बजट 2018-19: किसानों के आंसू रोकिए जेटली जी!
वित्तमंत्री इस बार का बजट किसानों पर फोकस करने जा रहे हैं। कृषि सेक्टर पर इस बार सरकार का ज्यादा आवंटन हो सकता है क्योंकि सरकार ने किसानों की आय दोगुनी करने का वादा जो किया था...
कृषि प्रधान देश के ज्यादातर किसान खून के आंसू रो रहे हैं। वह राज्यों में लगातार आंदोलन करते-करते दिल्ली के जंतर-मंतर तक पहुंच चुके हैं ताकि उनका दुख-दर्द संसद में बैठे लोगों को साफ-साफ सुनाई दे। वर्ष 2018-19 का बजट एक फरवरी को आ रहा है तो किसान उससे भी क्यों न उम्मीद लगाएं कि उनकी बदहाली में कुछ तो कमी आए। वित्तमंत्री अरुण जेटली भी कृषि क्षेत्र से जुड़े विभागाध्यक्षों, कृषि विशेषज्ञों आदि से इस हालात पर लगातार विमर्श भी कर रहे हैं लेकिन सरकार ने जीएसटी के बहाने कल साफ-साफ ये भी संकेत दे दिया है कि आगामी बजट आम आदमी को खुश करने वाला नहीं होगा। भारतीय अर्थव्यवस्था में सुधार की प्रक्रिया जारी रहेगी...
इस बार के बजट पर निगाह गड़ाए जानकारों का कहना है कि राज्यों को कृषि बाजारों में हस्तक्षेप की स्वतंत्रता मिल सकती है, जिससे कीमतों में तेज गिरावट रोकी जा सके। हालांकि केंद्र सरकार फसल के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की वजह से राज्यों को होने वाले 40 प्रतिशत नुकसान का बोझ केंद्र स्वयं उठा सकती है।
वर्ष 2018-19 का आम बजट 01 फरवरी को संसद में पेश होने जा रहा है। देश की 70 फीसदी आबादी गांवों में रहती है और कृषि पर ही निर्भर है। ऐसे में किसानों की खुशहाली की बात सभी करते हैं, सरकार लेकर कृषि वैज्ञानिक तक किंतु उनकी मूलभूत समस्याएं ज्यों की त्यों क्यों बनी रहती हैं, सवाल गंभीर है। आजादी मिलने के बाद लगभग सात दशक गुजर जाने के बावजूद भारतीय किसानों की दशा में सिर्फ 19-20 का ही अंतर दिखाई देता है। इन दिनो किसानों को लेकर चारों ओर से वित्त मंत्री अरुण जेटली के सामने मांग और अपेक्षाएं सामने आ रही हैं। कहा जा रहा है कि वित्तमंत्री इस बार का बजट किसानों पर फोकस करने जा रहे हैं, कृषि सेक्टर पर इस बार सरकार का ज्यादा आवंटन हो सकता है क्योंकि सरकार ने किसानों की आय दोगुनी करने का वादा किया था, लेकिन पिछले कुछ वक्त से स्वराज अभियान के तहत जय किसान आंदोलन कर रहे योगेंद्र यादव तो किसी और ही तैयारी में हैं। वह ये कहते हुए 30 जनवरी को अपनी किसान संसद में वैकल्पिक 'किसान बजट' पेश करने जा रहे हैं कि ‘अगर सीआईआई जैसे औद्योगिक संगठन बजट पर चर्चा और विश्लेषण कर सकते हैं तो किसान क्यों नहीं? हम बजट के दिन कृषि विशेषज्ञों और किसानों के साथ बैठकर बजट के पेश किए जाने के दौरान इस पर प्रतिक्रिया भी देंगे।’
उनका खास जोर न्यूनतम आमदनी गारंटी, न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को तर्कसंगत स्तर पर लाए जाने, प्राकृतिक आपदाओं में किसानों को मुआवजा देने और इसके अलावा नोटबंदी से किसानों को हुए नुकसान को कम करने के उपायों पर है। उधर, सरकारी हलकों से खबरें आ रही हैं कि एक फरवरी को वित्त वर्ष 2018-19 के लिए पेश हो रहे आम बजट में सरकार कृषि शिक्षा, रिसर्च और विस्तार के लिए बजट आवंटन 15 फीसदी से बढ़ाकर 8000 करोड़ रुपये कर सकती है। कृषि क्षेत्र की आय दोगुना करने के लक्ष्य को हासिल करने के मद्देनजर सरकार कई कदम उठा रही है। कृषि अनुसंधान बजट में बढ़त भी इसी के तहत की जाएगी। वित्त वर्ष 2017-18 में सरकार ने डेयर के लिए 6800 करोड़ रुपये का आवंटन किया था। डेयर कृषि मंत्रालय के तहत काम करता है। इसके अलावा अनुदान मांगों के जरिये अतिरिक्त आवंटन किया गया जिससे डेयर का कुल बजट आवंटन 7000 करोड़ रुपये पर पहुंच गया। इस बार के बजट पर निगाह गड़ाए जानकारों