कश्मीर की महिलाएं बन रहीं आत्मनिर्भर, मशरूम की खेती से कमा रहीं है तगड़ा मुनाफा

मशरूम की खेती कश्मीर की महिलाओं के लिए स्वरोजगार का जरिया बनी है. भारत-पाकिस्तान नियंत्रण रेखा से सटे उत्तरी कश्मीर के बारामूला में रहने वाली महिलाओं का एक समूह अपने घरों में मशरूम उगाकर और इसकी बिक्री से होने वाली आय के जरिए शिक्षा व अन्य जरूरतें पूरी करके सफलता की कहानी लिख रहा है.

कश्मीर की महिलाएं बन रहीं आत्मनिर्भर, मशरूम की खेती से कमा रहीं है तगड़ा मुनाफा

Wednesday November 30, 2022,

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अंतराष्ट्रीय वैज्ञानिकों के अनुसार मशरूम की लगभग 10000 किस्में हमारी धरती पर मौजूद है. लेकिन अगर व्यापार के नजरिये से देखें तो मशरूम की लगभग 5 किस्में ही मौजूद है, जिनमें से सिर्फ 5 ही किस्में अच्छी मानी जाती है. जिनके नाम क्रमशः बटन मशरूम, पैडी स्ट्रॉ, स्पेशली मशरूम, दवाओं वाली मशरूम, धिंगरी या ओएस्टर मशरूम हैं. इनमें बटन मशरूम सबसे ज्यादा पसंद की जाने वाली किस्म है. कभी-कभी इसको मिल्की मशरूम भी कहा जाता है.

मशरूम की खेती कश्मीर की महिलाओं के लिए स्वरोजगार का जरिया बनी है. भारत-पाकिस्तान नियंत्रण रेखा से सटे उत्तरी कश्मीर के बारामूला में रहने वाली महिलाओं का एक समूह अपने घरों में मशरूम उगाकर (Mushroom farming) और इसकी बिक्री से होने वाली आय के जरिए शिक्षा व अन्य जरूरतें पूरी करके सफलता की कहानी लिख रहा है. झेलम नदी के किनारे स्थित जिले के कृषि कार्यालय ने लगभग दो साल पहले महिला स्वयं सहायता समूहों (Self Help Groups - SHGs) के साथ एक वर्टिकल फार्मिंग शुरू की थी और अब यह पहल रंग ला रही है.

जैसा की मशरूम को सर्दियों के समय में उगाया जाता है. क्योंकि इसकी खेती के दौरान तापमान कम होना चाहिए, इसके साथ ही मशरूम को उगाने के लिए घास-फूस या फिर आप गेहूं एवं धान के भूसे की आवश्यकता होती है. इसकी सुरक्षा हेतु आपको कीटनाशक दवाएं एवं इसका बीज भी खरीदना होता है. मशरूम की खेती कमरे में भी की जा सकती है. बस आपको ध्यान रखना होगा कि इसे सिर्फ नमी में ही उगाया जाता है. इसके अलावा आपको कई कार्बनिक अकार्बनिक यौगिकों, नाइट्रोजन पोषकों को भी खरीद ले, इसके इस्तेमाल से उत्पादन क्षमता में अच्छी खासी वृद्धि मिल जाती है.

दक्षिण कश्मीर के पुलवामा जिले के गंगू गांव की एक युवा लड़की नीलोफर जान अपने परिवार के लिए आजीविका कमाने के लिए जैविक मशरूम उगा रही है.

अपने घर से बिजनेस करने वाली नीलोफ़र का दावा है कि वह प्रति वर्ष लगभग 90,000-1 लाख रुपये कमाती है.

कुछ साल पहले, उन्होंने कृषि विभाग, कश्मीर से मशरूम की खेती का प्रशिक्षण प्राप्त किया था, और बाद में अपना खुद का बिजनेस वेंचर शुरू किया.

नीलोफर कहती हैं, “कृषि विभाग ने मुझे अपने घर पर मशरूम यूनिट शुरू करने के लिए सब्सिडी प्रदान की और प्रशिक्षण भी दिया. विभाग ने मेरी यूनिट को सफल बनाने के लिए हर संभव प्रयास किया है."

