किसान आंदोलन: घर-परिवार से दूर, ठंड से बेपरवाह बॉर्डर पर डटे देश के किसान
ऑल इंडिया किसान संघर्ष कोऑर्डिनेशन कमिटी के बैनर तले बुलाए गए भारत बंद में देशभर के 400 से ज्यादा किसान संगठन शामिल हैं।
"केंद्र सरकार के कृषि कानून के खिलाफ पंजाब और हरियाणा के बाद देश भर के किसान धरना प्रदर्शन कर रहे हैं। जिन बिलों को मोदी सरकार किसानों के हित में बता रही है, असल में उसकी वजह से ही देश के किसान आज सड़कों पर हैं।देशभर के किसान संगठनों ने भारत बंद का आह्वान किया है, जिसमें पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, राजस्थान समेत कई राज्यों के किसान संगठन शामिल हैं। ऑल इंडिया किसान संघर्ष कोऑर्डिनेशन कमिटी के बैनर तले बुलाए गए भारत बंद में देशभर के 400 से ज्यादा किसान संगठन शामिल हैं। मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस समेत दर्जन भर राजनीतिक दलों ने भी बंद का समर्थन किया है।"
केंद्र सरकार के नए कृषि कानूनों पर सरकार के साथ कई दौर की बातचीत के बाद पिछले 12 दिनों से प्रदर्शन कर रहे किसानों ने आज राष्ट्रव्यापी भारत बंद का आह्वान किया है। किसानों का भारत बंद आज सुबह 11 बजे से दोपहर 3 बजे तक रहा। किसानों के भारत बंद को कई राजनीतिक पार्टियों से लेकर कुछ मजदूर संघों ने भी समर्थन देने का एलान किया। जो विपक्षी दल पंजाब, दिल्ली, राजस्थान, बंगाल, केरल, झारखंड, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ और पुदुचेरी में हैं, वे भी बंद का समर्थन कर रहे हैं। साथ ही देशभर के किसान संगठनों ने भी भारत बंद का आह्वान किया है, जिसमें पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, राजस्थान समेत कई राज्यों के किसान संगठन शामिल हैं। ऑल इंडिया किसान संघर्ष कोऑर्डिनेशन कमिटी के बैनर तले बुलाए गए भारत बंद में देशभर के 400 से ज्यादा किसान संगठन शामिल हैं।
ट्रांसपोर्टरों का संगठन एआईएमटीसी किसानों के भारत बंद के समर्थन में मंगलवार को देशभर में ट्रांसपोर्ट सेवाओं का परिचालन बंद रखेगा। संगठन पहले दिन से किसानों के आंदोलन का समर्थन कर रहा है। अखिल भारतीय मोटर ट्रांसपोर्ट कांग्रेस (एआईएमटीसी) देशभर के 95 लाख ट्रक परिचालकों और अन्य इकाइयों का प्रतिनिधित्व करने वाला शीर्ष संगठन है।
पीटीआई के अनुसार एआईएमटीसी के अध्यक्ष कुलतरण सिंह अटवाल ने कहा,
‘‘ पहले सिर्फ उत्तर भारत के ट्रांसपोर्टरों ने भारत बंद में शामिल होने का निर्णय किया था। लेकिन ट्रांसपोर्ट संगठनों और यूनियनों की बैठक के बाद अब यह निर्णय लिया गया है कि देश के अन्य सभी हिस्सों में भी भारत बंद का समर्थन किया जाएगा। इसके चलते आठ दिसंबर 2020 को देशभर में ट्रकों का परिचालन निलंबित रहेगा।’’
