अब अपने धर्म और ईमान के अखाड़े में वो 'दंगल' वाली लड़की ज़ायरा वसीम!
फिल्म 'दंगल' से भारी शोहरत और तमाम पुरस्कार हासिल कर चुकी कश्मीरी मूल की युवा अभिनेत्री ज़ायरा वसीम ने बॉलीवुड को हमेशा के लिए अलविदा क्या कह दिया, उनके ट्रोल्स में मशहूर लेखिका तस्लीमा नसरीन तक शुमार हो चुकी हैं लेकिन ज़ायरा तो कह रही हैं कि वह अपने ईमान की लड़ाई लड़ रही हैं।
ज़ायरा वसीम, जो अपनी पहली ही फिल्म 'दंगल' से सिने दर्शकों में छा गई थीं, बाद में उन्होंने 'सीक्रेट सुपरस्टार' में भी अपने सशक्त अभिनय की छाप छोड़ी थी, इन दिनो बॉलीवुड को हमेशा के लिए अलविदा कहने के बाद अपने ईमान की लड़ाई लड़ रही हैं। उन्होंने अपने छोटे से बॉलीवुड करियर में फिल्म फेयर पुरस्कार, राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार, राष्ट्रपति के हाथों राष्ट्रीय बाल पुरस्कार आदि से सम्मानित हो चुकी हैं। मूलतः कश्मीर की रहने वाली ज़ायरा के पिता ज़ाहिद वसीम श्रीनगर के एक संस्थान में इक्जक्यूटिव मैनेजर हैं और मां ज़रक़ा वसीम टीचर। ज़ायरा ने अपनी 10वीं तक की पढ़ाई सेंट पॉल इंटरनेशनल अकादमी सोनार बाग से पूरी की है। उन्हे 10वीं क्लास में 92 प्रतिशत अंक मिले थे। इसके बाद ऐक्टिंग से जुड़ जाने के कारण वह अपनी पढ़ाई दूरवर्ती माध्यम से करने लगीं।
ज़ायरा ने बहुत कम उम्र में ही पहली बार विज्ञापन की दुनिया की दुनिया से अपने करियर की शुरुआत की थी। उसके बाद 'दंगल' में पहलवान गीता फोगट का किरदार निभाया। इसके बाद 'सीक्रेट सुपरस्टार' उन्होंने मुस्लिम लड़की के रूप में सशक्त अभिनय किया, जिसके लिए उनको फिल्म फेयर के बेस्ट ऐक्ट्रेस (क्रिटिक्स) अवार्ड से नवाजा गया था। वह फिल्म 'द स्काई इज़ पिंक' के लिए भी चर्चाओं में रही हैं। इस दौरान ज़ायरा बार-बार ट्रोलिंग का शिकार भी होती रही हैं। कभी अपने बाल छोटे कराकर 'दंगल' में उतरने पर तो कभी तत्कालीन मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती से मिलने पर, कभी प्लेन में एक यात्रा द्वारा खुद को छू दिए जाने पर।
पिछले दिनों जब उन्होंने बॉलीवुड को हमेशा के लिए अलविदा किया तो एक बार फिर उनको लेकर इंटरनेट पर बहस छिड़ गई।
बॉलीवुड को अलविदा कहती हुई ज़ायरा अपनी एक लंबी फ़ेसबुक पोस्ट में लिखती हैं- 'वह अपने धर्म और अल्लाह के लिए यह फ़ैसला ले रही हैं। वह फ़िल्में में काम करने के दौरान अपने धर्म से भटक गई थीं। पाँच साल पहले उन्होंने एक फ़ैसला लिया था, जिसने उनका जीवन बदल दिया। बॉलीवुड में क़दम रखा। अपार लोकप्रियता मिली। उनको युवाओं के लिए रोल मॉडल बताया जाने लगा, हालांकि वह ऐसा बनना नहीं चाहती थीं। आज वह अपने पांच साल के बॉलीवुड करियर को लेकर खुश नहीं। दरअसल, उन्होने कुछ और बनने के लिए संघर्ष किया है। अब वह ख़ामोशी से अपने ईमान की राह पर चल पड़ी हैं। बॉलीवुड में उन्होंने अपने जीवन की सारी बरकतें खो दीं। वह चाहती हैं कि अब उनकी आत्मा उनके विचारों से मिलाप कर ले और वह अपने ईमान की स्थिर तस्वीर बना सकें।'