का कहना है कि राज्यों को कृषि बाजारों में हस्तक्षेप की स्वतंत्रता मिल सकती है, जिससे कीमतों में तेज गिरावट रोकी जा सके। हालांकि केंद्र सरकार फसल के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की वजह से राज्यों को होने वाले 40 प्रतिशत नुकसान का बोझ केंद्र स्वयं उठा सकती है। इस प्रस्ताव को ग्रामीण इलाकों में खराब होती हालात को दुरुस्त करने के एक कदम के रूप में देखा जा रहा है। इस योजना में गेहूं व चावल को छोड़कर उन सभी जिंसों को शामिल किया जा सकता है, जिनके एमएसपी केंद्र सरकार तय करती है। माना जा रहा है कि खराब होने वाले खाद्य जैसे प्याज, आलू और टमाटर इस कार्यक्रम के दायरे में नहीं आएंगे।
केंद्र के हिस्से में फसलों की खरीद में राज्यों को होने वाले नुकसान का मुआवजा, उनका भंडारण, बिक्री, ब्याज लागत व अन्य सहायक व्यय आएंगे। उदाहरण के लिए 2017-18 रबी सत्र के लिए चना का एमएसपी 4,400 रुपये प्रति क्विंटल तय किया गया। अगर किसी राज्य को खरीद, भंडारण, वितरण में नुकसान होता है तो केंद्र सरकार 1760 रुपये प्रति क्विंटल के भाव मुआवजा देगा। शेष बोझ राज्य सरकार को खुद उठाना पड़ेगा। 'मार्केट एश्योरेंस स्कीम-एमएएस' नाम की इस प्रस्तावित योजना का बड़ा लाभ यह होगा कि इससे राज्यों को कृषि बाजारों में हस्तक्षेप की स्वतंत्रता मिलेगी और कीमतें गिरना शुरू होने के बाद जल्द से जल्द राज्य सरकार सीधे किसानों से खरीद कर सकेगी।
जानकार बता रहे हैं कि देश की जीडीपी में लगभग 17 प्रतिशत मेहनतकशों को रोजगार देने वाले कृषिक्षेत्र को इस आम बजट से कई बड़ी उम्मीदें हैं। कम एमएसपी, मानसून की मार, कर्ज के बोझ और बाजार ने किसानों की इनकम दोगुनी करने के रास्ते को बहुत संकरा कर दिया है। महज छह हजार रुपए की औसत मासिक आय वाले किसान को इस बजट से उम्मीदें हों भी क्यों नहीं। एक्सपोर्ट बढ़ने से घेरलू बाजार में एग्री प्रोडक्ट के दाम नियंत्रित रहते हैं और बहुत नीचे नहीं जाते। इसका फायदा किसानों को होता है। वर्ष 2017-18 में मैन्युफैक्चरिंग, माइनिंग, इंडस्ट्री, रिएल एस्टेट सहित अन्य सभी सेक्टरों के जीवीए यानी ग्रॉस वैल्यू एडेड में बढ़ोतरी हुई मगर एग्रीकल्चर सेक्टर में गिरावट दर्ज की गई है।
विशेषज्ञ बता रहे हैं कि वर्ष 2022-23 तक किसानों की आय को दोगुना करने के लिए पब्लिक और प्राइवेट दोनों सेक्टरों की ओर से 6399 करोड़ रुपए के अतिरिक्त निवेश की जरूरत हो सकती है। अभी असम, केरल, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, राजस्थान, पंजाब और उड़ीसा में पब्लिक इनवेस्टमेंट देश के औसत से कम है। किसानों की आय को दोगुना करने के लिए सरकार ने जो कमेटी बनाई है उसकी रिपोर्ट के मुताबिक, हर साल 10.41 फीसदी आय बढ़ाने के लिए प्राइवेट इनवेस्टमेंट में 7.86 फीसदी की बढ़ोतरी जरूरी है। खेती, सिंचाई, सड़कें और ट्रांसपोर्ट और ग्रामीण इलाकों में ऊर्जा के क्षेत्र में भारी निवेश की जरूरत है। महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और पंजाब करीब 77 हजार करोड़ रुपए का लोन माफ कर चुके हैं। कुल कृषि लोन तकरीबन 12686 अरब रुपए है। रिजर्व बैंक पहले ही इस बारे में चेतावनी दे चुका है। इस तरह से ग्राउंड रियलटी देखें तो देश में किसानों की हालत चिंताजनक है। लागत से कम दामों पर किसानों को अपनी फसल बेचनी पड़ रही है। किसान आलू सड़क पर फेंकने को मजबूर हैं, गन्ने की तैयार फसल फूंक दे रहे हैं। वित्त मंत्री कह चुके हैं कि बजट कृषि सेक्टर पर फोकस रहेगा बजट से ठीक पहले किसानों की आमदनी दोगुनी करने के मकसद से बनाई गई कमिटी ने अपनी सिफारिशें सरकार को सौंप दी हैं। बजट से पहले वित्त मंत्री को कृषि क्षेत्र के जानकारों से भी कई सुझाव मिले हैं। देखिए, उनकी राय क्या रंग लाती है।
