Brands
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
Yourstory

Brands

Resources

Stories

General

In-Depth

Announcement

Reports

News

Funding

Startup Sectors

Women in tech

Sportstech

Agritech

E-Commerce

Education

Lifestyle

Entertainment

Art & Culture

Travel & Leisure

Curtain Raiser

Wine and Food

YSTV

ADVERTISEMENT
Advertise with us

टेक्नोलॉजी की 'विद्या', लड़कियों की रोल मॉडल

टेक्नोलॉजी की 'विद्या', लड़कियों की रोल मॉडल

Saturday October 17, 2015 , 4 min Read

image


यह कहानी एक ऐसी लड़की की है जिसने कंप्यूटर के क्षेत्र में न सिर्फ एक ऊँचा मक़ाम हासिल किया बल्कि लड़कियों के लिए एक रोल मॉडल साबित हुईं...इन्होंने अपने हौसलों को बुलंद किया और कामयाबी की सीढ़ियों की तरफ कदम बढ़ती चली गयी... 

1989 की बात हैं कि कंप्यूटर साइंस कर रही विद्या लक्ष्मण का प्यार और उनका लगाव टेक्नोलॉजी से बहुत ज़्यादा था। विद्या ने उस समय टेक्नोलॉजी के क्षेत्र को चुना जिस वक़्त बहुत ही कम लड़कियां इस क्षेत्र में अपनी रूचि रखती थीं। वह लड़कियों कि इस सोच को बदलना चाहती थीं और इस क्षेत्र में आगे बढ़ना चाहती थीं। आर.वी. कॉलेज में इंजीनियरिंग पढ़ रही विद्या बताती हैं कि 3000 छात्रों के बैच में वहां सिर्फ 54 लड़कियां थीं I जिसमे से सिर्फ 18 कंप्यूटर साइंस के क्षेत्र में थीं। टेक्नोलॉजी के इस स्ट्रीम को चुनने की श्रेय वह अपने भाई और पिता जी को देती हैं जिन्होंने शुरू से उनका इंटरेस्ट टेक्नोलॉजी की तरफ बढ़ाया। उनके भाई की सोच टेक्निकल थी। शुरु में वो चीजें तोड़ता और विद्या उन्हें जोड़ती थीं।

आर्मी बैकग्राउंड में पली बड़ी विद्या बताती हैं कि चूंकि उनके पिता जी का नौकरी के सिलसिले में लगातार ट्रांसफर होता रहता इसलिए परिवार को अलग-अलग शहरों में रहना पड़ा। हर शहर का अपना मिज़ाज होता है इसलिए हर शहर के रहन-सहन को अपनाना भी पड़ा। उनका मानना है कि टेक्नोलॉजी एक ऐसा क्षेत्र है जहा बदलाव आते रहते हैं परन्तु उनका लालन पालन और जल्द ही बदलाव को अपना लेने की आदत से उन्हें कभी किसी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा। वे आगे बताती हैं कि उन दिनों ऐसी कोई भी महिला नहीं थी जिसे वह अपना रोल मॉडल बना सकतीं। वह जिस भी क्षेत्र में नज़र डालती उन्हें केवल पुरुष ही ऊँचे पदों पर नज़र आते थे। विद्या ने बस तभी से यह तय कर लिया कि वह महिलाओं के लिए रोल मॉडल बनेगी और उन्हें इस क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करेंगीं ।

image


कहते हैं सफलता आसानी से नहीं मिलती। उसके लिए जी-तोड़ मेहनत करनी पड़ती है। विद्या इससे अलग नहीं थीं। वो बताती हैं कि जब वो 8 माह की गर्भवती थीं तब भी उन्होंने अपना संपूर्ण योगदान आर्गेनाइजेशन को दिया। ज़ाहिर है उनकी इस मेहनत को उनकी संस्था ने भी सराहा और आगे बढ़ने में मदद की। अपने इस व्यक्तिगत अनुभव को उन्होंने दूसरी महिलाओं पर भी नोटिस किया। वो यह बताती हैं कि वर्किंग महिलाएं अकसर अपने मातृत्व में कहीं न कहीं एक प्रकार का अपराध महसूस करती हैं कि वह अपने बच्चों पर ध्यान नहीं दे पा रहीं या फिर उनके लिए भरपूर समय नहीं निकाल पा रही। ऐसे में ज़रूरी है कि संस्था और अमुक महिला कर्मचारी दोनों का खुले दिमाग का होना अति आवश्यक है। ताकि वह इस समय को धैर्य व एक दूसरे के सहयोग से निकाल सकें। ऐसा करने से आर्गेनाइजेशन और कर्मचारी के सम्बन्ध मज़बूत होते हैं।

विद्या एक व्यक्तिगत घटना बताते हुए कहती हैं कि जब वह 2001 में 7 माह की गर्भवती थीं तो वो एक इंटरव्यू के लिए गयीं। वह इंटरव्यू सिर्फ एक इंटरव्यू नहीं था बल्कि उनका सपना था कि उन्हें वह नौकरी मिल जाए लेकिन ऐसा नहीं हो सका। उनकी गर्भावस्था कि वजह से उन्हें वह नौकरी नहीं मिल सकी। उन्हें बहुत दुःख हुआ। इस दौरान उनके माता पिता ने बहुत हौसला दिया।

कभी हार न मानाने वाली विद्या ने अपने हौसलो को बुलंद किया और तरक्की की तरफ कदम बढ़ाना शुरू कर दिया। विद्या आज बेंगलुरू में टेस्को कंपनी की एक सफल डायरेक्टर हैं और अनीता भोग इंस्टिट्यूट की को-चेयरमैन हैं। वह उन सभी महिलाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं जो अपनी ज़िन्दगी में आगे बढ़ने का जज़्बा रखती हैं और अपने सपनों को पूरा करने के लिए कठिनाइयों का बखूबी सामना करती हैं। आज जो भी विद्या कि तरफ देखता है वह गर्व से कहता है कि जी हाँ अगर महिलाऐं चाहें तो वह आसमान को भी छू सकती हैं।