एआईएमटीसी ने एक बयान में कहा कि यह निर्णय संगठनों की एक वर्चुअल बैठक में लिया गया। भारत बंद को समर्थन देने का फैसला सर्वसम्मति से हूआ है। एआईएमटीसीके पूर्व अध्यक्ष और मुख्य समिति के चेयरमैन बाल मलकित सिंह ने कहा कि ट्रक चालक विभिन्न जिलों के ट्रक टर्मिनलों पर शांतिपूर्ण धरना और विरोध प्रदर्शन का आयोजन करेंगे।
खेती-किसानी को देश की जीवन रेखा की रीढ़ बताते हुए एआईएमटीसी ने कहा कि ट्रांसपोर्ट संगठन और उसके नेता देशभर के 739 जिलों और तालुकाओं में आगे आकर किसानों के भारत बंद का समर्थन करेंगे। साथ ही जिलाधिकारियों को ज्ञापन सौंपने की भी कोशिश करेंगे।
आपको बता दें कि व्यापारियों के संगठन कंफेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) और ट्रांसपोर्टरों के संगठन ऑल इंडिया ट्रांसपोर्टर्स वेलफेयर एसोसिएशन (एआईटीडब्ल्यूए) ने किसानों द्वारा आज लाए गए 'भारत बंद' को समर्थन नहीं देने का ऐलान किया है। कैट ने कहा नए कृषि कानूनों के खिलाफ मंगलवार को किसानों के 'भारत बंद' के दौरान दिल्ली और देश के अन्य हिस्सों में बाजार खुले रहेंगे। वहीं आम आदमी पार्टी, एनसीपी, तृणमूल कांग्रेस, शिवसेना, द्रमुक और इसके घटक, टीआरएस, राजद, सपा, बसपा, वामदल, पीएजीडी समेत देश की करीब 18 राजनीतिक पार्टियों ने भारत बंद का समर्थन किया है, लेकिन किसानों का कहना है कि वे इसे राजनीतिक रंग नहीं देना चाहते हैं, इसलिए जो भी राजनीतिक दल समर्थन दे रहे हैं वे अपनी पार्टी का झंडा न उठाएं और किसानों का साथ दें। किसानों के भारत बंद को देखते हुए केंद्र सरकार ने भी एडवाइजरी जारी की है और सुरक्षा की कड़ी व्यवस्था करने का निर्देश दिया है।
किसान आंदोलन का असर ज्यादातर दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, राजस्थान समेत गैर भाजपा शासित राज्यों में दिखेगा। किसान आंदोलन में ज्यादातर पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के किसान हैं। इसलिए ऐसी उम्मीद की जा रही है कि यहां इसका व्यापक असर देखने को मिलेगा। एक वजह यह भी है कि यहां की प्रमुख विपक्षी पार्टियों ने भी किसानों के भारत बंद का समर्थन किया है।
आज भारत बंद की वजह से आम लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है, क्योंकि दूध, फल-सब्जी की आपूर्ति आज बाधित रहेगी। वहीं, कल यानी बुधवार को किसानों और सरकार में छठे दौर की बातचीत है। दिल्ली पुलिस ने प्रस्तावित भारत बंद के दौरान सड़कों पर सुचारू यातायात सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त प्रबंध किए हैं। इस संबंध में एक यातायात परामर्श भी जारी किया गया है। दिल्ली पुलिस ने एहतियात के तौर पर हरियाणा और उत्तर प्रदेश से लगती सीमाओं पर तैनाती बढ़ा दी है और सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए हैं। दिल्ली यातायात पुलिस ने ट्वीट करके सिंघू, औचंदी, पियाओ मनीयारी और मंगेश बॉर्डर के बंद होने की जानकारी दी है। टिकरी और झरोदा बॉर्डर भी बंद है।
किसान क्यों कर रहे हैं आंदोलन और क्या है उनकी मांग?
