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क्या सरकार अपने दूसरे कार्यकाल में महिलाओं के मुद्दों का समाधान कर पाएगी?

क्या सरकार अपने दूसरे कार्यकाल में महिलाओं के मुद्दों का समाधान कर पाएगी?

Tuesday May 28, 2019 , 8 min Read

सांकेतिक तस्वीर


लोकसभा चुनाव 2019 का अंत हो गया है और जनता ने नरेंद्र मोदी को एक बार फिर से प्रधानमंत्री पद के लिए जनादेश दे दिया है। बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए अब अगले पांच साल तक सत्ता में काबिज रहेगी। हालांकि अभी नई मंत्रिमंडल का गठन और प्रधानमंत्री की शपथ बाकी है, लेकिन अब देश की नजरें सरकार द्वारा किए गए वादों पर होंगी। यह देखने वाली बात होगी कि सरकार अपनी योजनाओं के माध्यम से कैसे जनता का हित करती है। योरस्टोरी ने देश के विभिन्न वर्ग की महिलाओं तक पहुंचकर यह जानने की कोशिश की कि वे नई सरकार से अपने लिए क्या उम्मीद करती हैं।


नई सरकार को स्पष्ट जनादेश मिला है और वह अपने दूसरे कार्यकाल की शुरुआत करेगी। इस नए कार्यकाल में अधिक नौकरियां, बेहतर स्वास्थ्य सेवा, महिलाओं की सुरक्षा, राजनीति में बढ़ती भागीदारी उन कई मुद्दों में से एक है जिन्हें महिलाएं हल होते देखना चाहती हैं। लेकिन इससे पहले कि हम इन सब उम्मीदों के बारे में बात करें, एक बार एक नजर देख लेना जरूरी है कि सत्ताधारी पार्टी ने महिलाओं के लिए अब तक क्या किया है और अलग-अलग क्षेत्रों में और क्या करने की जरूरत है।


चुनाव से ठीक पहले सत्तारूढ़ भाजपा द्वारा जारी घोषणापत्र में 48 पृष्ठ के दस्तावेज में 37 बार "महिला" शब्द का उल्लेख किया गया था। क्या यह दर्शाता है कि महिलाएं पार्टी के एजेंडे में सबसे ऊपर हैं? घोषणा पत्र में वादों को करीब से देखते हैं और समझते हैं कि भारत में महिलाओं के लिए इसके क्या मायने हैं?


स्वास्थ्य 

अपने पिछले कार्यकाल में, भाजपा के नेतृत्व वाली सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार ने प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना, प्रधानमंत्री मातृ सुरक्षा अभियान, और आयुष्मान भारत जैसी महिलाओं के लिए कई योजनाओं की शुरुआत की। इन सभी योजनाओं का उद्देश्य महिलाओं के लिए अच्छी गुणवत्ता, सुलभ और सस्ती मातृ स्वास्थ्य सेवाएं सुनिश्चित करना था।


कुपोषण की समस्या को हल करने के लिए पोषण अभियान की शुरुआत की गई। इसका उद्देश्य अगले पांच वर्षों में देश में कुपोषण के स्तर को कम से कम 10 प्रतिशत तक लाने का था।


2019 के लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा के घोषणा पत्र के अनुसार मिशन इन्द्रधनुष कार्यक्रम ने 3.39 करोड़ बच्चों और 87.18 लाख गर्भवती माताओं का पूर्ण टीकाकरण सुनिश्चित किया है। टीकाकरण की दर में वार्षिक वृद्धि एक प्रतिशत प्रति वर्ष से बढ़कर छह प्रतिशत प्रति वर्ष हो गई है। इस गति को जारी रखते हुए, सरकार 2022 तक सभी बच्चों और गर्भवती महिलाओं के लिए पूर्ण टीकाकरण की उम्मीद करती है।


सुविधा योजना के तहत प्रयास किया गया था कि महिलाओं को सस्ती कीमत पर सैनिटरी नैपकिन उपलब्ध कराए जाएं। हालांकि इस बात पर ध्यान देना जरूरी है कि सैनिटरी नैपकिन पर 12 रुपये का टैक्स प्रस्तावित करने पर सरकार को विरोध का सामना करना पड़ा था। महिलाओं के विरोध के बाद इस टैक्स को हटा दिया गया था।


