कॉमनवेल्थ गेम्स में सिल्वर जीतने वाली हिना सिद्धू ने छह साल की उम्र में दागी थी पहली गोली
राष्ट्रमंडल खेलों में रजत पदक अपने नाम करने वाली डेंटल सर्जन हिना सिद्धू...
अंतरराष्ट्रीय निशानेबाज हिना सिद्धू डेंटल सर्जरी में डॉक्टरेट हैं और वह न्यूरोलॉजिस्ट बनना चाहती थीं लेकिन निशानेबाज़ पिता से मिले संस्कारों ने उन्हें विश्व चैम्पियन शूटर बना दिया। ताजा स्पर्धा में भारत का दबदबा इतना था कि पहले दो पदक के लिए सिर्फ सिद्धू और भाकर ही दौड़ में बच गए थे। अब सिद्धू ने शानदार वापसी कर अपने आलोचकों की जुबान पर ताला जड़ दिया है।
सिद्धू को शूटिंग के अलावा किताबें पढ़ने और नई जगहों पर घूमने शौक है। उनको खेल, मनोविज्ञान और इंटीरियर डिज़ाइनिंग से जुड़ी किताबें पढ़ना ज्यादा पसंद हैं, साथ ही वह पेंटिंग और स्केंचिंग भी कर लेती हैं।
राष्ट्रमंडल खेलों में शानदार वापसी करते हुए हिना सिद्धू ने रजत पदक अपने नाम कर लिया। वह एक बार तो बाहर होने की कगार पर थीं। वह विवादों के घेरे में इस खेल महाकुंभ तक पहुंचीं। खेल मंत्रालय ने उनके पति और कोच रौनक पंडित को एक्रीडिटेशन देने से इनकार कर दिया था। वर्ष 2010 में उन्होंने दिल्ली में राष्ट्रमंडल खेल में भी रजत जीता था। 29 अगस्त 1989 को अपने ननिहाल लुधियाना में पैदा हुईं सिद्धू का घर पटियाला में है। वैसे तो वह डेंटल सर्जरी में डॉक्टरेट हैं और न्यूरोलॉजिस्ट बनना चाहती थीं लेकिन निशानेबाज़ पिता से मिले संस्कारों ने उन्हें शूटर बना दिया। ताजा स्पर्धा में भारत का दबदबा इतना था कि पहले दो पदक के लिए सिर्फ सिद्धू और भाकर ही दौड़ में बच गए।
अब सिद्धू ने शानदार वापसी कर अपने आलोचकों की जुबान पर ताला जड़ दिया है। उन्होंने लगातार नौ के स्कोर के बाद दस प्लस का स्कोर किया। इस तरह उन्होंने ऑस्ट्रेलिया में चल रहे गोल्ड कोस्ट कॉमनवेल्थ गेम्स 2018 में 10 मीटर की एयर पिस्टल राउंड के लिए क्वालीफाई कर लिया। उन्होंने 400 में से 379 अंक का स्कोर बनाकर क्वालिफिकेशन राउंड में दूसरा स्थान प्राप्त किया। भारत को सिल्वर मेडल दिलाने वाली हिना सिद्धू कहती हैं कि निश्चित तौर शूटिंग में पदक की उम्मीद सभी को होती है और सिल्वर मेडल जीतने के बाद अच्छा लग रहा है लेकिन इसकी चुनौतियां भी कुछ कम नहीं हैं।
सिद्धू को शूटिंग के अलावा किताबें पढ़ने और नई जगहों पर घूमने शौक है। उनको खेल, एनॉटमी, मनोविज्ञान और इंटीरियर डिज़ाइनिंग से जुड़ी किताबें पढ़ना ज्यादा पसंद हैं। वह हाथ पेंटिंग और स्केंचिंग भी कर लेती हैं। उनको 2014 में अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। वर्ष 2016 में उन्होंने नौवीं एशियाई एयरगन शूटिंग चैंपियनशिप से अपना नाम वापस ले लिया था। वह ईरान में चैंपियनशिप में हिजाब पहनने की अनिवार्यता से असहमत थीं।
सिद्धू बताती हैं कि में स्थिरता, टाइमिंग, रिदम और ट्रिगर का अपना अलग इम्पॉर्टेंस है। इसके लिए वह तरह-तरह की एक्सरसाइज़ करती हैं, जबकि डॉक्टर ने उनको उंगली से कुछ भी पकड़ने से मना कर दिया था, लेकिन जुनून ऐसा था कि हिम्मत नहीं छोड़ी और बन गई वर्ल्ड चैम्पियन। अपने अतीत पर रोशनी डालती हुई वह बताती हैं कि वर्ष 2006 में जब मेडिकल में दाखिले के लिए वह जबर्दस्त तैयारी कर रही थीं, निशानेबाज पिता और बंदूकों के व्यवसायी चाचा की संगत ने उनके हाथों में पिस्टल पकड़ा दिया। आगे चलकर कुछ ही वक्त में उनका यह शौक उनका फ़ुल टाइम मिशन बन गया।
