साल 2020 में इन ढाबा मालिकों को सोशल मीडिया ने बनाया हीरो
साल 2020 में इन ढाबे वालों ने सोशल मीडिया की बदौलत हासिल की सफलता
"आज हम आपको उन ढाबा वालों के बारे में बताने जा रहे हैं जिन्होंने साल 2020 में सोशल मीडिया की बदौलत काफी सुर्खियां बटोरी हैं। अगर हम कहें कि सोशल मीडिया पर छाने के बाद उनकी कमाई में दिन दोगुनी, रात चौगुनी वृद्धि हुई है, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।"
ऐसा कहा जाता है कि "पंजाबी जहां भी जाते हैं वहां ढाबा चलता है।" अगर इतिहास खंगालकर देखा जाए तो आप पायेंगे कि "ढाबा, असल में पंजाबियों (पंजाब के लोगों) की देन है।"
पहला पंजाबी ढाबा शायद भारत के शहरों को राजमार्गों (राष्ट्रीय, राज्य और गांव की सड़कों) से जोड़ने के तुरंत बाद स्थापित किया गया था। हालांकि पहले पंजाबी ढाबे के रूप में किसी भी रिकॉर्ड का उल्लेख नहीं किया जा सकता है, लेकिन यह माना जा सकता है कि इस तरह के रेस्तरां पहले ग्रैंड ट्रंक रोड पर शुरू किये गए थे जो पेशावर से अमृतसर और दिल्ली से कलकत्ता तक थे।
ढाबे का भोजन आमतौर पर सस्ता होता है और इसमें 'होममेड' का अहसास होता है। आज हम आपको उन ढाबा मालिकों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिन्होंने साल 2020 में सोशल मीडिया की बदौलत काफी सुर्खियां बटोरी हैं। अगर हम कहें कि सोशल मीडिया पर छाने के बाद उनकी कमाई में दिन दोगुनी, रात चौगुनी वृद्धि हुई है, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
बाबा का ढाबा
साल 2020 'बाबा का ढाबा' के नाम रहा। इस साल में ढाबा वालों की सफलता का सिलसिला इसी नाम से शुरू होता है।
दिल्ली के मालवीय नगर में 'बाबा का ढाबा' भोजनालय चलाने वाले 80 वर्षीय बुजुर्ग दंपती बीते 30 साल से चुपचाप राहगीरों को घर का बना हुआ सुपाच्य भोजन परोस रहे थे, फिर भी बमुश्किल गुजारा हो पाता था। कई बार तो उन्हें बचा हुआ खाना फेंकना पड़ता था। लेकिन वो कहते हैं ना 'देने वाला जब भी देता, देता छपर फाड़ के'।
फिर एक दिन यूट्यूब फूड ब्लॉगर गौरव वासन द्वारा शूट किया गया वीडियो सोशल मीडिया पर इसकदर वायरल हुआ कि, खाना खाने के लिए 'बाबा का ढाबा' के सामने लोगों की लंबी कतारें लग गई।
कई बॉलीवुड स्टार्स, नेता, सोशल मीडिया इनफ्लुएंसर्स इस बुजुर्ग दंपति की मदद के लिये आगे आए, जिनमें सोनम कपूर, रवीना टंडन, स्वरा भास्कर, क्रिकेटर आर अश्विन और यहां तक कि फूड डिलीवरी स्टार्टअप ज़ोमैटो भी शामिल हैं।
कांता प्रसाद, जो 1990 से स्टाल चला रहे हैं, ने समाचार ऐजेंसी ANI से बात करते हुए कहा, "कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान कोई बिक्री नहीं हुई थी, लेकिन अब ऐसा लगता है कि पूरा भारत हमारे साथ है।"
हालांकि बाद में 'बाबा का ढाबा' ने कई और कारणों से भी सुर्खियां बटौरी।
अपनापन राजमा-चावल
दिल्ली के पीरागढ़ी की रहने वाली सरिता कश्यप के पास कोई ठेला, होटल या बड़ी दुकान नहीं है वो अपने स्कूटर पर भी बर्तन चूल्हा रखकर इसे चला रही है।
अवानिश सारन जोकि आईएएस ऑफिसर हैं, ने सोशल मीडिया पर एक फोटो शेयर करते हुए लिखा, "ये हैं पश्चिम विहार दिल्ली की सरिता कश्यप, पिछले 20 साल से ये अपनी स्कूटी पर ‘राजमा-चावल’ का स्टाल लगाती हैं। अगर आपके पास पैसे नहीं हैं, तो भी आपको ये भूखा नहीं जाने देंगी। खाली समय मे बच्चों को पढ़ाती भी हैं।"
नवभारतटाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, सरिता पहले एक ऑटोमोबाइल कंपनी में नौकरी करती थी। सिंगल मदर सरिता बीते कुछ वर्षों से नौकरी छोड़ अपनी स्कूटी पर राजमा चावल का स्टॉल लगाती हैं। उनकी बेटी कॉलेज पढ़ती है। घर में कमाने वाली वो अकेली ही हैं।
सरिता कहती हैं कि कमाई तो होती रहेगी लेकिन इस काम में आने के बाद जो लोगों को खाना खिलाने की खुशी है वो कहीं नहीं मिलती।
केवल चार महीनों में, अपनापन के भोजन ने भूखे ग्राहकों की कतार में नाम कमाया। 40 रुपये (हाफ) और 60 रुपये (फुल) की कीमत पर, उनके राजमा-चावल के साथा घर का बना रायता और प्याज का सलाद मिलता है।
सरिता कश्यप स्टॉल से अपनी आजीविका कमाती हैं। राजमा-चावल के लगभग 70-80 डिब्बे औसतन बेचकर, उनकी दैनिक आय लगभग 3,000-4,000 रुपये है, जिसका एक बड़ा हिस्सा वह नि:शुल्क भोजन उपलब्ध कराने में लगाती हैं।
बच्चू दादा का ढाबा
दिल्ली के 'बाबा का ढाबा' का वीडियो सोशल मीडिया पर काफ़ी वायरल हुआ। लॉकडाउन की वजह से बुज़ुर्ग दंपत्ति की कमाई लगभग ख़त्म हो गई थी पर वीडियो देखकर लोगों ने उनकी मदद की। बाबा का ढाबा तो मशहूर हो गया है पर गुजरात में बच्चूदादा का एक ढाबा है जिसे कम ही लोग जानते हैं। ये बुज़ुर्ग शख़्स दशकों से लोगों को खाना खिला रहे हैं और ग़रीब मजबूर लोगों से पैसे भी नहीं लेते।
गुजरात राज्य के मोरबी शहर में 74 साल के बच्चू दादा है जो पिछले 40 सालों से एक ढाबा चला रहे हैं। असल में बच्चू दादा का पूरा नाम बचुभाई नारंगभाई पटेल है।
द हिंदू की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इन दिनों बचु दादा यह ढाबा अकेले ही चला रहे हैं। पहले उनकी मदद करने वाली उनकी पत्नी उनके साथ थी मगर 10 माह पहले ही उनकी पत्नी का निधन हो गया। दादा के इस ढाबे की ख़ास स्पेशलिटी है, उनकी थाली… जिसकी कीमत सिर्फ 40 रुपये है। इस थाली में तीन सब्जियां, रोटी, दाल, चावल, पापड़ के साथ छाछ भी मौजूद है।
ढाबे का व्यापार समाजसेवा है। कमाई के नाम पर बचुदादा के पास जो भी होता है उसे वह इसी ढाबे में लगा देते हैं।