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हिंदी बेल्ट में भी बॉलीवुड पर क्यों भारी पड़ रही हैं साउथ की फिल्में?

कोविड के बाद से थिएटर खुलने के बाद सूर्यवंशी और गंगूबाई काठियावाड़ी को छोड़ दें शायद ही कोई बॉलीवुड की ऐसी फिल्म आई हो जो बॉक्स ऑफिस पर धूम मचा सकी हो. दूसरी तरफ साउथ की फिल्मों ने रीजनल इलाकों से बढ़कर पूरे इंडिया में धूम मचाई है. आइए जानने की कोशिश करते हैं आखिर ऐसा क्यों हो रहा है....

हिंदी बेल्ट में भी बॉलीवुड पर क्यों भारी पड़ रही हैं साउथ की फिल्में?

Monday October 03, 2022 , 4 min Read

लॉकडाउन के चलते महीनों बंद रहने के बाद पिछले साल अक्टूबर में जब मूवी थिएटर खुले तो फिल्म इंडस्ट्री के लोगों के चेहरे पर एक सुकून की मुस्कान थी. फिल्ममेकर्स ने लंबे टाइम से रिलीज होने के इंतजार में एकटकी लगाए बैठी फिल्मों के लिए स्लॉट बुक कर लिए. इसमें सबसे पहला नंबर लगा सूर्यवंशी का, रोहित शेट्टी की ये फिल्म पिछले साल दिवाली पर आई और उम्मीद के मुताबिक धांसू प्रदर्शन भी किया. इंडस्ट्री की उम्मीदें और बढ़ गईं. मगर अफसोस इंडस्ट्री का ये सेलिब्रेशन सिर्फ सूर्यवंशी तक ही रह सका.


इसके बाद रिलीज हुई कपिल देव के ऊपर बनी रनवीर सिंह स्टारर फिल्म 83 से भी काफी उम्मीदें थी मगर ये फिल्म भी मुंह के बल गिरी. कुछ सप्ताह में हम 2022 की दिवाली मना रहे होंगे. यानी थिएटरों को खुले लगभग 1 साल होने को आए हैं मगर अभी तक गगूंबाई काठियाबाड़ी के अलावा इक्का दुक्का फिल्मों को छोड़कर बॉलीवुड की कोई भी फिल्म अच्छा कलेक्शन करने के लिए तरसती ही दिखी है. मगर इस बीच एक नया ट्रेंड उभरता नजर आया, जो बॉलीवुड के लिए चिंता की लकीर बना हुआ है और वो है साउथ की फिल्मों का क्रेज.


आइए जानने की कोशिश करते हैं कि आखिर साउथ फिल्मों के सामने बॉलीवुड फिल्में क्यों अच्छा परफॉर्म नहीं कर पा रही हैं?

रियल लाइफ स्टोरी

दरअसल साउथ की फिल्मों के हिट होने का बहुत बड़ा कारण है उनका वास्तविक कहानियों से संबंध. राजमौली की RRR हो या कार्तिक सुब्बाराज की जगामे थंदीरम दोनों ही फिल्मों के प्लॉट ऐक्शन, एंटरटेनमेंट, रोमांस से सराबोर हैं. ज्यादातर फिल्मों में कोई न कोई नैतिकता से जुड़ी सीख छिपी होती है. वहीं बॉलीवुड पर नजर घुमाएं तो असल जिंदगी से जुड़ी यानी बढ़िया कहानी वाली फिल्में कम ही आती हैं और आती हैं तो उतनी सफल नहीं हो पाती हैं.


साउथ की फिल्में अपने क्षेत्र में तो अच्छा कर ही रही हैं उसके अलावा नॉर्थ इंडिया में भी उनका कलेक्शन ताबड़तोड़ हो रहा है. इसका असर ये हो रहा है कि नॉर्थ की ऑडियंस भी अब साउथ फिल्मों के नाम पर ही थिएटरों में जा रही है.


