इस बिजनेसमैन ने पर्यावरण को संवारने का बीड़ा उठाया, 40 से अधिक जंगल लगा चुके
2018 में संयुक्त राष्ट्र की इंटरगवर्नमेंटल पैनल क्लाइमेट चेंज की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि वैश्विक तापमान को नियंत्रित करने के लिए हमारे पास केवल 12 साल हैं। यदि हम ऐसा करने में विफल रहते हैं तो परिणाम भयावह होंगे, क्योंकि उच्च तापमान से अत्यधिक गर्मी, समुद्र का जल स्तर बढ़ना, अकाल और बाढ़ जैसी स्थिति का सामना करना पड़ेगा। ऐसी स्थिति में धरती पर हम इंसानों का अस्तित्व बचा रह पाएगा, इस पर संदेह है। एक तरह से कहें तो अगर हम समय पर नहीं चेते तो हमारा विनाश तय है।
इस पृथ्वी को बचाने के लिए भारत सहित दुनिया के कई राष्ट्रों ने स्वच्छ ऊर्जा को अपनाने के साथ-साथ हरित आवरण को बढ़ाकर अपने कार्बन उत्सर्जन में कटौती करने के लक्ष्य निर्धारित किए हैं। वर्तमान में भारत में कुल 24.4 प्रतिशत का हरित आवरण है, और इसे बढ़ाकर 33 प्रतिशत करने की योजना है। सरकार के अलावा, कई एनजीओ और व्यक्ति भी इसमें योगदान देने के लिए आगे आए हैं। इनमें 48 वर्षीय राधाकृष्णन नायर भी शामिल हैं जिन्होंने अब तक छह लाख से अधिक पेड़ लगाए हैं। खास बात यह है कि उन्होंने ये सारा काम अपने बूते किया है।
राधाकृष्णन गुजरात में उमरगाम अपैरल वेलफेयर एसोसिएशन के संस्थापक अध्यक्ष हैं। उन्होंने 2017 में महाराष्ट्र सरकार द्वारा वसुंधरा पुरस्कार जैसे कई प्रशंसा और पुरस्कार अर्जित किए। उन्होंने राजस्थान, गुजरात, बंगाल और छत्तीसगढ़ सहित सात राज्यों में 40 के जंगलों को संवारा है। तो यह सब कैसे शुरू हुआ? राधाकृष्णन शुरू से ही पर्यावरण को बचाने के लिए इतने गंभीर नहीं थे। शुरू में वे बस अपना बिजनेस चलाते थे और आदिवासी समुदाय के उत्थान के लिए काम करते थे। राधाकृष्णन श्री पूर्णिका एक्सपोर्ट नाम से कंपनी चलाते हैं।
पेड़ों के साथ राधाकृष्णन की कोशिश छह साल पहले शुरू हुई जब उन्होंने देखा कि गुजरात में एक सड़क परियोजना के लिए लगभग 175 पेड़ काटे जा रहे हैं। उन्होंने द न्यूज मिनट को बताया, 'मैंने एक पार्टनर के साथ जमीन का एक टुकड़ा खरीदा और हमने वहां 1,500 पेड़ लगाने के लिए अकीरा मियावाकी की जापानी पद्धति का उपयोग करने का फैसला किया। अकीरा एक जापानी वनस्पतिशास्त्री हैं जो बंजर जमीनन पर देशी जंगलों को बहाल करने के अपने तरीकों के लिए जाने जाते हैं।
अकीरा के तरीके को जानने के लिए राधाकृष्ण और उनके साथी ने जापानी टीम संपर्क किया जो उन्हें इस विधि को बताने के लिए भारत आई। राधाकृष्णन ने अपना पहला जंगल उम्बरगाँव, गुजरात में एक एकड़ भूमि पर लगाया। यह जंगल जल्द ही फलने लगा इससे महाराष्ट्र के कुछ अधिकारी प्रभावित हुए और उन्होंने राधाकृष्णन से अपने यहां भी ऐसे ही पौधे लगाने के लिए कहा। उन्होंने 2016 में 38 किस्मों के 32,000 पौधे लगाए। मातृभूमि के अनुसार, महात्मा गांधी ऑक्सीज़ोन के नाम पर, राधाकृष्णन ने पंडरीपानी, और जुरीदा गाँव, छत्तीसगढ़ में सात एकड़ भूमि पर एक लाख से अधिक पेड़ लगाए। इसके अतिरिक्त, जंगल के बीच में ढाई एकड़ जमीन पर एक कृत्रिम झील भी बनाई गई थी।
अब राधाकृष्णन ने पुलवामा हमले के शहीदों के नाम पर जंगल लगाने की योजना बनाई है। जंगल का नाम 'पुलवामा शाहिद वन' होगा, और इसमें 40 किस्मों के 40,000 पेड़ होंगे। हरियाली के प्रति अपने प्रेम के अलावा, राधाकृष्णन गुजरात और महाराष्ट्र में तीन प्रशिक्षण केंद्र भी संचालित करते हैं। यहां, उन्होंने गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले 10,000 से अधिक व्यक्तियों को प्रशिक्षित किया है ताकि वे बेहतर जीवन यापन कर सकें।
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