विश्व गौरैया दिवस: गौरैया के अस्तित्व को बचाने को लेकर समर्पित हैं राजस्थान के रौनक चौधरी
20 मार्च 2010 को पहली बार विश्व गौरैया दिवस मनाया गया था। राजस्थान के पक्षी प्रेमी रौनक चौधरी गौरैया के अस्तित्व को बचाने को लेकर समर्पित हैं और अपने शहर परबतसर व आस पास के क्षेत्र में पाई जाने वाली गौरैया की प्रजाति का संरक्षण करने में लगे हैं।
आंगन में फुदकती-चहकती एक नन्ही सी चिड़िया.. जिसे देखकर घर के सब सदस्यों का मन हर्ष से भर उठता है। जी हां, हम बात कर रहे हैं, उस छोटी सी चिड़िया की जिसे गौरेया भी कहा जाता है।
आज 20 मार्च को विश्व भर में विश्व गौरेया दिवस का आयोजन किया जाता है। यह छोटा-सा दिखने वाला पक्षी हम सब के बचपन की बहुत सारी यादों के साथ जुड़ा हुआ है। वर्तमान में बढ़ते शहरीकरण में इसे बचाना ज़रूरी है। बढ़ते प्रदूषण, यातायात, पतंगबाजी इत्यादि से इस पक्षी पर खतरा बना रहता है। इनके चहकने की आवाज सुनकर ही मन आनंद से भर उठता है।
राजस्थान के नागौर जिले के शहर परबतसर के रहने वाले पक्षी प्रेमी रौनक चौधरी सदैव पक्षियों को बचाने को लेकर सजग रहते हैं। इस अवसर पर हमने उनसे मिलकर इस पक्षी के बारे में विस्तार से जानकारी जुटाई है।
रौनक चौधरी कहते हैं, "आवासीय ह्रास, अनाज में कीटनाशकों के इस्तेमाल, आहार की कमी और मोबाइल टॉवरों से निकलने वाली सूक्ष्म तरंगें गौरैया के अस्तित्व के लिए खतरा बन रही हैं। लोगों में गौरैया को लेकर जागरूकता पैदा किए जाने की ज़रूरत है, क्योंकि कई बार लोग अपने घरों में इस पक्षी के घोंसले को बसने से पहले ही उजाड़ देते हैं।"
रौनक आगे कहते हैं, "गौरैया को फिर से बुलाने के लिए लोगों को अपने घरों में कुछ ऐसे स्थान उपलब्ध कराने चाहिए, जहां वे आसानी से अपने घोंसले बना सकें और उनके अंडे तथा बच्चे हमलावर पक्षियों से सुरक्षित रह सकें। गौरैया की आबादी में ह्रास का एक बड़ा कारण यह भी है कि कई बार उनके घोंसले सुरक्षित जगहों पर न होने के कारण कौए जैसे हमलावर पक्षी उनके अंडों तथा बच्चों को खा जाते हैं।"
आवश्यकता है इस प्रजाति के सरंक्षण की
इस प्रजाति को बचाने के लिये प्रत्येक व्यक्ति को अपने घर पर पानी और अनाज के दाने डालकर बर्तन बांधने चाहिए। जिससे भयंकर गर्मी के दौर में यह पक्षी बेहाल नहीं हो सके। घरों की छतों पर पानी और भोजन के साथ-साथ संभव हो तो घौसलें के लिए जगह भी बनानी चाहिए। आधुनिकीकरण के इस दौर में आजकल बाज़ार में सुंदर लकड़ी के घौसलें मिलते हैं, जिन्हें आराम से कहीं भी बांध और टाँगा जा सकता है।
अपनी संतान से करती है बेहद प्रेम
घरों को अपनी चीं-चीं से चहकाने वाली गौरैया अब दिखाई नहीं देती है। इस छोटे आकार वाले खूबसूरत पक्षी का कभी इंसान के घरों में बसेरा हुआ करता था और बच्चे बचपन से इसे देखते हुए बड़े हुआ करते थे। अब स्थिति बदल गई है। गौरैया के अस्तित्व पर छाए संकट के बादलों ने इसकी संख्या काफ़ी कम कर दी है और कहीं-कहीं तो अब यह नदारद हो चुकी है। पहले यह चिड़िया जब अपने बच्चों को चुग्गा खिलाया करती थी तो इंसानी बच्चे इसे बड़े कौतूहल से देखते थे। लेकिन अब तो इसके दर्शन भी मुश्किल हो गए हैं और यह विलुप्त हो रही प्रजातियों की सूची में आ गई है। यदि इसके संरक्षण के उचित प्रयास नहीं किए गए तो हो सकता है कि गौरैया इतिहास में नाम मात्र बन जाए और भविष्य की पीढ़ियों को यह देखने को ही न मिले।
परबतसर में पाई जाती है गौरेया की दो प्रजातियां
रौनक के अनुसार उनके शहर परबतसर व आस-पास के क्षेत्र में दो प्रजाति की गौरैया पाई जाती है, एक घरेलु गौरैया और दूसरी है पीलकंठी गौरैया। घरेलू गौरेया का वैज्ञानिक नाम पास्सेर डोमेस्टिक्स एवं पीलकंठी गौरेया का वैज्ञानिक नाम पेट्रोनिआ जेन्थोंकोलीस है। पीलकंठी गौरैया अमूमन इंसानी बस्ती से दूर रहना पसंद करती है व इसके विपरीत घरेलू गौरैया मनुष्य के बनाए हुए घरों के आसपास रहना पसंद करती है। 14 से 18 सेमी लंबी इस चिड़िया को हर तरह की जलवायु पसंद है। जिसकी वजह से यह छोटा पक्षी एशिया व यूरोप के अधिकांश भाग में पाया जाता है I UCN के अनुसार घरेलु गौरैया की संख्या लगातार कम होती जा रही है। आंध्र विश्वविद्यालय द्वारा किए गए अध्ययन के मुताबिक़ गौरैया की आबादी में क़रीब 60 फीसदी की कमी आई है। यह ह्रास ग्रामीण और शहरी दोनों ही क्षेत्रों में हुआ है। पश्चिमी देशों में हुए अध्ययनों के अनुसार गौरैया की आबादी घटकर खतरनाक स्तर तक पहुंच गई है।
पूर्व जिला कलेक्टर भी चला रहे हैं अभियान
नागौर के पूर्व जिला कलेक्टर एवं वर्तमान में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के निदेशक डॉ जितेंद्र कुमार सोनी भी पक्षियों को बचाने के लिए परिंडा अभियान जैसी मुहिम चला रहे है। हाल ही उन्होंने सोशल मीडिया के माध्यम से गौरेया को सरंक्षित करने की अपील की है।