जानिए क्या है Zomato का बिजनेस मॉडल, कंपनी किन-किन तरीकों से कमाती है पैसे
जोमैटो की तरफ से ज्यादा से ज्यादा ग्राहकों को अपनी ओर खींचा जा रहा है. भारी डिस्काउंट समेत कई ऑफर दिए जाते हैं. कंपनी पैसे भी खूब कमा रही है, लेकिन नुकसान झेल रही है. आइए समझते हैं क्या है कंपनी का बिजनेस मॉडल.
आज के वक्त में जोमैटो (Zomato Business Model) को कौन नहीं जानता. अगर बात आती है ऑनलाइन फूड डिलीवरी की तो या तो आप जोमैटो (
) से खाना मंगवाते हैं या फिर स्विगी से. भारत में फूड डिलीवरी (Food Delivery) का कॉन्सेप्ट कोई नया नहीं है. ब्रिटिश काल के दौरान 1890 में ही मुंबई में डब्बावाला (Mumbai Dabbawala) की शुरुआत हुई थी. ये डब्बावाला इतने शानदार तरीके से रोज लाखों टिफिन डिलीवर करने लगे कि दुनिया की बड़ी-बड़ी यूनिवर्सिटी और बिजनेस स्कूल भी इसकी केस स्टडी (Case Study) करने लगे. लेकिन अब ये सिस्टम बंद होने के कगार पर है.ऑनलाइन फूड डिलीवरी की बात करें तो इसमें सबसे बड़ी क्रांति हुई 2012 में, जब 3 दोस्तों ने मिलकर फूडपांड की शुरुआत की. देखते ही देखते कंपनी 45 देशों तक फैल गई और रोज करीब 2 लाख ऑर्डर डिलीवर करते हुए 3 अरब डॉलर की हो गई. लेकिन फिर इसके बुरे दिन शुरू हो गई और कभी 21 हजार करोड़ रुपये की वैल्युएशन तक पहुंच चुकी इस कंपनी को ओला ने महज 250 करोड़ रुपये में खरीदा. 2017 में फूडपांड का खरीदने के बाद ओला ने भी इसमें करीब 500 करोड़ रुपये का निवेश किया, लेकिन बिजनेस नहीं चला और 2019 में कंपनी को इसे बंद करना पड़ा. बीच में कुछ वक्त तक उबर ईट्स भी चला, लेकिन उसे भी अपना बिजनेस बंद करना पड़ा.
देखा जाए तो फूड डिलीवरी का बिजनेस ऐसा मॉडल है, जिससे कभी पैसा नहीं बन पाया. सवाल ये है कि क्या जोमैटो के साथ भी ऐसा ही होगा? क्या इतिहास खुद को दोहराएगा? भारत में जोमैटो की शुरुआत दीपिंदर गोयल और पंकज चड्ढा ने 2008 में की थी. इससे लोग रेस्टोरेंट सर्च कर सकते हैं और ऑनलाइन फूड डिलीवरी कर सकते हैं. सवाल ये है कि जोमैटो का भविष्य क्या होगा, क्योंकि आज तक कंपनी मुनाफा नहीं कमा पाई है. कंपनी की कमाई तो बढ़ रही है, लेकिन मुनाफा नहीं हो रहा. जोमैटो की राइवल स्विगी का भी यही हाल है.
क्या है जोमैटो का बिजनेस मॉडल?
यहां पर एक बड़ा सवाल ये उठता है कि आखिर जोमैटो का बिजनेस मॉडल क्या है? कंपनी पैसे तो खूब कमा रही है, लेकिन ग्राहकों को अपनी ओर खींचने के लिए कंपनी खर्च भी खूब कर रही है. कंपनी एक-दो नहीं बल्कि कई तरीकों से पैसे कमाती है. आइए जानते हैं इनके बारे में.
1- रेस्टोरेंट लिस्टिंग और एडवर्टाइजिंग
जोमैटो की सबसे ज्यादा कमाई इसी तरीके से होती है. कंपनी अपने ऐप पर रेस्टोरेंट को लिस्ट करने और उसका विज्ञापन करने के बदले पैसे लेती है. जिस रेस्टोरेंट को जितनी ज्यादा विजिबिलिटी दी जाती है, उससे उतनी ही ज्यादा फीस ली जाती है.
2- डिलीवरी फीस
जोमैटो की तरफ से किसी भी ऑर्डर को डिलीवर करने के लिए एक डिलीवरी फीस ली जाती है. साथ ही रेस्टोरेंट से भी इसके लिए एक कमीशन लिया जाता है. इसे डिलीवरी ब्वाय और जोमैटो के बीच बांट लिया जाता है.
