World Car-Free Day: कितना कारगर है भारत को एक दिन कार-फ्री रखना
मोटर चालकों को एक दिन के लिए अपनी कार नहीं चलाने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए दुनिया भर में हर साल 22 सितंबर को वर्ल्ड कार-फ्री डे मनाया जाता है. लोगों में पर्यावरण के संरक्षण के प्रति जागरूकता और लोगों को वाहनों से होने वाले प्रदूषण के बारे में समझाना और उन्हें जागरूक करना इसे मनाने की पीछे का उद्देश्य है.
World Car-Free Day का इतिहास
1990 के दशक से आइसलैंड, ब्रिटेन आदि देशों में कई अनौपचारिक कार-मुक्त दिनों का आयोजन किया जा रहा है. हालांकि, 2000 में कार्बस्टर्स (अब वर्ल्ड कार-फ्री नेटवर्क) द्वारा शुरू किए गए वर्ल्ड कार-फ्री डे के साथ अब यह अभियान वैश्विक हो गया है.
यूएनईपी (United Nations Environmental Programmes) की आधिकारिक वेबसाइट कहती है, "कार-मुक्त होने के नतीजे साफ तौर पर देखे जा सकते हैं. उदाहरण के लिए, पेरिस, फ्रांस में पहली बार कार-मुक्त दिन को सितंबर 2015 में आयोजित किया गया था. इसकी वजह से निकास उत्सर्जन को 40 फीसदी तक कम पाया गया था."
ग्लोबल वार्मिंग बड़ा खतरा
मोटर वाहनों से निकलने वाले धुएं से पर्यावरण को कितना नुकसान पहुंच रहा है यह बताने की ज़रूरत नहीं है. ग्लेशियर पिघल रहे हैं, असमय होने वाली बेतहाशा बारिश से बाढ़ का खतरा बढ़ रहा है, जंगलों में आग लग रही है, गर्मी में हीटवेव से लोगों की जानें जा रही है. इन सब का एक प्रमुख कारण ग्लोबल वार्मिंग है. पर्यावरण में प्रदुषण की बड़ी वजहों में वाहनों से होने वाली प्रदुषण भी है. इस सन्दर्भ में एक दिन कार-फ्री डे रखने की महत्ता समझी जा सकती है.
दुनियाभर की सरकारें अपने नागरिकों को ऐसे उपाय अपनाने के लिए प्रेरित कर रही हैं जिससे पर्यावरण को होने वाले नुकसान को कम किया जा सके. इसमें लोगों को वाहन शेयरिंग जैसे बाइक या टैक्सी पूलिंग करने के लिए प्रेरित किया जाता रहा है. साथ ही पब्लिक ट्रांसपोर्ट के इस्तेमाल को भी बढ़ावा दिया जाता है. इस उपायों को अपनाने से वाहनों से निकलने वाला उत्सर्जन और वायु प्रदूषण कम किया जा सकता है.
इलेक्ट्रिक व्हीकल्स (electric vehicle) का मार्केट में आना इसी दिशा में उठा एक कदम माना जा सकता है क्योंकि बैटरी से चलने वाले इलेक्ट्रिक वाहनों से वायु प्रदूषण नहीं फैलता है. सरकारें इसे लोकप्रिय बनाने के लिए लोगों को कई इंसेंटिव और सब्सिडी भी दे रही है.
हालांकि यह बात भी ध्यान लेने लायक है कि प्रदुषण को कम करने के लिए पब्लिक ट्रांसपोर्ट को बढ़ावा तो दिया जाता है लेकिन पब्लिक ट्रांसपोर्ट खस्ताहाल हैं. अगर हम दुपहिये वाहनों की बात करें तो इनकी पार्किंग की अलग समस्या रहती है. क्या सरकार की सोच में पैदल चले वाले लोग, साइकिल चालक या दुपहिया वाहन चालक शामिल हैं? कई शहरों में पैदल चलने वाले लोगों के लिए न तो फुटपाथ हैं और न ही कहीं ज़ेबरा क्रॉसिंग या ओवरहेड ब्रिज की व्यवस्था. कई शहरों में नगर निगम द्वारा बनाई गई साइकिल ट्रैक की योजना भी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई है.
इन हालातों में कार फ्री डे औपचारिकता मात्र दिखती है और सरकार सिर्फ इस दिन पर बड़ी-बड़ी घोषणाएं कर औपचारिकता पूरी कर रही है.