कैसे इस आईएएस अफसर ने अंबिकापुर को बना दिया देश का सबसे छोटा स्वच्छ शहर
स्वच्छ भारत अभियान को चार साल पूरे हो गए हैं और इन चार सालों में स्वच्छता से जुड़ी कई कहानियां हमारे सामने आईं। ऐसी ही एक कहानी छत्तीसगढ़ के सरगुजा की है, जिसे वहां की आईएएस अफसर ऋतु सैन ने अपनी सोच और प्रयासों के बलबूते स्वच्छता की श्रेणी में ला दिया है।
ऋतु ने जानकारी, संचार और शिक्षा तीन चरणों में जिला प्रशासन को लगाया और उन महिलाओं को चिह्नित करने का काम दिया जो इस काम को कर सकती थीं।
हाल ही में महात्मा गांधी के जन्मदिन के मौके पर स्वच्छता ही सेवा अभियान शुरू किया गया। इसके था ही इस दिन देश में स्वच्छ भारत अभियान को लागू हुए पूरे चार साल बीत गए। महात्मा गांधी के जन्मदिवस पर इस अभियान की प्रासंगिकता इस वजह से भी जुड़ी है क्योंकि गांधी जी आजादी के आंदोलन में अंग्रेजों से लोहा लेने के साथ ही समाज में साफ-सफाई को लेकर काफी चिंतित थे। उनकी जीवन शैली में खुद की गंदगी को साफ करने को एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना गया है। स्वच्छ भारत अभियान को चार साल पूरे हो गए हैं और इन चार सालों में स्वच्छता से जुड़ी कई कहानियां हमारे सामने आईं। ऐसी ही एक कहानी छत्तीसगढ़ के सरगुजा की है, जिसे वहां की आईएएस अफसर ऋतु सैन ने अपनी सोच और प्रयासों के बलबूते स्वच्छता की श्रेणी में ला दिया है।
हर जगह स्वच्छता सुनिश्चित करने के प्रयासों में तेजी लाने और सुरक्षित साफ-सफाई उपलब्ध कराने पर ध्यान केन्द्रित करने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने महात्मा गांधी की जयंती पर 2 अक्टूबर, 2014 को स्वच्छ भारत मिशन (एसबीएम) का शुभारंभ किया था। एसबीएम का उद्देश्य भारत को ओडीएफ (खुले में शौच मुक्त) देश में तब्दील करने और 2 अक्टूबर, 2019 तक स्वच्छ भारत के लक्ष्य को प्राप्त करना है और इस तरह महात्मा गांधी की 150वीं जयंती पर उन्हें यथोचित श्रद्धांजलि अर्पित करना है।
लगभग आठ महीने पहले 2003 बैच की आईएएस अफसर और छत्तीसगढ़ में सरगुजा जिले की कलेक्टर ऋतु सैन ने जिले में स्वच्छता मिशन की शुरुआत की थी। सरगुजा जिले का मुख्यालय अंबिकापुर में पड़ता है और वहां तक पहुंचने में लोगों को काफी दिक्कत होती थी क्योंकि सड़कें कूड़े के ढेर से पटी हुई थीं। इससे लोगों को असुविधा तो होती ही थी, शहर की छवि पर भी बुरा असर पड़ता था। ऋतु सैन ने जिले का चार्ज संभालने के बाद सबसे पहला काम शहर को साफ करने का किया।
हिंदुस्तान टाइम्स से बात करते हुए उन्होंने कहा, 'शहर को साफ-सुथरा बनाना एक चुनौती पूर्ण काम था। यहां की आबादी 1,45,000 है और ऐसे में फंड्स की व्यवस्था करना थोड़ा मुश्किल था। इसलिए मुझे लगा कि लोगों की सहभागिता के बगैर यह कार्य मुश्किल होगा।' योजना बनाने के दो महीने बाद ऋतु ने अभियान की शुरुआत की। उन्होंने ठोस एवं तरल संसाधन प्रंबंधन (SLRM) मॉडल को तीन चरणों में लागू किया। इसके लिए उन्होंने स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को रोजगार भी दिया। इन महिलाओं को तीन टीमों में बांटा गया और उन्हें घर-घर जाकर कचरा इकट्ठा करने का काम सौंपा गया।
ऋतु ने जानकारी, संचार और शिक्षा तीन चरणों में जिला प्रशासन को लगाया और उन महिलाओं को चिह्नित करने का काम दिया जो इस काम को कर सकती थीं। टीम की महिलाएं घर-घर जाकर लोगों को साफ-सफाई के बारे में समझाने के साथ ही उन्हें जागरूक करने का काम करती थीं। एक पायलट प्रोजेक्ट के लिए उन्होंने इस पहल को एक वार्ड में शुरू किया। स्वयं सहायता समूह से महिलायों को इसके लिए नियुक्त किया गया।
