700 लोगों ने मिलकर नदी को फिर से किया जिंदा
अगर मकसद बदलाव का हो और नीयत साफ हो तो टीम वर्क से कुछ भी हासिल किया जा सकता है। इसे साबित किया है केरल के गांव वालों ने। केरल के अलपुझा जिले के बुधानूर गांव के लोगों ने मिलकर गांव के किनारे बहने वाली नदी की तस्वीर ही बदल दी। दस साल से गंदे पानी और कचरे से भरी हुई नदी को गांव के 700 लोगों ने मिलकर एकदम पहले जैसा कर दिया।
ग्राम पंचायत की एक कर्मचारी को जब पता चला कि गांव के लोग नदी को साफ करने की योजना बना रहे हैं तो उन्होंने महात्मा गांधी रोजगार गांरटी योजना (मनरेगा) के जरिए गांव वालों के इस मिशन को साकार करने के बारे में सोचा। इस मिशन में गांव के महिला और पुरुषों को मिलकार लगभग 700 मजदूर शामिल थे। इन मजदूरों ने पूरी लगन के साथ नदी को साफ करने का जिम्मा उठाया और सिर्फ चार महीने में नदी को साफ कर दिया।
केरल की पंपा और अचनकोविल नदियों की धारा से निकली 12 किलोमीटर लंबी नदी कुट्टमपरूर पिछले दस साल से गंदे पानी का पर्याय बन चुकी थी। एक समय नदी का पानी लोग पीने के लिए इस्तेमाल करते थे, लेकिन अवैध खनन और कूड़े-कचरे से नदी का पानी एकदम प्रदूषित हो गया था। गांव के कुछ लोगों ने नदी को साफ करने के बारे में सोचा, लेकिन उनके पास कोई आइडिया नहीं था कि इसे कैसे साफ किया जाये। ग्राम पंचायत की एक कर्मचारी को जब पता चला कि गांव के लोग नदी को साफ करने की योजना बना रहे हैं तो उन्होंने महात्मा गांधी रोजगार गांरटी योजना (मनरेगा) के जरिए गांव वालों के इस मिशन को साकार करने के बारे में सोचा। इस मिशन में गांव के महिला और पुरुषों को मिलकार लगभग 700 मजदूर शामिल थे। इन मजदूरों ने पूरी लगन के साथ नदी को साफ करने का जिम्मा उठाया और सिर्फ चार महीने में नदी को साफ कर दिया। पिछले साल नवंबर में शुरू हुआ ये मिशन इस साल मार्च में खत्म हुआ।
नदी को साफ करने के लिए सबसे पहले उसके ऊपर उग आईं बेकार वनस्पतियों को हटाया गया उसके बाद नदी में जाकर उसमें प्लास्टिक और बाकी कचरे को बाहर निकाला गया। नदी में घुसकर सफाई करना मजदूरों के लिए खतरनाक भी साबित हो सकता था, लेकिन गांव वालों की लगन और समर्पण के आगे सारी मुश्किलें छोटी पड़ गईं। मनरेगा कर्मचारी रश्मी ने कहा कि ये काम आसान बिल्कुल नहीं था, क्योंकि सालों से नदी में कचरा फेंका जा रहा था जिससे नदी में बदबू भी आने लगी थी।
जब नदी का पानी बिल्कुल साफ हो गया तो लोगों ने नाव डालकर घूमना शुरू किया। उस वक्त गांव वालों के चेहरे पर खुशी देखने लायक थी। इस सफाई अभियान के बाद न केवल नदी साफ हो गई बल्कि गांव के कुओं का जलस्तर भी बढ़ा है। नदी में पहले पानी रुका रहता था, लेकिन अब पानी का बहाव तेज हो गया है। नदी साफ हो जाने के बाद गांव में खुशहाली लौट आई है। सिंचाई से लेकर बाकी कई कामों के लिए अब लोग नदी का पानी इस्तेमाल कर रहे हैं।
आखिर क्यों प्रदूषित हैं हमारी नदियां?
नदियों के प्रदूषित होने के कई कारण हैं। जैसे- अंधाधुंध औद्योगीकरण, प्राकृतिक संसाधनों के गलत तरीके से दोहन, बिना ट्रीटमेंट के फैक्ट्रियों से निकले गंदे पानी को सीधे नदी में गिरा दिया जाना, आबादी मल-मूत्र और गंदगी को सीधे नदी मे बहा देना, धार्मिक कार्यों से मूर्तियों व अन्य सामग्री का नदी में विसर्जन करने से नदी का पानी गंदा हो जाता है और फिर वह पानी किसी लायक नहीं रह जाता। इससे तमाम तरह की बीमारियां फैलती हैं और पर्यावरणीय असंतुलन की स्थिति भी पैदा हो जाती है। नदियों की हालत सही करने के लिए सरकार तमाम कोशिशें करती है, लेकिन हालात में कोई सुधार नहीं होते। अगर बुधानूर गांव के लोगों की मिसाल ली जाए तो नदियों की सफाई के साथ ही तमाम बड़े काम आसानी से किए जा सकते हैं।