केंद्र सरकार के कृषि कानून के खिलाफ पंजाब और हरियाणा के बाद देश भर के किसान धरना प्रदर्शन कर रहे हैं। जिन बिलों को मोदी सरकार किसानों के हित में बता रही है, असल में उसकी वजह से देश के किसान आज सड़कों पर हैं। किसानों को सबसे बड़ा डर न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) खत्म होने का है। इस बिल के जरिए सरकार ने कृषि उपज मंडी समिति (APMC) यानी मंडी से बाहर भी कृषि कारोबार का रास्ता खोल दिया है। गौरतलब है कि मंडी से बाहर भी ट्रेड एरिया घोषित हो गया है। मंडी के अंदर लाइसेंसी ट्रेडर किसान से उसकी उपज एमएसपी पर लेते हैं, लेकिन बाहर कारोबार करने वालों के लिए एमएसपी को बेंचमार्क नहीं बनाया गया है। इसलिए मंडी से बाहर एमएसपी मिलने की कोई गारंटी नहीं है।
सरकार ने बिल में मंडियों को खत्म करने की बात कहीं पर भी नहीं लिखी है, लेकिन उसका इंपैक्ट मंडियों को तबाह कर सकता है, जिसका अंदाजा लगाकर किसान डरा हुआ है। आढ़तियों को भी डर सता रहा है। जिसके चलते इस आंदोलन में किसान और आढ़ती एक साथ हैं। उनका मानना है कि मंडियां बचेंगी तभी तो किसान उसमें एमएसपी पर अपनी उपज बेच पाएगा। इस बिल से ‘वन कंट्री टू मार्केट’ वाली नौबत पैदा होती नजर रही है, क्योंकि मंडियों के अंदर टैक्स का भुगतान होगा और मंडियों के बाहर कोई टैक्स नहीं लगेगा। अभी मंडी से बाहर जिस एग्रीकल्चर ट्रेड की सरकार ने व्यवस्था की है उसमें कारोबारी को कोई टैक्स नहीं देना होगा, जबकि मंडी के अंदर औसतन 6-7 फीसदी तक का मंडी टैक्स लगता है।
किसानों का कहना है कि आढ़तिया या व्यापारी अपने 6-7 फीसदी टैक्स का नुकसान न करके मंडी से बाहर खरीद करेगा, जहां उसे कोई टैक्स नहीं देना है। इस फैसले से मंडी व्यवस्था हतोत्साहित होगी। मंडी समिति कमजोर होंगी तो किसान धीरे-धीर बिल्कुल बाजार के हवाले चला जाएगा। जहां उसकी उपज का सरकार द्वारा तय रेट से अधिक भी मिल सकता है और कम भी। किसानों की इस चिंता के बीच राज्य सरकारों (पंजाब और हरियाणा) को इस बात का डर सता रहा है कि अगर निजी खरीदार सीधे किसानों से अनाज खरीदेंगे तो उन्हें मंडियों में मिलने वाले टैक्स का नुकसान होगा। दोनों राज्यों को मंडियों से मोटा टैक्स मिलता है, जिसे वे विकास कार्य में इस्तेमाल करते हैं। गौरतलब है कि हरियाणा में बीजेपी का शासन है इसलिए यहां के सत्ताधारी नेता इस मामले पर खामोशी बनाये हुए हैं।
सरकार द्वारा लाए गए बिल में एक बिल कांट्रैक्ट फार्मिंग से संबंधित है, जिसमें किसानों के अदालत जाने का हक पूरी तरह छीन लिया गया है। कंपनियों और किसानों के बीच विवाद होने की सूरत में एसडीएम फैसला करेगा। उसकी अपील डीएम के यहां होगी न कि कोर्ट में। किसानों को डीएम, एसडीएम पर विश्वास नहीं है क्योंकि उन्हें लगता है कि इन दोनों पदों पर बैठे लोग सरकार के हिसाब से काम करते हैं इसलिए वे कभी किसानों के हित के बारे में नहीं सोच सकते।
आपको बता दें कि केंद्र सरकार जो बात एक्ट में नहीं लिख रही है उसका ही वादा बाहर कर रही है, इसलिए किसानों में भ्रम फैल रहा है। सरकार अपने ऑफिशियल बयान में एमएसपी जारी रखने और मंडियां बंद न होने का वादा कर रही है, पार्टी फोरम पर भी यही कह रही है, लेकिन यही बात एक्ट में नहीं लिख रही। देश के किसानों को लगता है कि सरकार का कोई भी बयान एग्रीकल्चर एक्ट में एमएसपी की गारंटी देने की बराबरी नहीं कर सकता, क्योंकि एक्ट की वादाखिलाफी पर सरकार को अदालत में खड़ा किया जा सकता है, जबकि पार्टी फोरम और बयानों का कोई कानूनी आधार नहीं है। हालांकि, सरकार किसानों की इन आशंकाओं को खारिज कर रही है।
थम नहीं रहा किसानों की मौत का सिलसिला