सरकार ने आशा और आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के मानदेय में भी वृद्धि की थी। घोषणापत्र में कहा गया है कि पार्टी इन कार्यकर्ताओं के लिए बेहतर स्वास्थ्य और सामाजिक सहायता प्रणाली सुनिश्चित करने के लिए सभी आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और आशा कार्यकर्ताओं को शामिल करने के लिए आयुष्मान भारत के दायरे को बढ़ाएगी। लेकिन इसके साथ हमें अभी और बहुत कुछ करने की आवश्यकता है ताकि महिलाओं का स्वास्थ्य बेहतर किया जा सके। खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में जहां जागरूकता और संसाधनों तक पहुंच का अभाव है।

सांकेतिक तस्वीर

राजनीति में महिलाएं

इस बात में कोई दो राय नहीं है कि संसद में महिलाओं के अधिक प्रतिनिधित्व की आवश्यकता है। इस साल चुनाव लड़ने वाले 8,000 उम्मीदवारों में से केवल 700 महिलाएँ थीं। अगर देश की राजनीति में अधिक महिलाएं आती हैं तो ही महिलाओं के मुद्दों जैसे सुरक्षा से जुड़े मामलों को अधिक रुचि और तीव्रता से निपटाया जा सकता है। संसद में महिलाओं के लिए फिर से 33 प्रतिशत आरक्षण की बात करने की जरूरत है।


शिक्षा

भाजपा के घोषणापत्र में दावा किया गया है कि 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' कार्यक्रम के तहत उठाए गए कदम प्रभावशाली रहे हैं। सरकार ने इस पहल को आगे बढ़ाने की योजना बनाई है, और उच्च शिक्षा के लिए सस्ती गुणवत्ता वाली शिक्षा और ऋण और सब्सिडी के रूप में वित्तीय सहायता पर ध्यान केंद्रित किया है।


नए मौके और कौशल विकास

पिछले पांच वर्षों के दौरान एनडीए सरकार ने महिलाओं के लिए एक सुरक्षित और गरिमापूर्ण जीवन सुनिश्चित करने, स्वच्छ भारत अभियान, प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना, और सौभाग्य जैसी विभिन्न योजनाओं के माध्यम से बुनियादी संसाधनों तक पहुँच प्रदान करने पर ध्यान केंद्रित करने का दावा किया है।


ग्रामीण और अर्ध-ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं के बीच वित्तीय सशक्तिकरण सुनिश्चित करने और उनके लिए रोजगार के अवसर पैदा करने के लिए अगले पांच वर्षों में स्वयं सहायता से जुड़ी महिलाओं और महिला किसानों, महिला उद्यमियों के लिए कई कदम उठाने की जरूरत है। इसमें सस्ते लोन उपलब्ध करवाना, संसाधनों, क्षमता निर्माण, बाजार की उपलब्धता सुनिश्चित कराना जरूरी है।


इस संबंध में घोषणापत्र में कहा गया है, "हम महिलाओं को राष्ट्र की प्रगति और समृद्धि के बराबर और समान लाभकारी बनाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। महिला कार्यबल भागीदारी दर में आमूल चूल रूप से वृद्धि करने के लिए रोडमैप तैयार करेंगे। अगले पांच साल हम महिलाओं के लिए अधिक रोजगार के अवसर पैदा करने के लिए उद्योगों और कॉर्पोरेट संस्थाओं को भी प्रोत्साहित करेंगे।"

सरकार ने पहले से ही 50 या अधिक कर्मचारियों वाले किसी भी प्रतिष्ठान के लिए क्रेच की सुविधा होना अनिवार्य कर दिया है। भाजपा के घोषणापत्र में अब दावा किया गया है कि मौजूदा आंगनबाड़ियों, नागरिक समाज संगठनों और निजी क्षेत्र का लाभ उठाकर क्रेच और चाइल्डकेयर सुविधाएं प्रदान करने के लिए असंगठित क्षेत्र में कार्यरत माता-पिता की जरूरतों पर विशेष ध्यान देने के साथ क्रेच कार्यक्रम को मजबूत किया जाएगा। मैनिफेस्टो में कहा गया है, "हम यह सुनिश्चित करेंगे कि 2022 तक चाइल्डकेयर सुविधाओं की संख्या में तीन गुना वृद्धि हो।"


घोषणापत्र में रक्षाकर्मियों की विधवाओं के कल्याण के लिए काम के अवसर, कौशल प्रशिक्षण और सामाजिक सुरक्षा तंत्र के निर्माण के लिए एक समर्पित कार्यक्रम शुरू करने की बात कही गई है।

 

सबके लिए बराबर अधिकार और बराबर मौके सुनिश्चित करना


अपने घोषणापत्र के तहत बीजेपी ने कहा: 