हिना के भाई करनवीर सिंह भी जूनियर स्तर पर शूटिंग मुकाबलों में भाग लेते रहे हैं। पिता एक्साइज एंड टैक्सेशन महकमे में उच्चाधिकारी रहे हैं। कॉलेज के दिनों से ही मेडल जीतने का सिलसिला शुरू हो गया था, जब 19 साल की उम्र में उन्होंने हंगेरियन ओपन जीता और 2009 में बीजिंग में हुए वर्ल्ड कप में रजत पदक। निशानेबाज़ रौनक पंडित बाद में उनके कोच बने। वर्ष 2012 में वही उनके पति भी हो गए। सिद्धू के श्वसुर अशोक पंडित शूटिंग द्रोणाचार्य अवार्डी हैं। सिद्धू के पिता तो ताजा स्पर्द्धा में बेटी के लिए गोल्ड मेडल की उम्मीद पालकर चल रहे थे, फिर भी सिल्वर मेडल जीतना भी कोई कम बड़ी उपलब्धि नहीं है।
उसकी इस सफलता के बाद मां रुमिंदर कौर ने गुरुद्वारे में माथा टेका। वर्ष 2013 की विश्व शूटिंग प्रतियोगिता में 10 मीटर एयर पिस्टल टूर्नामेंट में वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाकर स्वर्ण पदक जीतने वाली वह पहली भारतीय महिला बन गईं। सिद्धू के पिता बताते हैं कि वर्ष 2017 में उसकी उंगली में चोट लग गई थी, जिससे शूटिंग के दौरान उनकी उंगली कांपती थी। डॉक्टर ने उंगली से कोई चीज पकड़ने से भी मना कर दिया था, लेकिन इलाज, फिजियोथेरेपी और अपनी हिम्मत की बदौलत सिद्धू ने कमबैक किया।
शानदार प्रदर्शन करते हुए 2017 में कॉमनवेल्थ शूटिंग चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता। विश्व रैंकिंग में नंबर वन रह चुकीं सिद्धू को इस साल 2018 में फोर्ब्स ने 'अंडर-30 यंग अचीवर्स' की सूची में शामिल किया है। सिद्धू मैच से पहले कार्बोहाइडेट्स, प्रोटीन ज्यादा लेती हैं लेकिन कॉफ़ी, चाय और चीनी कम कर देती हैं। उनके सामने एक वक्त ऐसा भी आया, जब घायल होकर वह खेल नहीं पा रही थीं।
सिद्धू वर्ष 2008 से विश्व स्तर पर भारत का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं। वर्ष 2009 में उन्होंने बीजिंग में आयोजित इंटरनेशनल शूटिंग चैंपियनशिप में सिल्वर जीता तो 2010 में गुआंगझू (चीन) में एशियन गेम्स में 10 मीटर एयर पिस्टल में गोल्ड मेडल। वर्ष 2010 में ही कॉमनवेल्थ गेम्स में उनको गोल्ड मेडल मिला। वह वर्ष 2012 में लंदन और 2016 में रियो डी जेनेरियो ओलंपिक्स में भी भारत का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं। बचपन से ही घर में बंदूकों के बीच खेली-कूदी, छत पर ईंटों पर निशाना साधने वाली सिद्धू का तब कहां पता था कि वह एक दिन दुनिया की नंबर-वन शूटर बन जाएंगी। कभी अंबाला शूटिंग रेंज में शूटिंग करने वाली सिद्दू नहीं जानती थीं कि वो इस मुकाम तक पहुंच जाएंगी।
आज हरियाणा में शूटिंग करने आने वाले सभी लड़के-लड़कियों के लिए वह प्रेरणास्रोत हैं। सिद्धू की मां बताती हैं कि कुछ कर गुजरने के लिए चाह उसमें बचपन से ही थी। वह जो सोचती, उसे कर गुजरना चाहती थी। वह स्कूल में हमेशा अव्वल रही। हमेशा से उसके बाहर गिने-चुने ही दोस्त रहे हैं। उसने छह साल की उम्र में पहली गोली चलाई थी। बचपन में उनको खिलौने भी गन वाले ही दिए जाते थे। उन्हीं से खेलते-खेलते उन्होंने एक दिन अपने चाचा से असली गन चलाने की इच्छा जता दी।
वह गन चाचा के पास रिपयेर होने के लिए आई थी। चाचा भतीजी से भी ज्यादा बिंदास थे। वह डरे नहीं और हंसते-हंसते उसकी ख्वाहिश पूरी कर दी। उस दिन सिद्धू के हाथ आई गन ने उसे निशानेबाजी की दुनिया की तरफ मोड़ दिया। बताया जाता है कि बीडीएस में दाखिला लेने के लिए जब वह फार्म भरने की तैयारी कर रही थीं, तभी उनकी जिंदगी में टर्निंग प्वाइंट आया। उन्होंने ट्रेनिंग के लिए पटियाला में स्वर्ण मैडम क्लब ज्वॉइन कर लिया। उस दिन से जारी निशानेबाजी के सफर में आज सिद्धू विश्व-मंच पर अपने जलवे दिखा रही हैं।
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