अपने घरों से दूर, सर्दियों से बेपरवाह दिल्ली के बॉर्डर पर डटे किसानों का कहना है कि वे लंबे संघर्ष के लिए तैयार हैं। जब तक उनकी मांगें मान नहीं ली जातीं तब तक वे हटेंगे नहीं। इसके लिए उनको महीनों तक सड़कों पर बिताना पड़े तो वो पीछे नहीं हटेंगे। इसके लिए राशन से लेकर दवाईयों तक हर चीज का इंतजाम है, लेकिन फिर भी किसानों की मौत का सिलसिला लगातार जारी है। आंदोलन के दौरान अब एक और किसान की मौत का मामला सामने आया है। सोमवार को अचानक से उसकी तबियत खराब हो गई, जहां से उसे बहादुरगढ़ के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया था। किसान को हॉर्ट अटैक आया और इलाज के दौरान ही किसान की आज सुबह मौत हो गई। यह किसान आंदोलन के पहले दिन से ही टिकरी बॉर्डर पर प्रदर्शन में शामिल था।
सूत्रों की मानें तो पिछले 12 दिनों में यह आठवें किसान की मौत है। इससे पहले लुधियाना समराला के खटरा भगवानपुरा गांव के रहने वाले 50 वर्षीय किसान गज्जर सिंह की दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई थी। वहीं रविवार रात 1:30 पर गाड़ी में शार्ट सर्किट के कारण आंदोलन में मदद करने आए ट्रैक्टर मिस्त्री की भी मौत हो गई थी। वह आंदोलन में शामिल किसानों के ट्रैक्टरों की मरम्मत करने के लिए आया था।
किसानों की ओर से बुलाए गए भारत बंद के बीच आम आदमी पार्टी ने आरोप लगाया है कि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को उनके घर में नजरबंद कर दिया गया। हालांकि, दिल्ली पुलिस ने इन दावों को पूरी तरह खारिज कर दिया है। पुलिस का कहना है कि मुख्यमंत्री को नजरबंद नहीं किया गया है। डीसीपी ने कहा, 'दिल्ली के मुख्यमंत्री को हाउस अरेस्ट करने का दावा गलत है। वे कानून के तहत अपनी गतिविधियां जारी रखने के लिए पूरी तरह से स्वतंत्र हैं। केजरीवाल सोमवार को सिंघु बॉर्डर पर किसानों से मुलाकात करने गए थे। उनका कहना था कि वे यहां पर किसानों के लिए किए गए इंतजाम का जायजा लेने आए हैं। उन्होंने किसानों के भारत बंद के आह्वान का भी समर्थन किया था।
वहीं दूसरी तरफ किसानों के भारत बंद में हिस्सा लेने जा रहे भीम आर्मी चीफ चंद्रशोखर रावण को उत्तर प्रदेश पुलिस ने हिरासत में ले लिया है। यूपी पुलिस ने राष्ट्रीय लोक दल नेता इंदरजीत सिंह को भी गाजियाबाद में हाउस अरेस्ट कर लिया है। सिंह जब किसान आंदोलन और भारत बंद में हिस्सा लेने जा रहे थे, तब यूपी पुलिस ने ये कार्रवाई की।
वाराणसी में किसान आंदोलन के बंद के समर्थन में समाजवादी पार्टी के लोग रविंद्रपुरी के नाराम बाबा के आश्रम से लंका तक किसान यात्रा निकालना चाह रहे थे, तभी पुलिस वहां भारी मात्रा में पहुंच गई और उन्हें रोक दिया। पुलिस ने आयोजन स्थल पर हरेक को पहुंचने से रोकने के लिए पुख्ता इंतजाम किए थे।
कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर ने आज एक बार फिर एमएसपी वाली बात दोहराई। उन्होंने कृषि कानूनों की जानकारी देते हुए एक ट्वीट शेयर किया, जिसमें उन्होंने लिखा,
"नए कृषि सुधार कानूनों से आएगी किसानों के जीवन में समृद्धि! विघटनकारी और अराजकतावादी ताकतों द्वारा फैलाए जा रहे भ्रामक प्रचार से बचें। एमएसपी और मंडियां भी जारी रहेंगी और किसान अपनी फसल अपनी मर्जी से कहीं भी बेच सकेंगे।"
गौरतलब है, कि कृषि कानूनों पर जारी किसान आंदोलन के बीच केंद्र सरकार आक्रामक रुख अपनाए हुए है। केंद्र सरकार बार-बार इस बात पर जोर दे रही है कि लागू हुए इन नए कानूनों के बाद भी किसानों को उनके फसल पर मिलने वाले न्यूनतम समर्थन मूल्य की व्यवस्था जारी रहेगी। लेकिन किसानों का कहना है कि सरकार ने नए कानूनों में इसका कहीं जिक्र नहीं किया है।