# महिलाओं के समग्र विकास को सुनिश्चित करने और लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के लिए पर्याप्त उपाय करेंगे। घोषणा पत्र में 'तीन तालक' और 'निकाह हलाला' जैसी प्रथाओं को प्रतिबंधित करने और समाप्त करने के लिए एक कानून लाने की उम्मीद की गई है।


# महिलाओं के लिए एक सकारात्मक माहौल बनाने के लिए, लैंगिक न्याय को बढ़ावा देने के लिए और लैंगिक संवेदीकरण पाठ्यक्रम वाली महिलाओं से संबंधित मुद्दों पर जागरूकता पैदा करने के लिए सभी शैक्षणिक संस्थानों के पाठ्यक्रम और सार्वजनिक कार्यालयों के प्रशिक्षण मॉड्यूल का एक अनिवार्य हिस्सा बनाया जाना चाहिए।


सुरक्षा

भाजपा सरकार महिला सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देने का दावा करती है। इस संबंध में, घोषणापत्र ने गृह मंत्रालय में महिला सुरक्षा प्रभाग के गठन पर प्रकाश डाला और महिलाओं के खिलाफ अपराधों को रोकने के लिए कानूनों को स्थानांतरित करने के लिए सख्त प्रावधान किए, विशेष रूप से, बलात्कार के लिए समयबद्ध जांच में। ऐसे मामलों में, दोषियों को न्याय दिलाने के लिए फोरेंसिक सुविधाओं और फास्ट ट्रैक अदालतों का विस्तार किया जाएगा। महिलाओं के खिलाफ हो रहे अपराध की उच्च दर सुरक्षा की प्रमुख चिंताओं में से एक बनी हुई है।


खेलकूद

भारत में जब खेलों की बात आती है तो लड़कों और लड़कियों को अलग निगाह से देखा जाता है। एक तरफ जहां लड़कों के लिए किसी भी खेल में जाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है तो वहीं दूसरी तरफ महिलाओं को तमाम तरह की बंदिशों का सामना करना पड़ता है। 'खेलो इंडिया' योजना के तहत भारत सरकार महिलाओं और आदिवासियों के बीच खेल प्रतिभाओं को प्रोत्साहित करने के लिए विशेष ध्यान देती है।


वास्तविकता बनाम धारणा

हमने जिन महिलाओं से नई सरकार और उससे उम्मीदों के बारे में बात की उन्होंने कहा कि सुरक्षा सबसे बड़ा मुद्दा है। देश की अधिकतर महिलाओं ने यही कहा कि सुरक्षा का मसला उनके लिए सबसे बड़ा है। थॉमसन रॉयटर्स फ़ाउंडेशन के महिलाओं के लिए सबसे खतरनाक देशों के सर्वेक्षण में भारत को अफ़ग़ानिस्तान, सीरिया और सऊदी अरब से आगे रखा गया था। इससे तमाम भारतीय हैरान हो गए थे।


वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के निष्कर्षों से पता चलता है कि भारत लैंगिक असमानता के मामले में दुनिया के सबसे बुरे देशों में से एक है। 2011 की संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम की मानव विकास रिपोर्ट ने लिंग असमानता के संदर्भ में 187 में से भारत को 132 वें स्थान पर रखा था।


लैंगिक असमानता सूचकांक (GII) जैसे बहुआयामी संकेतक को कई कारकों द्वारा निर्धारित किया जाता है। इसमें मातृ मृत्यु दर, किशोर प्रजनन दर, शैक्षिक उपलब्धि और श्रम बल भागीदारी दर शामिल होते हैं। भारत में लैंगिक असमानता को महिलाओं के साक्षर होने, उनकी शिक्षा जारी रखने और श्रम शक्ति में भाग लेने की कम संभावना द्वारा समझा जा सकता है।


हमारे पास ऐसे आंकड़े हैं जो बताते हैं कि भारत में 2018 के सकल घरेलू उत्पाद में $1.4 ट्रिलियन और 2.8 ट्रिलियन डॉलर के बीच रुक गया है। इसकी सबसे बड़ी वजह कार्यबल में महिला भागीदारी का कम होना है।


हमने ऊपर जो भी बातें कही हैं ये सिर्फ कुछ हिस्सा भर है। महिलाओं के लिए सुरक्षा, बेहतर स्वास्थ्य सेवा, कार्यस्थल पर अधिक अवसर, और सरकार में बढ़ी हुई भागीदारी जैसे मुद्दों को संबोधित करना बेहद जरूरी है। महिलाओं को भी पितृसत्ता, प्रतिगामी मानसिकता और लिंग रूढ़ियों के बंधनों से मुक्त करना होगा तभी शायद सच में एक बराबरी वाले समाज की कल्पना को साकार किया जा सकेगा।


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