पुलवामा के मुख्य शहर से लगभग तीन किलोमीटर दूर गंगू गांव में अपने आवास के अंदर, नीलोफर मुस्कुराती है और कहती है, जो लड़कियां नौकरी की तलाश में हैं, उन्हें अपना खुद का बिजनेस वेंचर शुरू करने के लिए मशरूम की खेती करनी चाहिए. वह आगे कहती हैं, "मशरूम की खेती घर पर ही सीमित जगह में आसानी से की जा सकती है और कश्मीर में मशरूम का जबरदस्त बाजार है."

जिले के मुख्य कृषि अधिकारी यदविंदर सिंह ने बताया, “मशरूम की खेती के लिए हमारे पास इस जिले में 88 समूह हैं, जिनमें से 22 महिलाएं अब तक जुड़ी हुई हैं. इसका उद्देश्य महिलाओं को उनके घर के भीतर आर्थिक रूप से सशक्त बनाना है, जहां वे अपना अधिकतम समय बिताती हैं.”

उन्होंने कहा कि जिला प्रशासन प्रत्येक महिला उद्यमी को 15,000 रुपये का प्रारंभिक सहायता कोष और 100 बैग मशरूम के बीज प्रदान करता है, जिसे ‘स्पॉन' के रूप में जाना जाता है.

इन समूहों की सफलता की कहानी अधिक महिलाओं को आगे आने के लिए प्रोत्साहित कर रही है और अधिकारियों को लगता है कि यह पहल ग्रामीण कश्मीरी समुदाय में रूढ़िवादी सोच को खत्म करने में मदद कर रही है, जहां आमतौर पर महिलाओं को घर से बाहर निकलते नहीं देखा जाता है.

शहर के फतेहपुरा इलाके की रहने वाली 12वीं कक्षा की छात्रा कुलसुम मजीद उन महिला उद्यमियों में शामिल हैं, जो इस पहल पर काम कर रही हैं.

मजीद ने कहा, “मेरी और मेरे भाई-बहनों की शिक्षा पर बहुत पैसा खर्च होता है. जब हमें इस पहल के बारे में पता चला, तो मैंने तथा मेरी मां ने घर पर मशरूम उगाने और स्थानीय बाजार में उपज बेचने के बारे में सोचा. उन्होंने कहा कि हमने कृषि कार्यालय से संपर्क किया और उन्होंने हमें खेती शुरू करने के लिए 100 बैग बीज दिए."

बेटी-मां की जोड़ी ने अपने दो मंजिला मकान के भूतल पर एक छोटा सा कमरा तैयार किया और अधिकारियों ने निरीक्षण करने के बाद खेती को हरी झंडी दे दी.

कभी-कभी जब तापमान शून्य से नीचे चला जाता है तो एक छोटे हीटर का उपयोग किया जाता है ताकि मशरूम के बढ़ने के लिए कमरे की जलवायु स्थिर की जा सके. सिंह ने बताया कि स्थानीय बाजार और कश्मीर घाटी के अन्य हिस्सों में मशरूम की उपज लगभग 180-200 रुपये प्रति किलोग्राम की कीमत पर बेची जाती है.

सिंह ने कहा, “एक उद्यमी एक फसल से लगभग 40,000 रुपये कमाता है, जिसमें लगभग दो महीने लगते हैं और लागत कम करने के बाद शुद्ध लाभ लगभग 20,000-25,000 रुपये होता है.”

मशरूम की मांग कई जगहों पर होती है, इसको बेचने के लिए उपयुक्त स्थानों में होटल, दवाएं बनाने वाली कंपनियां आदि आते हैं. इसके अलावा मशरूम का उपयोग अधिकतर चाइनीज खाने में किया जाता है. इसके अन्य लाभकारी गुणों के कारण इसको मेडिकल के क्षेत्र में भी उपयोग किया जा रहा है. इतना ही नहीं इसका निर्यात एवं आयात भी कई देशों में किया जाता है, अर्थात इसको बेचने के लिए बहुत से क्षेत्र मौजूद है.


Edited by रविकांत पारीक