दिलचस्प शोध: तापमान बढ़ने पर पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की दिमागी क्षमता बढ़ जाती है
गर्मी इन दिनो, जबकि 45 डिग्री सेल्सियस की ओर बढ़ रही है, वैज्ञानिकों ने घर का तापमान घटाने के कई नए तरीके ढूंढ निकालने के साथ ही एक चौंकाने वाला विचित्र दावा महिलाओं के बारे में किया है। अमेरिकी वैज्ञानिकों ने बताया है कि तापमान बढ़ने पर महिलाओं की दिमागी क्षमता पुरुषों के मुकाबले अधिक हो जाती है।
इन दिनो 45 डिग्री सेल्सियस की ओर बढ़ रहे खौलते मौसम में, तापमान पर फोकस वैज्ञानिकों की जो तरह-तरह की ताज़ा जानकारियां सामने आ रही हैं, उनमें एक, महिलाओं पर केंद्रित दिलचस्प शोध है यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया मार्शेल स्कूल ऑफ बिजनेस के 543 शोध छात्रों का। उनके रिसर्च के आधार पर वैज्ञानिक टॉम चैंग ने दावा किया है कि तापमान बढ़ने पर पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की दिमागी क्षमता बढ़ जाती है। उनका सुझाव है कि कंपनियों को अपने यहां काम करने वाली महिला कर्मचारियों को सुविधाएं देते समय इस बात का भी ध्यान रखना होगा।
एक अन्य अध्ययन में अमेरिका के नेशनल एरॉनाटिक एंड स्पेस एडमिनीस्ट्रेशन (नासा) तथा नेशनल सेंटर ऑफ एटमॉस्फीरिक रिसर्च के वैज्ञानिक क्रीस ओलेसन ने तापमान पर ही फोकस अपने निष्कर्ष में बताया है कि चूंकि सफेद रंग के ऊष्मा का कुचालक होने से यह कंक्रीट को तेजी से गर्म नहीं करता है, इसलिए खासकर शहरी क्षेत्र में भीषण गर्मी से बचने के लिए पक्के मकानों की छतों की पुताई सफदे रंग से की जाए तो घर का तापमान 30 प्रतिशत तक कम हो जाएगा। यदि दुनिया भर के सारे मकानों की छतों की इस तरह सफेदी कर दी जाए तो लगभग 44 गीगा टन कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन कम हो जाएगा।
एक अन्य तापमान केंद्रित शोध में लारेंस बर्कले प्रयोगशाला (एलबीएल) के वैज्ञानिक प्रो. हैदर के साथ कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने भी अपने अध्ययन में पाया है कि छतों की सफेदी से घर के अन्दर का तापमान औसतन 4 डिग्री सेल्शियस तक कम हो जाता है। एलबीएस के ही प्रो. एच अकबरी ने केलिफोर्निया के पास सेकरामेटा नामक स्थान पर अपने वैज्ञानिक रिसर्च में पाया कि छतों की सफेदी के साथ-साथ जिन मकान के आसपास पेड़-पौधे ज्यादा मिले, उनका तापमान अन्य घरों की तुलना में 40 प्रतिशत तक कम मिला क्योंकि छतों की सफेदी सूर्य के प्रकाश को परावर्तित कर देती है और पेड़ की पत्तियों से निकला जलवाष्प तापमान सोख लेता है।
एलबीएस के ही पूर्व निर्देशक प्रोफेसर आर्थर रोजेनफील्ड ने भी अपने प्रयोगों के आधार पर दावा किया है कि छत की सफेदी तथा उसके आसपास के पेड़-पौधों के कारण स्मॉग की मात्रा लगभग 10 प्रतिशत घट जाती है। तापमान कम होने से स्मॉग के निर्माण में सहायक ओजोन गैस का बनना भी धीमा पड़ जाता है।