फिल्ममेकर करण जौहर भी खुद को साउथ की फिल्मों की तारीफ करने से नहीं रोक पाए. टाइम्स ऑफ इंडिया के आर्टिकल में करण जौहर भी मानते हैं कि हिंदी फिल्में उतना बिजनेस नहीं कर रही हैं जितना तेलगु फिल्में कर रही हैं. अल्लु अर्जुन की पुष्पा महज गिने चुने पोस्टर्स और एक ट्रेलर के साथ रिलीज हुई थी. उस समय तो अल्लु अर्जुन का नॉर्थ में क्रेज भी नहीं था मगर फिर भी पुष्पा बॉक्स ऑफिस पर जबरदस्त हिट रही. पुष्पा ही नहीं, RRR हो या KGF चैप्टर 2 दोनों के बॉक्स ऑफिस कलेक्शन ने तो फिल्म एनालिस्ट्स के होश उड़ा दिए.

छोटे शहरों के लिए नहीं बन रहीं फिल्में

KGF चैप्टर 2 में विलने की भूमिका निभाने वाले संजय दत्त भी इस टॉपिक पर अपनी राय जता चुके हैं. उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा कि अब हम (बॉलीवुड इंडस्ट्री) मल्टीप्लेक्सेज को ध्यान में रखकर ही फिल्में बना रही हैं. टियर के लोगों के लिए उनसे जुड़ी कहानियां तो कोई सुना ही नहीं रहा है. और आप इस बात से इनकार नहीं कर सकते हैं टियर2-टियर3 के मार्केट से ही आपकी कमाई होगी.

table

साउथ की हालिया 5 सुपरहिट और बॉलीवुड की हालिया 5 बड़ी फिल्मों का बॉक्स ऑफिस कलेक्शन.

साउथ में ऐक्टर्स को पूजते हैं फैन

एक और बड़ी वजह ये है साउथ के अभिनेताओं का फैनबेस. वहां लोग प्रभास, महेश बाबू से लेकर राम चरम जैसे अभिनेताओं को भगवान की तरह मानते हैं. वजह है इन अभिनेताओं को लोगों के साथ करीबी रिश्ता. वहां हर शख्स इन अभिनेताओं के साथ अपना व्यक्तिगत रिश्ता महसूस करता है. यही वजह है कि इन अभिनेताओं की फिल्मों के रिलीज होते ही उन्हें देखने के लिए भीड़ उमड़ पड़ती है.

बदल गया है कंटेंट देखने का तरीका

कई जानकार ये भी कहते हैं कि महामारी के दौरान थिएटरों के बंद रहने से लोग OTT की तरफ शिफ्ट हुए हैं. जब तक महामारी थी तब तक ये अंदाजा लगाया जा रहा था कि पाबंदियां हटते ही थिएटरों में भीड़ लग जाएगी. मगर इस टाइम पीरियड में लोगों का कंटेंट कंज्यूम करने का तरीका बिल्कुल बदल गया है. ऑडियंस अब हीरो का नाम देखकर नहीं बल्कि कहानी का प्लॉट देखकर फिल्में देखने जा रही है. बड़े-बड़े अभिनेता अक्षय कुमार हों या सलमान खान किसी का भी स्टारडम बड़े स्क्रीन पर ऑडियंस को खींच पाने में नाकामयाब रहा.


फिल्म प्रोड्यूसर और डायरेक्टर संजय गुप्ता भी एक आर्टिकल में कहते हैं इस शिफ्ट का ये नतीजा हुआ है कि कोविड से पहले जो फिल्में बननी शुरू हुई थीं उनका अब चलना मुश्किल नजर आ रहा है. क्योंकि जिस ऑडियंस को और उनके माइंडसेट को देखकर फिल्में बनाई गईं थी वो अब पूरी तरह बदल चुका है. इसलिए अब उन फिल्मों का चलना मुश्किल नजर आ रहा है.


Edited by Upasana