लोगों के घर जाकर उन्हें लाल (अजैविक कचरा) और हरे रंग (जैविक कचरा) के डिब्बे कचरा डालने के लिए दिए गये हैं। इस शुरूआती प्रक्रिया के बाद, कचरे को इन ‘गार्बेज क्लीनिक’ में लाया जाता है। स्वच्छ भारत से जुड़े इस प्रयास में ऋतू को वेल्लोर स्थित इंडिया क्लीन सर्विस के संस्थापक सी श्रीनिवासन ने असिस्ट किया है जो कि ठोस एवं तरल संसाधन प्रंबंधन (एसएलआरएम) में माहिर हैं। मई 2016 तक, प्रशासन ने इस स्वच्छता मिशन के तहत सभी 48 वार्ड को जोड़ लिया था। इस डोर-टू-डोर सेवा के लिए स्थानीय निवासी भी हर महीने 50 रूपये से लेकर 500 रूपये तक का भुगतान करते हैं।
छत्तीसगढ़ में महिलाओं का समूह हरी और नारंगी रंग की साडी पहने पुरे शहर में जाकर कचरा इकट्ठा करता है, इसे अलग करता है और इसी सब प्रक्रिया में ये लोग इस छोटे से शहर अंबिकापुर को साफ़-सुथरा बनाते हैं। ‘ग्रीन वोरियर्स’ के नाम से जाने जाने वाली ये महिलायें राज्य की राजधानी से 400 किलोमीटर दूर इस शहर की पहचान बन गयी हैं। अंबिकापुर 2 लाख से कम जनसँख्या वाले शहर की केटेगरी में भारत में सबसे ज्यादा साफ़-सुथरा शहर है।
आख़िरकार ये प्रयास सफल हुए, शहर के प्रवेश द्वार पर 16 एकड़ में खुला कचरे का ढेर अब एक स्वच्छता जागरूकता पार्क के रूप में बदल गया है, वहीं प्रशासन ने समुदायिक डस्टबिन की संख्या 200 से घटाकर 5 कर दी है। ऋतु ने अंबिकापुर को ऐसा मॉल बना दिया जिसकी राह पर देश के तमाम छोटे शहर चलने का सपना देखते हैं। इतना ही नहीं इस अभियान की वजह से अब समूह की हर एक महिला अपने काम और रिसाइकिल करने वाले सामान की बिक्री से लगभग 5 हज़ार रूपये प्रति माह तक कमा लेती है।
अब अंबिकापुर में जो कचरा निकलता है उसे अलग-अलग श्रेणियों में छांट लिया जाता है और फिर उन्हें संबंधित जगहों पर भेज दिया जाता है। बचे हुए कार्बनिक अपशिष्ट को जानवरों, बतख और मुर्गियों को खाने के लिए दे दिया जाता है। बाकी जो बचता है उसे बायोगैस डाइजेस्टर और कंपोस्टिंग में उपयोग कर लिया जाता है। आज अंबिकापुर में हर रोज सुबह 450 सफाई कर्मचारी सुबह 7 बजे से लेकर शाम 5 बजे तक कचरे को व्यवस्थित करने का काम करते हैं। वर्तमान में कुल 18 SLRM सेंटर हैं जिनमे से 17 सेंटरों में घर से सीधा कूड़ा ला कर सभी को अलग अलग कर प्लास्टिक और मेटल जैसे कूड़े को एक अन्य सेंटर में भेज दिया जाता है।
ऋतु सैन ने कहा, 'हमने इस पुरे प्रयास में लगभग 6 करोड़ रूपये खर्च किये थे। जिसमें से 2 करोड़ रूपये हम अभी तक कमा चुके हैं। इस कमाई हुई धनराशि को इन स्वच्छता कर्मचारियों पर खर्च किया जाता है इसके अलावा गार्बेज क्लिनिक पर कचरा इकट्ठा करने वाली टीम के सुपरवाईजर को एक टैबलेट कंप्यूटर दिया जाता है, जहाँ पर सभी जानकारी अपलोड की जा सके। हालांकि अब ऋतु सैन का तबादला हो गया है और वह अब दिल्ली में छत्तीसगढ़ भवन के तहत अपर आयुक्त के तौर पर काम कर रही हैं।
देश में दो लाख आबादी वाले शहरों की स्वच्छता में अंबिकापुर पूरे देश में पहला शहर बन गया है। वहीं देश भर के चार सौ चौतीस शहरों में अंबिकापुर को पंद्रहवाँ स्थान मिला है। यह छत्तीसगढ़ का पहला शहर है, जिसने स्वच्छता के क्षेत्र में उल्लेखनीय मुकाम हासिल किया।
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