दुधवा टाइगर रिजर्व की महिला बुनकर अपने करघे में तकनीकी इस्तेमाल से कमा रहीं बड़ा मुनाफा
एक स्वयं सहायता समूह (SHG) थारू हाथ करगहरेलु उद्योग से जुड़ी इन महिलाओं ने 2020 में अपने माल की बिक्री से कमाई में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की है। ये महिलाएं तकनीकी सहयोग मिलने को लेकर शुक्रगुजार हैं जिन्होंने अपने करघों में सुधार किया है।
उत्तर प्रदेश के तराई क्षेत्र में स्थित दुधवा टाइगर रिजर्व के उत्तरी बफर में महिला बुनकरों का एक समूह आज बहुत खुश है। एक स्वयं सहायता समूह (SHG) थारू हाथ करगहरेलु उद्योग से जुड़ी इन महिलाओं ने 2020 में अपने माल की बिक्री से कमाई में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की है। ये महिलाएं तकनीकी सहयोग मिलने को लेकर शुक्रगुजार हैं जिन्होंने अपने करघों में सुधार किया है।
मानसून के दौरान इस क्षेत्र में बाढ़ के कारण मिट्टी में अतिरिक्त नमी के चलते उत्पन्न पारंपरिक करघों के असंतुलन को ठीक करने के लिए विश्व वन्यजीव कोष (WWF) ने करघों का आधार तय किया। इन महिलाओं ने अपने करघों में पैडल जोड़ा है। इससे करघे को दो बुनकर संचालित कर सकते हैं। इससे बुनाई के जटिल डिजाइनों का उत्पादन समय कम हो गया।
इन करघों में परंपरागत रूप से इस्तेमाल किए जाने वाले लकड़ी के शटर की जगह अब फाइबर ग्लास शटल का इस्तेमाल किया जा रहा है जिससे पहले ज्यादा हल्का और अधिक बेहतर है। यानी दो चरखी आधारित डिजाइन- गरारी प्रणाली और रस्सी रोलर प्रणाली को बुनाई के लिए एक रिक्त थ्रेड पैनल के साथ करघा के थ्रेड रोलर और ड्यूर्री रोलर को समायोजित करते हुए काम में व्यवधान से बचने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
साइंस फॉर इक्विटी एंड डेवेलपमेंट (SEED) डिविजन, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST), भारत सरकार की TARA योजना के तहत फंडिंग के साथ इस तकनीकी पर अमल हो पाया है, और कोर सपोर्ट ग्रुप के माध्यम से कार्यान्वित- WWF इंडिया ने महिलाओं को होने वाली असुविधा को कम किया है और तमाम उपायों के जरिये गुणवत्तापूर्ण उत्पादन के साथ संचालन की दक्षता को बढ़ाया है। कोर सपोर्ट ग्रुप ने तकनीकी हस्तक्षेप, सुधार के लिहाज से उत्पादन के लिए एक केंद्र भी स्थापित किया है।
गाबरौला गांव में थारू हथकरघारेलु उद्योग की अध्यक्ष आरती राणा ने बताया, “हम पहले एक अस्थायी ढांचे में काम करते थे और बारिश के दौरान तो हम कभी काम नहीं कर पाते थे। अब इस उत्पादन केंद्र के साथ काम करने के दिनों की संख्या और हमारी उत्पादकता बढ़ गई है।”
इससे बुनकरों की आय और उत्पादन क्षमता में बढ़ोतरी हुई है। इस समूह ने वर्ष 2016-17 के दौरान कुल लाभ 85,000 रुपये के साथ 250,000 रुपये की बिक्री की है। वहीं वर्ष 2018-19 में इस समूह ने 240,000 रुपये की ब्रिक्री के साथ कुल 82,000 रुपये का लाभ कमाया था। इसी तरह 2019-20 में 2,08,000 रुपये की बिक्री के साथ कुल 80,000 रुपये का लाभ दर्ज किया था। लॉकडाउन के चलते 2020 में तुलनात्मक तौर पर बिक्री कम रही लेकिन समूह ने नवंबर 2020 से जनवरी 2021 के दौरान 42,000 रुपये की बिक्री की।
महिलाओं को कौशल निर्माण, डिजाइन सुधार, क्वालिटी कंट्रोल के साथ ही मानकीकरण, और लागत को लेकर भी प्रशिक्षिण मुहैया कराया गया है। इन महिलाओं को बाजार से जोड़ने और मौजूदा करघों में सुधार लाने के लिए भी समर्थन दिया गया है ताकि वे इन सब चीजों में अधिक सुविधाजनक महसूस करें और इसमें माहिर हों।
थारू हाथ करघारेलु उद्योग को 2016 में प्रधानमंत्री ने सम्मानित किया था जबकि उत्तर प्रदेश सरकार की रानी लक्ष्मीबाई वीरतापूर्नकर पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। राज्य सरकार ने उनके उत्पादों को बढ़ावा देने के लिहाज से 2018 से 2020 तक आपूर्ति करने के लिए 900,000/- रुपये का ऑर्डर भी दिया है।
(साभार: PIB)