अब ज़ायरा अपने दिल को अल्लाह के शब्दों से जोड़कर अपनी अज्ञानता और कमज़ोरियों से लड़ रही हैं। दिल को तभी सुकून मिलता है, जब इंसान अपने ख़ालिक़ के बारे में जानता है। उन्हे अल्लाह की दया पर भरोसा है। मेरा दिल शक़ और ग़लती करने की जिस बीमारी से पीड़ित था, उसे उन्होंने पहचान लिया है। 'संदेह और ग़लतियां' और 'हवस और कामनाएं', इन दोनों का क़ुरान में ज़िक्र है। इसका इलाज सिर्फ़ अल्लाह की शरण में जाने से ही होगा। सोर्स कोड ने मेरी धारणाओं को प्रभावित किया और अलग आयामों में विकसित हुआ है। लंबे समय से वह अपनी रूह से लड़ती रही हैं। ज़िंदगी बहुत छोटी है लेकिन अपने आप से लड़ते रहने के लिए बहुत लंबी भी। इसलिए आज वह अपने इस फ़ैसले पर पहुंची हैं। उनका उद्देश्य अपनी कोई पवित्र छवि बनाना नहीं है बल्कि वह एक नई शुरुआत कर रही हैं।'
ज़ायरा के इस ताज़ा कदम पर ट्रोल्स अब सवाल उठ रहे हैं कि मात्र अठारह साल की उम्र में क्या ऐसा फ़ैसला उन्होंने खुद लिया है या इसके लिए उनको उकसाया गया है! इस बहसमुबाहसे में देश का बौद्धिक वर्ग भी कूद पड़ा है। बांग्ला लेखिका तस्लीमा नसरीन ज़ायरा के फैसले से काफी नाराजगी के साथ ट्वीट करती हैं- 'लोग कह रहे हैं कि अदाकारा जायरा वसीम के धर्म के कारण अभिनय छोड़ने के फैसले का सम्मान करना चाहिए। क्या वाकई? औरतों को पितृसत्तात्मक समाज द्वारा ब्रेनवॉश किया जाता है। उन्हें सिखाया जाता है कि वे विनम्र बनें, दूसरों पर निर्भर करें, अनपढ़ रहें, गुलाम, हवस की वस्तु और बच्चा पैदा करने की मशीन बन कर रहें, जबकि महिलाओं के पास न तो आजादी होती है, न कोई विकल्प। धर्म उन्हें दबा कर रखता है।'
अभिनेत्री रवीना टंडन लिखती हैं- 'इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता अगर दो फिल्में कर चुके लोग उस इंडस्ट्री के प्रति एहसान फरामोश हों, जिसने उन्हें सब कुछ दिया है। काश कि वह विनम्र तरीके से इसे छोड़तीं और अपने दकियानूसी ख्यालों को अपने ही पास रखतीं।'
द वायर की आरफा खानम शेरवानी ट्वीट करती हैं- 'जायरा वसीम के फिल्में छोड़ने के फैसले को वैसे ही समझा जाना चाहिए, जैसे नुसरत जहान की बिंदी और सिंदूर को। न तो उससे नुसरत अनैतिक हो गईं और न ही इससे जायरा नैतिक। अपना फैसला लेने की आजादी सबसे अहम है।' जबकि जम्मू कश्मीर के पुलिस अधिकारी इम्तियाज हुसैन, जैनब सिकंदर, फिल्ममेकर विवेक अग्निहोत्री ने ज़ायरा को सपोर्ट किया है।