सुझाव है कि किसानों की आय बढ़ाने के लिए एग्रीकल्चर मार्केट को फ्री करने का बड़ा फैसला लिया जाए। आलू, प्याज और टमाटर जैसी सब्जियों की बिक्री-इनके मूल्य निर्धारण के लिए अलग से कमिटी का गठन किया जाए। कृषि मंत्रालय के कुछ विभागों में प्रशासनिक बदलाव किए जाएं। कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के लिए आसान नीति बनाई जाए। हर साल ईज ऑफ डूइंग एग्रीबिजनेस सर्वे करवाए जाएं। जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर मौजूद तंत्र की समीक्षा करने के लिए कोई समिति गठित की जाए। साथ ही मौसम के मद्देनजर खरीफ और रबी की फसल के लिए अलग-अलग कृषि नीति बनाई जाएं।
देश का एक बड़ा वर्ग चाहता है कि कृषि सुधार से जुड़े कुछ मुद्दों पर बजट में ठोस एलान होना ही चाहिए। उनका मानना है कि एक तो ओर तो देश में 30 फीसदी लोग भूखे हैं, 50 फीसदी महिलाएं और बच्चे कुपोषण के शिकार हैं, दूसरी ओर 30 फीसदी भोजन हर साल नष्ट हो जा रहा है। किसानों की आय कंज्यूमर की फूड सिक्योरिटी से जुड़ी है, इस तथ्य के बावजूद ग्रामीण इलाकों में बेरोजगारी बढ़ रही है। इसलिए अब यह बेहद जरूरी हो गया है कि हम जमीनी हीककत को स्वीकार करें और उसी हिसाब से प्लानिंग करें। सुझाव हैं कि सरकार को एक हजार परफॉर्मेंस सेंटर के निर्माण के लिए पांच हजार करोड़ रुपए आवंटित करने चाहिए।
इन सेंटरों का काम ट्रेनिंग, सॉइल टेस्टिंग और फूड टेस्टिंग के लिए लैब की ग्रेडिंग करने सहित अन्य सेवाएं मुहैया कराना होगा। इन्हें संभालने का जिम्मा कॉपरेटिव्स, फूड प्रोड्यूसर्स ऑर्गनाइजेशन और स्थानीय स्टेक होल्डर्स के हाथ में हो। यूजर चार्ज की मदद से इसे ऑपरेट किया जाए। हर साल बेकार हो जा रहे एक लाख करोड़ का भोजन स्टोर करने की व्यवस्था बनाई जाए। जिस तरह सरकार ने इंडस्ट्री और सर्विस सेक्टर के लिए जीएसटी लागू किया, उसी तरह से खेतीबाड़ी के लिए एग्रीकल्चर मार्केटिंग एक्ट लाया जाए। इसका मकसद सभी को बाजार में एक वाजिब जगह दिलाना होगा। आज एग्रीकल्चर मार्केट औपचारिक इकोनॉमिक सिस्टम से बाहर है। इसमें सबसे ज्यादा नुकसान किसान को हो रहा है और बिचौलिए सबसे ज्यादा फायदे में हैं। इसके अलावा देश की हर यूनिवर्सिटी और रिसर्च, डेवलपमेंट सेंटर में कम से कम 51 फीसदी भागीदारी खेतीबाड़ी से सीधे जुड़े लोगों की सुनिश्चित की जाए। हर स्टेट यूनिवर्सिटी के पास उस इलाके की कम से कम तीन 3 मुख्य फसलों और एक पशु की जिम्मेदारी हो। इन यूनिवर्सिटी की जिम्मेदारी होगी कि वह इस फसलों के संबंध में अपनी जानकारी छोटे स्तर पर लोगों तक पहुंचाए, ताकि किसानों अच्छी उपज हासिल कर सकें। इसके अलावा केद्र सरकार एग्रीकल्चर मार्केटिंग में सुधार के लिए अब गंभीरता से कदम उठाए।
इस बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संकेत दिया है कि आगामी बजट आम आदमी को खुश करने वाला नहीं होगा। भारतीय अर्थव्यवस्था में सुधार की प्रक्रिया जारी रहेगी। दूसरी तरफ खबर है कि सरकार एमएसपी कम होने पर किसानों की फसल खुद खरीदने की योजना बना रही है। इसके अलावा बजट में सरकार गेहूं और धान के अलावा दूसरी फसलों की खेती करने वालों किसानों के लिए भी मूल्य समर्थन योजना का एलान कर सकती है। बजट में कृषि उन्नति योजना का भी एलान संभव है। बजट में इलेक्ट्रॉनिक राष्ट्रीय कृषि बाजार योजना के तहत वर्ष 2020 तक 1100 मंडियों को शामिल करने की घोषणा भी संभव है। इसके अलावा इस बजट में डीएआरई यानि डिपार्टमेंट ऑफ ऐग्रीकल्चर रिसर्च एंड एज्यूकेशन के लिए आबंटित फंड में 15 फीसदी की बढ़ोतरी घोषित हो सकती है।
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