाम से जाना जाने लगा.
आजाद के पिता अफगान वंश के मुस्लिम विद्वान थे. उनके पिता की मृत्यु बहुत कम उम्र में हो गई थी इसलिए वह अपने नाना के साथ दिल्ली में रहते थे. 1857 के भारतीय विद्रोह के दौरान, उन्होंने भारत छोड़ दिया और मक्का में बस गए थे. बाद में आजाद भारत लौट आए और अपने परिवार के साथ कलकत्ता शहर में बस गए. मौलाना आजाद को साल 1992 में मरणोपरांत देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया था.
11 साल की उम्र में शुरू कर दी थी पत्रकारिता
आजाद ने बहुत ही कम उम्र में अपना पत्रकारीय जीवन शुरू कर दिया था. साल 1899 में 11 साल की उम्र में उन्होंने कलकत्ता में एक काव्य पत्रिका नायरंग-ए-आलम का प्रकाशन शुरू किया और 1900 में पहले से ही एक साप्ताहिक अल-मिस्बाह के संपादक थे.
1908 में, उन्होंने मिस्र, सीरिया, तुर्की और फ्रांस की यात्रा की, जहां वह कमल मुस्तफा पाशा के अनुयायी, यंग तुर्क मूवमेंट के सदस्य और ईरानी क्रांतिकारियों जैसे कई क्रांतिकारियों के संपर्क में आए. आज़ाद ने उस समय के अधिकांश मुसलमानों के लिए कट्टरपंथी माने जाने वाले राजनीतिक विचारों को विकसित किया और एक पूर्ण भारतीय राष्ट्रवादी बन गए.
UGC, IIT और जामिया मिलिया इस्लामिया की स्थापना की
मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने 15 अगस्त, 1947 से 2 फरवरी, 1958 तक शिक्षा मंत्री के रूप में देश की सेवा की. वह एक महान शिक्षाविद् थे और उन्होंने भारत की शिक्षा प्रणाली को नया रूप देने और उसे नया रूप देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
मौलाना आजाद ने एक स्वतंत्रता सेनानी और एक शिक्षाविद के रूप में काम किया. उनका मानना था कि देश के विकास में सबसे बड़ी बाधा अशिक्षा है. यही कारण है कि उन्होंने अशिक्षा को खत्म करने की दिशा में काम किया.
आजाद ने कई शैक्षणिक संस्थानों- विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC), अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (NICTEई), माध्यमिक शिक्षा आयोग, अन्य निकायों की स्थापना में योगदान दिया है.
उनके कार्यकाल में जामिया मिलिया इस्लामिया और आईआईटी खड़गपुर जैसे संस्थानों की स्थापना की गई. उन्होंने ही भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (ICCR), साहित्य अकादमी, ललित कला अकादमी, संगीत नाटक अकादमी और वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) की स्थापना की थी.
मौलाना आजाद के अनुसार, स्कूल प्रयोगशालाएं हैं जो देश के भावी नागरिक तैयार करती हैं. उन्होंने कहा था कि किसी भी प्रणाली का प्राथमिक उद्देश्य संतुलित दिमाग बनाना है जिसे गुमराह नहीं किया जा सकता है.
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