3- लॉयल्टी प्रोग्राम
जोमैटो अपने लॉयल्टी प्रोग्राम के जरिए अधिक से अधिक ग्राहकों को खुद को जोड़े रखने की कोशिश करती है. इसके तहत कंपनी कुछ सब्सक्रिप्शन मॉडल लाती है, जिसे लोग कुछ फीस चुकाकर सब्सक्राइब करते हैं. हालांकि, जोमैटो के मामले में पैसे कमाने का ये तरीका कुछ खास काम नहीं आता, क्योंकि बार-बार कंपनी के लॉयल्टी प्रोग्राम फेल होते रहते हैं. अभी कंपनी जोमैटो गोल्ड नाम का लॉयल्टी प्रोग्राम चला रही है, लेकिन ग्राहकों का रेस्पॉन्स कंपनी को अच्छा नहीं मिल रहा है.
4- इवेंट्स टिकट सेल
जोमैटो की तरफ से कुछ खास इवेंट्स की टिकट्स भी बेची जाती हैं, जिनसे कंपनी पैसे कमाती है. इन इवेंट्स के जरिए जोमैटो ग्राहकों को कुछ खास रेस्टोरेंट तक पहुंचाती है, जिसके लिए रेस्टोरेंट की तरफ से जोमैटो को पैसे दिए जाते हैं.
5- जोमालैंड इवेंट से कमाई
जोमैटो की तरफ से समय-समय पर जोमालैंड इवेंट भी कराया जाता है, जहां शहर के बहुत सारे लोग जुटते हैं. इससे जोमैटो की तगड़ी कमाई होती है. यह इवेंट एक तरह का फूड एंटरटेनमेंट कार्निवल होता है.
6- कंसल्टेंसी सर्विस
जोमैटो के पास अभी बहुत सारे ग्राहकों का बहुत सारा डेटा है. जोमैटो भले ही नुकसान कमाने वाला स्टार्टअप है, लेकिन वह अब जानता है कि देश के बहुत सारे लोग कैसा खाना खाते हैं, किस रेस्टोरेंट से खाते हैं और कब खाते हैं. उसे लोगों की खरीदारी के पैटर्न और बर्ताव के बारे में भी बहुत ज्यादा पता चल चुका है. ऐसे में जब कोई नया खिलाड़ी इस फील्ड में बिजनेस करना चाहता है तो जोमैटो उसे कंसल्टेंसी सेवा देता है.
7- हाइपरप्योर से कमाई
जोमैटो ने हाल ही में एक नए बिजनेस मॉडल में कदम रखा है, जिसे उसने हाइपरप्योर नाम दिया है. इसके तहत कंपनी अच्छी क्वालिटी वाले हाइजेनिक इनग्रेडिएंट्स अपने पार्टनर रेस्टोरेंट्स को सप्लाई करता है. अधिकतर इनग्रेडिएंट्स जोमैटो सीधे किसानों से लेता है, जिससे बेहतर क्वालिटी सुनिश्चित होती है. आने वाले दिनों में इसमें बहुत तगड़ी ग्रोथ दिखने की उम्मीद है. अच्छी क्वालिटी के इनग्रेडिएंट होंगे तो अच्छा खाना बनेगा, जिससे ग्राहक खुश होंगे और अधिक खाना ऑर्डर करेंगे. ग्राहक जितना ज्यादा खाना ऑर्डर करेंगे, जोमैटो की उतनी कमाई होगी. एक तो कमाई खाने की डिलीवरी से होगी, वहीं ज्यादा ऑर्डर का मतलब ज्यादा खाना, मतलब ज्यादा इनग्रेडिएंट्स. ऐसे में हाइपरप्योर का एक सस्टेनेबल बिजनेस की तरह देखा जा रहा है.
जोमैटो हो या स्विगी, हर कोई ग्राहकों को अपनी ओर खींचने के लिए डिस्काउंट दे रहा है. वहीं ग्राहक भी कम नहीं हैं. उन्हें जहां ज्यादा डिस्काउंट मिलता है, वह उधर चले जाते हैं. ऐसे में एक बात तो तय है कि जोमैटो और स्विगी में से आखिरी में वही बिजनेस बचेगा, जो देर तक ग्राहकों को रोके रख पाएगा. वहीं ग्राहकों को रोकने के लिए इन कंपनियों को ढेर सारा पैसा खर्च करना पड़ रहा है. ऐसे में या तो जोमैटो बंद होगी या फिर स्विगी, तभी दूसरी कंपनी मुनाफे में आएगी. इसी बीच खबर है कि जोमैटो अब क्लाउड किचन कॉन्सेप्ट पर काम कर रही है. यानी वह खुद खाना बनाकर ग्राहकों को डिलीवर करेगी. अगर क्लाउड किचन का दाव फिट बैठ जाता है तो कंपनी को भविष्य में फायदा जरूर होगा.