इच्छाशक्ति: दो साल पहले हुआ था हार्ट ट्रांसप्लांट अब मैराथन में ले रहे हैं हिस्सा
"पेशे से एलआईसी कंपनी में एचआर मैनेजर रुपायन हार्ट ट्रांसप्लांट के दो साल बाद अब मुंबई के प्रतिष्ठित टाटा मैराथन में हिस्सा लेने जा रहे हैं।"
'मन के हारे जीत है, मन के हारे हार', ये बात बिलकुल सटीक बैठती है कोलकाता के रुपायन रॉय पर। हार्ट ट्रांसप्लांट सर्जरी से गुजरने के बाद वापस सामान्य जिंदगी में लौटना और एक साल के भीतर ही चार मैराथन में हिस्सा लेना कोई सामान्य बात नहीं है। जुलाई 2016 की बात है जब रुपायन हार्ट ट्रांसप्लांट के लिए अस्पताल के ऑपरेशन थिएटर में थे। बाहर उनकी पत्नी जयति आंखों में आंसू लिए ईश्वर से कामना कर रही थीं, उनका ढाई साल का बेटा इन सब चीजों से बेखबर था। रुपायन को यकीन नहीं था कि वे अपने बेटे और पत्नी को दोबारा देख सकेंगे।
लेकिन आज उस ऑपरेशन के दो साल बीतने के बाद रुपायन एक के बाद एक मैराथन में हिस्सा ले रहे हैं। पेशे से एलआईसी कंपनी में एचआर मैनेजर रुपायन अब मुंबई के प्रतिष्ठित टाटा मैराथन में हिस्सा लेने जा रहे हैं। पूरी जिंदगी स्पोर्ट्स के करीब रहने वाले 44 वर्षीय रुपायन को क्रिकेट से काफी लगाव था। लेकिन उनकी जिंदगी में मुश्किलें तब आईं जब उन्हें डायलेटेड कार्डिओमायोपेथी का पता चला। इस स्थिति में मनुष्य का हृदय सामान्य रूप से काम करना बंद कर देता है और अपने आप रक्त का प्रवाह करने में अक्षम हो जाता है।
इसके बाद रुपायन अस्पतालों और डॉक्टरों के चक्कर लगाने लगे। काफी समय तक दवा खाने के बाद जब उन्हें कुछ राहत नहीं मिली तो डॉक्टरों ने उन्हें हार्ट ट्रांसप्लांट कराने की सलाह दी। रुपायन हार्ट ट्रांसप्लांट के लिए चेन्नई गए वहां उनकी मुलाकात डॉक्टर के. आर. बालाकृष्णन से हुई। रुपायन बताते हैं कि डॉक्टर ने उनका हौसला बढ़ाया और सकारात्मक सोचने की सलाह दी। रुपायन को आंध्र के एक व्यक्ति का हार्ट मिला जो दुर्घटना में घायल हो गया था।
रुपायन की सर्जरी सफल हुई, जिसके बाद लंबे समय तक उन्हें बिस्तर पर रहना पड़ा। लगभग चार महीने बाद वह अपने पैरों पर चलने के लायक हुए। इसके बाद उनके भीतर मैराथन में हिस्सा लेने का जुनून सवार हुआ। धीरे-धीरे अभ्यास करने के बाद रुपायन सबसे पहले बीएसएफ द्वारा आयोजित 5 किलोमीटर दौड़ प्रतियोगिता का हिस्सा बने। हालांकि उनकी पत्नी को डर था कि कहीं उनकी तबीयत फिर से न खराब हो जाए लेकिन रुपायन को अपने डॉक्टर बालाकृष्णन पर भरोसा था।
रुपायन कहते हैं, 'मैंने मुंबई में कभी दौड़ नहीं लगाी है और यह मेरी पहली बड़ी मैराथन होगी।' जिस व्यक्ति का हार्ट उन्हें मिला वे उसका शुक्रिया अदा करते हुए कहते हैं, 'मुझे लगता है कि मैं उसके परिवार का हिस्सा हूं।' मैराथन में हिस्सा लेने के साथ ही रुपायन ऑर्गन डोनेशन के प्रति लोगों को जागरूक कर रहे हैं। वे कहते हैं, 'अगर किसी व्यक्ति का अंग उसके मरणोपरांत दान कर दिया जाए तो मेरी ही तरह किसी औऱ व्यक्ति को जिंदगी मिल सकती है।'
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