13 साल की उम्र से बेसहारा जानवरों को रेस्क्यू कर रहे हैं ज़ाबी खान, बचा चुके हैं हजारों बेजुबानों की ज़िंदगी
ज़ाबी अब तक करीब 500 से अधिक आवारा-बेसहारा जानवरों को रेस्क्यू कर चुके हैं, जबकि 3 हज़ार से अधिक जानवरों के लिए आसरे का इंतजाम भी कर चुके हैं।
"ज़ाबी तब खुद भी छात्र ही थे जब उन्होने बड़े स्तर पर इन जानवरों की मदद के लिए ‘अ प्लेस टू बार्क’ नाम का एनजीओ शुरू किया था। अपने एनजीओ के साथ आगे बढ़ते हुए ज़ाबी ने घायल और जरूरतमंद जानवरों को रेस्क्यू कर उनके लिए आसरे और भोजन का प्रबंध करना शुरू कर दिया था। "
हैदराबाद के एनिमल राइट्स एक्टिविस्ट ज़ाबी खान आज भारत समेत दुनिया भर में बेसहारा और बेजुबान जानवरों की मदद कर उन्हें नई ज़िंदगी देने वाला चेहरा बन गए हैं। उनके काम के चलते ज़ाबी को आज लोग ‘जानवरों के मसीहा’ नाम से भी जानते हैं।
ज़ाबी की गिनती आज भारत के सबसे युवा एनिमल राइट्स एक्टिविस्ट में होती है। ज़ाबी अब तक करीब 500 से अधिक आवारा-बेसहारा जानवरों को रेस्क्यू कर चुके हैं, जबकि 3 हज़ार से अधिक जानवरों के लिए आसरे का इंतजाम भी कर चुके हैं।
13 साल की उम्र में शुरुआत
ज़ाबी ने यह नेक काम तब शुरू कर दिया था जब वे महज 13 साल के थे, उस समय ज़ाबी ने कुत्ते को रेस्क्यू करने का काम किया था जिसे सड़क पर यूं ही छोड़ दिया गया था। वह कुत्ता उस समय एक गंभीर संक्रमण से जूझ रहा था और उसके मालिक ने इसी वजह से उसे सड़क पर बेसहारा छोड़ दिया था।
उस कुत्ते को ज़ाबी अपने साथ तो ले आए लेकिन उसे बचा नहीं सके। इस घटना ने ज़ाबी के ऊपर बड़ा प्रभाव डाला और यहीं से ज़ाबी ने इन बेजुबान जानवरों की मदद के लिए खुद को समर्पित करने का इरादा कर लिया।
शुरू किया एनजीओ
ज़ाबी तब खुद भी छात्र ही थे जब उन्होने बड़े स्तर पर इन जानवरों की मदद के लिए ‘अ प्लेस टू बार्क’ नाम का एनजीओ शुरू किया था। अपने एनजीओ के साथ आगे बढ़ते हुए ज़ाबी ने घायल और जरूरतमंद जानवरों को रेस्क्यू कर उनके लिए आसरे और भोजन का प्रबंध करना शुरू कर दिया था।
स्कूल की पढ़ाई के बाद ज़ाबी ने इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला ले लिया, हालांकि इसके बाद उन्हें अपने इस काम के लिए समय निकालने में थोड़ी परेशानी का सामना करना पड़ रहा था, ऐसे में ज़ाबी ने अपने कॉलेज प्रबंधन को परिसर में ही इन जानवरों की देखभाल के लिए जगह देने के लिए मना लिया। आज केजी रेड्डी कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग का परिसर तमाम तरह के जानवरों और पक्षियों के लिए स्थायी बसेरा बन चुका है।
इसी उद्देश्य के साथ आगे बढ़ते हुए ज़ाबी अब हैदराबाद में एक एनिमल सैन्चुअरी की स्थापना भी कर चुके हैं। ज़ाबी के साथ आज उनकी टीम भी इस तरह के जरूरतमंद जानवरों की मदद के लिए भी पूरी तरह समर्पित है।
ज़ाबी द्वारा स्थापित इस खास सैन्चुअरी में आज कुत्तों के अलावा बिल्लियाँ, खरगोश और बतख आदि जानवर और पक्षी भी बसेरा पा रहे हैं।
मिल चुके हैं कई सम्मान
ज़ाबी को उनके इस काम के लिए कई सम्मान भी मिल चुके हैं। ज़ाबी को साल 2018 के नेशनल यूथ आइकन फॉर ह्यूमैनिटी से भी सम्मानित किया जा चुका है। इसी के साथ ज़ाबी ‘प्राइड ऑफ तेलंगाना’ अवार्ड से भी सम्मानित किए जा चुके हैं। ज़ाबी अपने काम के जरिये अब देश भर के युवाओं को एनिमल राइट्स एक्टिविज़्म के प्रति जागरूक करते हुए उन्हें भी इस मुहिम में शामिल करना चाहते हैं।
कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार अब ज़ाबी के इस काम को देखते हुए उनपर तेलुगू भाषा में एक वेबसिरीज़ भी तैयार करने की बात चल रही है। पा रहे हैं।
कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार अब ज़ाबी के इस काम को देखते हुए उनपर तेलुगू भाषा में एक वेबसिरीज़ भी तैयार करने की बात चल रही है।
Edited by Ranjana Tripathi