Brands
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
Youtstory

Brands

Resources

Stories

General

In-Depth

Announcement

Reports

News

Funding

Startup Sectors

Women in tech

Sportstech

Agritech

E-Commerce

Education

Lifestyle

Entertainment

Art & Culture

Travel & Leisure

Curtain Raiser

Wine and Food

YSTV

ADVERTISEMENT
Advertise with us

ईको-फ्रेंडली प्लेट्स बनाकर खुद को आत्मनिर्भर बना रही हैं असम के इस गाँव की महिलाएं

भारत समेत पूरी दुनिया इस समय प्लास्टिक कचरे के बढ़ते दबाव से जूझ रही है, ऐसे में इन महिलाओं की पहल इस दिशा में एक बड़ा बदलाव ला सकती है।

ईको-फ्रेंडली प्लेट्स बनाकर खुद को आत्मनिर्भर बना रही हैं असम के इस गाँव की महिलाएं

Monday August 09, 2021 , 3 min Read

इन ईको-फ्रेंडली प्लेट्स के निर्माण में साल और पलाश जैसे पेड़ों की पत्तियों का इस्तेमाल किया जाता है। इन महिलाओं के साथ ही अन्य ग्रामीणों को भी विश्वास है कि सरकार द्वारा चलाई जा रही प्लास्टिक मुक्त भारत की मुहिम का फायदा इनके इस काम को भी मिलेगा।

क

फोटो साभार : सोशल मीडिया

असम के एक गाँव में इन दिनों तमाम महिलाएं अपनी मेहनत और लगन के साथ खुद को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में आगे बढ़ रही हैं। हम सभी जानते हैं कि भारत समेत पूरी दुनिया इस समय प्लास्टिक कचरे के बढ़ते दबाव से जूझ रही है, ऐसे में इन महिलाओं की पहल इस दिशा में एक बड़ा बदलाव ला सकती है।


बक्सा जिले के एक गाँव में ये महिलाएं अब पेड़ के पत्तों से ईको-फ्रेंडली प्लेट्स का निर्माण कर रही हैं। मालूम हो कि भारत के तमाम हिस्सों में इस तरह पत्तों से बनी प्लेटों का इस्तेमाल शुरुआत से ही किया जा रहा है, हालांकि अब ये महिलाएं इन प्लेट्स को मेनस्ट्रीम में लाने की तरफ अपने सकारात्मक कदम बढ़ा रही है।

पूर्वज भी करते रहे हैं इस्तेमाल

अब प्लास्टिक मुक्त वातावरण बनाने की ओर बक्सा के उत्तरकुची गाँव की महिलाओं ने न सिर्फ अपने कदम बढ़ा दिये हैं, बल्कि इसके जरिये इन महिलाओं ने इससे आय अर्जित करने के साथ ही खुद को आत्मनिर्भर भी बनाना शुरू कर दिया है। इस काम को करने वाली अधिकतर महिलाएं गोरखा समुदाय से संबंध रखती हैं। इन महिलाओं द्वारा बनाई जाने वाली इन प्लेट्स को स्थानीय भाषा में दोना या दून कहा जाता है।


इन ईको-फ्रेंडली प्लेट्स के निर्माण में साल और पलाश जैसे पेड़ों की पत्तियों का इस्तेमाल किया जाता है। इन महिलाओं के साथ ही अन्य ग्रामीणों को भी विश्वास है कि सरकार द्वारा चलाई जा रही प्लास्टिक मुक्त भारत की मुहिम का फायदा इनके इस काम को भी मिलेगा।


ग्रामीणों का कहना है कि उनके पूर्वज हमेशा से इस तरह पत्तों से बनी प्लेट्स और दोने का इस्तेमाल अपने रोजमर्रा की जरूरतों और अन्य पूजा-पाठ के लिए भी करते रहे हैं। मालूम हो कि इन प्लेट्स के निर्माण के लिए जरूरी पत्ते इन ग्रामीण महिलाओं को उनके आस-पास ही आसानी से मिल जाते हैं।

ऑर्डर लेने को तैयार

इस पहल को शुरू करने और सुचारु रूप से जारी रखने का श्रेय गाँव की महिला समिति को जाता है, जो समुदाय की सालों पुरानी परंपरा को आगे बढ़ाने का काम भी कर रही हैं। ये महिलाएं अपनी इस कोशिश का श्रेय देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी देती हैं, जो देश को प्लास्टिक मुक्त बनाने की दिशा में खुद भी संकल्पबद्ध हैं।


ये महिलाएं अपने इस खास ईको-फ्रेंडली उत्पाद को अब देश के कोने-कोने तक पहुंचाना चाहती हैं और इसके लिए वो ऑर्डर लेने के लिए तैयार हैं।


आमतौर पर इन प्लेटों का इस्तेमाल त्योहारों और श्राद्ध आदि कार्यक्रमों में ही किया जाता रहा है, लेकिन अब इन प्लेट्स को फूड स्टॉल और घरों में इस्तेमाल होने वाली ‘यूज़ एंड थ्रो’ प्लेट्स की जगह भी इस्तेमाल में लाया जा सकता है, जो बड़े स्तर पर प्लास्टिक की खपत में कमी लाने का काम कर सकती हैं।


Edited by Ranjana Tripathi