रेज़र के बाद अब कपड़े के विज्ञापन में स्त्रियां फिर बनीं बहस का मुद्दा
"आज जबकि पाकिस्तान में महिलाओं पर फोकस अमेरिकी कंपनी का कपड़े का एक विज्ञापन इस्लाम विरोधी बताया जा रहा है, एक बार फिर विज्ञापनों में स्त्रियों को चित्रित करने को लेकर नए सिरे से बहस चल पड़ी है। इससे पहले अमेरिका में एक रेज़र का विज्ञापन लंबे समय तक बौद्धिकों की बहस के केंद्र में रह चुका है।"
ये आधुनिक बाजार का अजब चलन है। कम्पनियां घरेलू वस्तुओं से लेकर अपने खास किस्म के तमाम प्रोडक्ट्स तक को विज्ञापनों में स्त्री चेहरे के साथ परोस कर प्रमोट कर रही हैं। खाद्य उत्पाद, मसाले, साबुन, शैम्पू, हैंडवाश, बर्तन, फ़िनाइल, डीओ, तेल, लोशन, क्रीम, टॉयलेट क्लीनर से लेकर बनियान-अंडरवियर तक में स्त्री को प्रदर्शित किया जा रहा है। वर्षों से बेधड़क चल रहा यह सिलसिला पूरी दुनिया में बौद्धिक वर्गों की बहस के केंद्र में तो है ही, कई एक ऐसे विज्ञापन विवाद का विषय बन चुके हैं। अभी हाल ही में एक मल्टीनेशनल कंपनी का कपड़े धोने का ऐसा ही एक विज्ञापन इस्लाम विरोधी करार दिया जा रहा है।
इसी तरह पिछले साल रेज़र के एक विज्ञापन में महिला को प्रदर्शित करने पर अमेरिकी तबकों में बहस चल पड़ी थी। यद्यपि इन दोनो विज्ञापनों के बारे में एक तबके की मान्यता है कि वस्तुतः इन दोनो की प्रस्तुतियां प्रकारांतर से स्रियों के प्रति प्रगतिशीलता का बोध कराती हैं! विज्ञापन को बनाने वाले रेज़र ब्रांड बिली का कहना रहा है कि पिछले सौ सालों में पहली बार किसी विज्ञापन में स्री को इस तरह दिखाया गया है। बहस छिड़ी तो सोशल मीडिया पर तमाम महिलाएं इस विज्ञापन का समर्थन करने लगीं। अमेरिकी एफएमसीजी कंपनी प्रॉक्टर एंड गैंबल के कमर्शियल ब्रांड एरियल के विज्ञापन को लेकर पाकिस्तान में कहा जा रहा है कि इससे इस्लामिक शिक्षा का अपमान हो रहा है।
प्रॉक्टर एंड गैंबल कंपनी के कपड़े धोने के ब्रांड वाले इस विज्ञापन ने पाकिस्तान में खलल मचा दिया है। ज्यादातर लोगों का तो कहना है कि इसमें इस्लाम विरोधी क्या है! एफएमसीजी कंपनी का भी कहना है कि ये विज्ञापन महिलाओं की रुढ़िवादी मान्यताओं को तोड़ते हुए अपना करियर बनाने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है। विज्ञापन में महिलाएं डॉक्टर, पत्रकार जैसी भूमिकाओं में दिखाई गई हैं लेकिन आलोचना करने वालो का कहना है कि विज्ञापन में चादरों पर ऐसी बातें लिखी हैं, जिनसे पाकिस्तान जैसे समाज में महिलाओं पर दबाव बनाया जा रहा है। महिलाएं विज्ञापन में चादर पर से उन सवालों को धोकर मिटाती हुई दिखाई गई हैं।
विज्ञापन में पाकिस्तानी महिला क्रिकेट टीम की कप्तान बिसमाह मारूफ का क्लोजअप शॉट है, जिसमें वह कहती हैं कि 'घर की चारदीवारी में रहो। ये बात नहीं बल्कि दाग है।' यह सब पढ़कर एक वर्ग सोशल मीडिया पर विज्ञापन की खुलकर आलोचना कर रहा है। ट्विटर पर #बॉयकॉटएरियल ट्रेंड हो रहा है। टिप्पणियां ट्वीट की जा रही हैं कि ये विज्ञापन इस्लाम का अपमान कर रहा है। यहां तक कि पाकिस्तानी विज्ञापन नियामक से कंपनी के खिलाफ कार्रवाई की मांग तक की जा रही है। दूसरी तरफ एक सच ये भी है कि पिछले कई दशकों से पाकिस्तानी महिलाएं अपने अधिकारों के लिए संघर्षरत हैं।
इसी तरह हाल में ही एक राइड शेयरिंग ऐप करीम का विज्ञापन आलोचकों के निशाने पर आ चुका है। उसके खिलाफ कोर्ट में याचिका के साथ ही प्रचार अभियान तक चलाया जा चुका है। इसी तरह दो साल पहले एक मोबाइल कंपनी भी अपने स्त्रियोचित विज्ञापन प्रसारण को लेकर पाकिस्तानी अवाम की आलोचना का सामना कर चुकी है।
गौरतलब है कि हमारे देश में मशहूर अभिनेत्री प्रीति ज़िंटा ने अपनी करियर की शुरुआत लिरिल साबुन के विज्ञापन से ही की थी। दरअसल, आम तौर पर आज भी समाज में एक मर्दवादी धारणा बनी हुई है कि स्त्री की ज़िम्मेदारी सिर्फ अपने पति, बच्चों और घर की देखभाल करनी है। जैसे वह अपनी ख़ूबसूरती कारण प्रेशर कुकर, वॉशिंग पॉवडर, तेल, शैम्पू, मसाले के विज्ञापनों में दिखती है, उसकी पारंपरिक भूमिका बदलते देख लोग अनायास अपने पुरातन संस्कारों के कारण चौंकने लगे हैं। जहां तक इस मामले में प्रॉडक्ट प्रचारित करने वाली कंपनियों के रुख की बात है, सवाल गैरवाजिब नहीं कि अधिकांश विज्ञापन स्त्री-शरीर पर ही क्यों केंद्रित होते हैं? स्त्री शरीर व्यापार का आवश्यक अंग तो नहीं अथवा स्त्रियों के अधोवस्त्र-निर्वस्त्र शरीर के ज़रिए विज्ञापन प्रमोट करने पर वस्तु की मार्केटिंग क्यों?
पिछले साल जुलाई में जब एक विज्ञापन को लेकर अमेरिका में बहस चल पड़ी तो रेज़र ब्रांड में महिलाओं को दिखाना क्रांतिकारी दृश्य बताया गया। ऐसे कमेंट्स वायरल होने लगे कि विज्ञापन शानदार है। बिली की सह संस्थापिका गॉर्जिना गूली का कहना था कि यह एक तरह से बॉडी शेमिंग को प्रमोशन है। प्रतिकूल प्रतिक्रिया से पता चलता है कि पुरुष वर्ग शर्म महसूस करता है, जो ठीक नहीं है। बाद में कंपनी ने भी ऑनलाइन अभियान छेड़ दिया। उस कमेंट वार में अमरीकी लेखिका रशेल हैम्पटन तक को रेज़र बनाने वाली कंपनी के बारे में लिखना पड़ा। कंपनी का कहना था कि उसे माफ़ी मांगना ज़रूरी नहीं।