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जिन टेक कंपनियों में काम करने का सपना देखते थे लोग, क्या उनका असली चेहरा कुछ और है?

मेटा हो या गूगल या माइक्रोसॉफ्ट, एमेजॉन सभी ने बड़े पैमाने पर छंटनी की है. इस छंटनी की मार सालों से काम कर रहे एंप्लॉयीज से लेकर प्रेग्नेंट फीमेल एंप्लॉयीज और हाल में जॉइन करने वाले फ्रेशर तक पर पड़ी है.

जिन टेक कंपनियों में काम करने का सपना देखते थे लोग, क्या उनका असली चेहरा कुछ और है?

Friday January 27, 2023 , 4 min Read

एक दौर था जब कामकाजी लोग एमेजॉन, गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, ट्विटर, मेटा जैसी इंटरनेट कंपनियों में काम करने का सपना देखा करते थे. लेकिन हाल के सालों में ऊंची-ऊंची शीशे की दीवारों में बनी इमारतों से कुछ ऐसी खबरें आई हैं जो इन कंपनियों का एक अलग ही चेहरा बयां करती हैं.

वो कंपनी जहां झूले पर बैठकर काम करते हुए एंप्लॉयीज अपनी तस्वीरें पोस्ट करते थे. उन्हें बेस्ट कंपनी बताते थे. ऑफिस की कैंटीन खाने पीने की तमाम चीजों से भरपूर होती थी. बैठकर लेटकर काम करने की सहूलियत थी. केजुअल कपड़े पहनकर आने की इजाजत थी.

उनका एक चेहरा ये भी है कि यही कंपनियां प्रॉफिट के लिए किसी भी हद तक जा सकती हैं. जरूरत पड़ने पर सालों पुराने एंप्लॉयी को एक झटके में निकालना हो या लो स्केल पर काम कर रहे स्टाफ को शोषण करना हो.

बीते एक साल में इन कंपनियों ने जिस तरह छंटनी का दौर शुरू किया है वो बिल्कुल हैरान करने वाला है. मेटा हो या गूगल या माइक्रोसॉफ्ट, एमेजॉन सभी ने बड़े पैमाने पर छंटनी की है. इस छंटनी की मार सालों से काम कर रहे एंप्लॉयीज से लेकर प्रेग्नेंट फीमेल एंप्लॉयीज और हाल में जॉइन करने वाले फ्रेशर तक पर पड़ी है.

एमेजॉन ने करीबन 18,000 लोगों को काम से निकाला है. इस बीच उसके वेयरहाउस वर्कर्स ने चौंकाने वाले दावे किए हैं. उनका कहना है कि कंपनी में स्टाफ से बेहतर बर्ताव तो रोबोट्स के साथ किया जाता है. फिलहाल एमेजॉन के लंदन दफ्तर के एंप्लॉयीज हड़ताल पर हैं.

एमेजॉन ने पिछले साल एंप्लॉयीज को सैलरी पर 5 फीसदी की सालाना हाइक दी थी. एंप्लॉयीज इसका भी विरोध कर रहे हैं, उनका कहना है कि ये बढ़ती महंगाई के बीच कॉस्ट ऑफ लिविंग बढ़ी है और उस हिसाब से ये बिल्कुल नाकाफी है.

एमेजॉन के एक वर्कर डेरेन वेस्टवुड ने बीबीसी ब्रेकफास्ट को बताया, काश हमारे साथ रोबोट जैसा भी बर्ताव होता, क्योंकि उन्हें हमसे बेहतर तरीके से रखा जाता है. एक अन्य एंप्लॉयी ने कहा, रोबोट्स के साथ कुछ खामी होती है तो कम से कम टेक्निशियन उनकी देखभाल कर लेते हैं. लेकिन हमारे पास कोई नहीं है जिससे हम अपनी शिकायत कर सकें.

वर्कर्स का कहना है कि कंपनी उन पर लगातार नजर रखती है. वॉशरूम जाने पर कुछ मिनट अधिक लगते हैं तो हमसे जवाब मांगा जाता है.

इसी तरह मेटा ने पिछले साल नवंबर में कहा था कि वो 13 फीसदी एंप्लॉयीज यानी करीबन 11,000 एंप्लॉयीज को काम से निकालेगी. कंपनी ने अपनी चौथी तिमाही के नतीजों में गिरावट आने के बाद ये ऐलान किया था.

गूगल भी दावा कर चुकी है कि वो 2023 में 12,000 एंप्लॉयीज को निकालेगी. कंपनी ने छंटनी शुरू भी कर दी है, जो बात सबसे ज्यादा हैरान करने वाली है कि इस छंटनी में ऐसे लोग भी शामिल हैं जो पैटरनिटी या मैटरनिटी लीव पर थे, एक शख्स अपनी मां की मृत्यु की वजह से छुट्टी पर गया था.

इसके अलावा माइक्रोसॉफ्ट ने भी पिछले सप्ताह कहा था कि कस्टमर्स की बदलती प्राथमिकता को देखते हुए उसने अपने ग्लोबल वर्कफोर्स से 5 फीसदी लोगों की छंटनी करने का फैसला किया है. ये संख्या 11,000 के आसपास बैठती है.

ये तो अभी छंटनी के दौर की शुरुआत भर है आने वाले महीनों और आर्थिकि स्थितियों के लिहाज से और मुश्किल होने वाले हैं.

शायद छंटनी की संख्या और बढ़ जाए. लेकिन सवाल ये है कि ये वही कंपनियां हैं जो अपने आलीशान वर्ककल्चर की वजह से लाखों एंप्लॉयीज के लिए ड्रीम वर्कप्लेस हुआ करती थीं.

आज यही कंपनियां एक धड़ल्ले में हजारों लोगों को बिना पूर्व जानकारी के उसी काम से निकाल दे रही हैं. शायद ये मुश्किल समय इसलिए भी आया है कि ताकि हमें महंगे इलाकों में शीशे की दीवारों में मौजूद इन दफ्तरों का एक दूसरा चेहरा भी सामने आ सके.


Edited by Upasana