दिल्ली सरकार के ऊर्जा नवीनीकरण विभाग ने कुछ समय पहले जब इस तरह के अध्ययनों के आधार पर ‘कूल रूफटॉप’ नाम से एक परियोजना प्रारम्भ कर न्यूफ्रेंड्स कॉलोनी के चार सरकारी स्कूलों की छतों की सफेदी कराई तो बिजली की खपत स्वतः 20 प्रतिशत तक कम हो गई। दो और स्कूली प्रयोगों में इसी तरह के नतीजे हैदराबाद और मध्य प्रदेश में भी सामने आए। उसके बाद सरकार ने तय किया कि भूमि विकास अधिनियम 1984 में संशोधन कर भवन अनुज्ञा के लिए रेखांकित अन्य अनिवार्य शर्तों के साथ छतों की सफेदी को भी जोड़ दिया जाए।
इसी दौरान छत ठंडा रखने की और भी कुछ विधियाँ सुझाई गईं, जिनमें बताया गया कि खोखली क्ले टाईल्स, ताप प्रतिरोधी टाईल्स, चाइना मोजेक टाईल्स, लाईम कंक्रीट, मिट्टी के उल्टे पात्र, शीतल जल पेंट, बाँस के पर्दे, हरी जालियों से छाया तथा थर्मीक्रीट आदि का निर्माण में प्रयोग करना तापमान रोधी होगा। इसी क्रम में रॉकफेलर फाउंडेशन ने 'तरु' संस्था के साथ सूरत और इन्दौर शहर में मकानों की छतों को ठंडा रखने के प्रयोग किए। चूना, खड़िया, सफेद सीमेंट में चिपकाने वाला रसायन पानी में घोलने के बाद उससे ब्रश से छत की पुताई करने पर तापमान घटने के अनुकूल परिणाम मिले।
तापरोधी इन्ही शोधों के बीच अंतरराष्ट्रीय अर्ध-शुष्क उष्णकटिबंधीय फसल अनुसंधान संस्थान (आइसीआरआइएसएटी) के मुताबिक, वैज्ञानिकों ने किसानों के लिए सुखद, काबुली चने की एक ऐसी प्रजाति विकसित कर ली है, जिस पर गर्मी और सूखे का असर नहीं पड़ेगा। रिसर्च के दौरान वैज्ञानिकों ने 45 देशों के चने की 429 प्रजातियों के जेनेटिक कोड का गहन अध्ययन किया। वैश्विक स्तर पर 21 शोध संस्थानों के 39 वैज्ञानिकों की टीम को चीन के शेनजेन की बीजीआइ के निकट यह सफलता मिली है। काबुली चने की सभी प्रजातियों को मिलाकर यह नई प्रजाति विकसित की गई है। इस शोध निष्कर्ष को आजमाकर भारत दालों के उत्पादन में आत्मनिर्भर हो सकता है।
गौरतलब है कि धरती के तापमान को बढ़ा रही कार्बन डाइऑक्साइड गैस (सीओ2) का स्तर अब तक की ऐतिहासिक ऊंचाई पर पहुंच चुका है। अमेरिका के हवाई में माउना लैब ऑब्जर्वेटरी में रिसर्च के दौरान सीओ2 का स्तर 415.26 पार्ट्स प्रति मिलियन (पीपीएम) मापा गया। यह पहली बार है, जब कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर 415 पीपीएम से अधिक मिला है। फिलहाल, वैज्ञानिकों ने इसे कम करने का तरीका भी ढूंढ लिया है। इस तापमान रोधी खोज में आइसलैंड यूनिवर्सिटी, फ्रांस के नेशनल सेंटर फॉर साइंटिफिक रिसर्च और अमेरिका की कोलंबिया यूनिवर्सिटी का साझा प्रयास रहा है। वैज्ञानिक अब इन खतरनाक ग्रीन हाउस गैस को चट्टानों में बदल रहे हैं। इससे पर्यावरण में कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर घटने के साथ ही ईंधन बनाने की प्रक्रिया को भी सीमित करने का तरीका ढूंढ लिया गया है।
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