रियल लाइफ के फुंसुक वांगड़ू को डी. लिट की मानद उपाधि से किया गया सम्मानित
सोनम वांगचुक को अभी हाल ही में महाराष्ट्र के पुणे विश्वविद्यालय द्वारा मानद डी. लिट की डिग्री से सम्मानित किया गया है। उन्हें सिम्बायोसिस इंटरनेशनल (डीम्ड यूनिवर्सिटी) पुणे द्वारा एक इनोवेटर और एजुकेशनिस्ट के रूप में उनके काम को मान्यता देते हुए सम्मानित किया गया।
डिग्री लेने के बाद, वांगचुक ने कहा कि उन्होंने कुछ भी बड़ा या विशेष नहीं किया है। इंजीनियर से एजूकेटर बने वांगचुक ने कहा, "मैंने वही काम किया जो मानवता लोगों से करने को कहती है।"
बॉलीवुड की ब्लॉकबस्टर फिल्म "थ्री ईडियट्स" सभी को याद होगी। खासकर उस फिल्म में आमिर खान द्वारा निभाया गया किरदार फुंसुक वांगड़ू हर किसी के जहन में अभी तक बसा हुआ है। दरअसल वो फुंसुक वांगड़ू कोई काल्पनिक कैरेक्टर नहीं है बल्कि असल जिंदगी के एक शख्स का कैरेक्टर है जो अपने क्षेत्र में आज भी कई बड़ी उपलब्धियां हासिल कर रहा है। ये शख्स कोई और नहीं बल्कि लद्दाख स्थित इंजीनियर सोनम वांगचुक हैं। सोनम वांगचुक को अभी हाल ही में महाराष्ट्र के पुणे विश्वविद्यालय द्वारा मानद डी. लिट की डिग्री से सम्मानित किया गया है। उन्हें सिम्बायोसिस इंटरनेशनल (डीम्ड यूनिवर्सिटी) पुणे द्वारा एक इनोवेटर और एजुकेशनिस्ट के रूप में उनके काम को मान्यता देते हुए सम्मानित किया गया। इस खास अवसर पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद मुख्य अतिथि के रूप में वहां मौजूद थे।
वांगचुक ने कहा कि उन्होंने वही किया जो मानवता लोगों डिमांड करती है। डिग्री लेने के बाद, वांगचुक ने कहा कि उन्होंने कुछ भी बड़ा या विशेष नहीं किया है। इंजीनियर से एजूकेटर बने वांगचुक ने कहा, "मैंने वही काम किया जो मानवता लोगों से करने को कहती है।" आपको बता दें कि वांगचुक ने छात्रों के शैक्षणिक और सांस्कृतिक आंदोलन लद्दाख (SECMOL) की स्थापना की है।
3 इडियट्स फिल्म के फुंसुख वांगड़ू का किरदार लद्दाख के रहने वाले इंजिनियर सोनम वांगचुक से प्रेरित था। वांगचुक उन प्रतिभावान बच्चों के सपनों को पूरा करने का काम कर रहे हैं, जिन्हें आगे बढ़ने का मौका नहीं मिल पाता। उन्होंने इसके लिए एजुकेशनल ऐंड कल्चरल मूवमेंट ऑफ लद्दाख नाम का संगठन बनाया है। पिछले 20 सालों से वो दूसरों के लिए पूरी तरह समर्पित होकर काम कर रहे हैं। वास्तव में असल ज़िन्दगी के सोनम वांगचुक, फिल्मी पर्दे के 'फुंगसुक वांगड़ू' से बड़े हीरो हैं। वागंचुक को लद्दाख में बर्फ स्तूप कृत्रिम ग्लेशियर परियोजना के लिए लॉस एंजिलिस में पुरस्कृत भी किया गया है। यह कृत्रिम ग्लेशियर 100 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला है। इसे अनावश्यक पानी को इकटट्ठा करके बनाया गया है।
वांगचुक का सबसे अलहदा स्कूल
बचपन में वांगचुक सात साल तक अपनी मां के साथ एक रिमोट लद्दाखी गांव में रहे। यहां उन्होंने कई स्थानीय भाषाएं भी सींखीं। बाद में जब उन्होंने लद्दाख में शिक्षा के लिए काम करना शुरू किया, तो उन्हें अहसास हुआ कि बच्चों को सवालों के जवाब पता होते हैं लेकिन सबसे ज्यादा परेशानी भाषा की वजह से होती है।
वांगचुक ने 1988 में लद्दाख के बर्फीले रेगिस्तान में शिक्षा की सुधार का जिम्मा उठाया और स्टूडेंट एजुकेशनल एंड कल्चरल मूवमेंट ऑफ लद्दाख की स्थापना की। वांगचुक का दावा है कि सेकमॉल अपने तरह का इकलौता स्कूल है, जहां सबकुछ अलग तरीके से किया जाता है। वह आधुनिक शिक्षा का मॉडल रखने की लगातार कोशिश कर रहे हैं और काफी हद तक इसमें सफल भी हुए हैं। वह आधुनिक शिक्षा का मॉडल रखने की लगातार कोशिश कर रहे हैं और काफी हद तक इसमें सफल भी हुए हैं।
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