आत्महत्या का ख्याल मन से निकाल काम में जुटीं, 'एच सरोजा'आज हैं कंपनी की मालकिन
सालों से कर रही हैं सेंवई बनाने का कारोबार...26 कर्मचारी करते हैं Nandi Vermicelli Industries में काम...महिलाओं को कर रही हैं सशक्त...बच्चों को पढ़ाने के लिए सीखी इंग्लिश...पति ने छोड़ा साथ, परिवार ने नहीं की मदद...कर्नाटक के सिमोगा से कर रही हैं कारोबार...10 सालों तक परिवार वालों से रही दूर...
कहते हैं कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती। हारता वही है जो जल्दी ही घुटने टेक देता है। अपने सपनों से समझौता कर लेता है। अपनी उम्मीदों से मुंह मोड़ लेता है। कहते हैं इन पंक्तियों को लिखना आसान है पर इन पर चलना तलवार की धार पर चलने जैसा है और मंज़िल बनाना उतना ही कठिन है। एक ऐसी ही महिला हैं एच सरोजा। सरोजा की ज़िंदगी न सिर्फ एक मिसाल है बल्कि टूटते, बिखरते और मंज़िल के लिए जूझते लोगों के लिए साहस और ताक़त देने का काम करती है। एच सरोजा ने भी कभी हार मानना सीखा ही नहीं था। तभी तो आज उनके अकेले दम पर कर्नाटक के सिमोगा जिले के भद्रावती इलाके में खाद्य प्रसंस्करण से जुड़ी उनकी Nandi Vermicelli Industries चल रही है। हालांकि ये उनका पहला उद्यम नहीं है इससे पहले वो ब्यूटी पार्लर, मोमबत्ती, पापड़, डेयरी, पटाखे और टैक्सटाइल से जुड़े धंधों में भी अपना हाथ आजमा चुकी हैं। इनमें से कई उद्यम ऐसे थे जो श्रमिकों से जुड़े मुद्दों के बढ़ने के कारण बंद करने पड़े। हालांकि वो इसका बड़ी चतुराई से जवाब देती हैं उनके मुताबिक वो किसी भी काम को बंद नहीं करना चाहती थीं लेकिन उनको नुकसान उठाना पड़ रहा था और तरक्की उतनी तेजी से नहीं हो रही थी जितनी वो देखना चाहती थीं।
इन सब के बाद एच सरोजा ने सेवई उद्योग की शुरूआत की। दरअसल उनकी यात्रा शुरू हुई साल 1994 में। जब उन्होने खुद को सशक्त बनाने के लिए स्वरोजगार के बारे में सोचा। सरोजा अच्छे घर से ताल्लुक रखती थी बावजूद इसके वो आत्मनिर्भर और स्वतंत्र रहना चाहती थी। सरोजा ने अपने चचेरे भाई के साथ शादी की थी। जो साल भर तक सरोजा के ही घर में रहा। वो बताती हैं कि उनके पति चाहते थे कि जिंदगी भर वो इसी घर में आराम से रहें और कभी वो कमाई करना चाहते ही नहीं थे। जबकि सरोजा दूसरे तरह के विचारों की थी वो चाहती थी कि आत्मनिर्भर बना जाए और स्व-रोजगार शुरू किया जाए। इसके लिए उन्होने माता-पिता का घर छोड़ दिया और अपने ससुराल जाकर रहने लगी। यहां उनको अपने परिवार से की मदद नहीं मिल रही थी उनको कोई नैतिक या वित्तीय समर्थन देने वाला भी नहीं था। ऐसे में उनकी जिंदगी चुनौतिपूर्ण बन रही थी। कठिन हालात से निकलने के लिए एच सरोजा को ये समझ में नहीं आ रहा था कि वो करें तो क्या करें। क्योंकि अब तक वो एक गृहणी की भूमिका में थी और ना ही उनके पास कोई खास शैक्षिक योग्यता थी। वो तो 10वीं तक की पढ़ाई भी नहीं कर पाई थी। तब काफी सोच विचार के बाद उन्होने अपने को तैयार किया और फैसला लिया कि वो भी कोई स्वरोजगार शुरू कर अपने सपनों को पूरा करेंगी। इसके अलावा वो चाहती थी कि वो ऐसी महिलाओं के लिए काम करें जो उनकी तरह कुछ करना चाहती हैं लेकिन लाचार हैं। ऐसी महिलाएं जिनके पास परिवार का समर्थन नहीं है। लेकिन उनको अपने आप पर भरोसा है। इस तरह उन्होने साल 1994 में छोटे स्तर पर अपना ये काम शुरू किया और आज उनकी कंपनी में 26 कर्मचारी काम करते हैं। तभी तो आज वो बड़े गर्व से कहती हैं कि वो Nandi Vermicelli Industries की मालिक हैं। आज भद्रावती इलाके में उनकी कंपनी की दो यूनिट चल रही हैं। सरोजा अपने कर्मचारियों और उनके परिवार वालों का खूब ध्यान रखती है। वो अपने कर्मचारियों के बच्चों की शिक्षा को काफी महत्व देती हैं।
एक उद्यमी होने के नाते सरोजा को भी काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। सरोजा बताती हैं कि वो सेंवई के उत्पादन का प्रबंधन और उसकी गुणवत्ता को बनाये रखने में सक्षम थी लेकिन उसकी मार्केटिंग करने में वो असफल रही। क्योंकि उनके पास नये और प्रतिस्पर्धी विचारों की कमी थी इसलिए वो बाजार में अपने उत्पाद बेचने में सफल नहीं हुई। इस समस्या से निपटने और बाजार का मुकाबला करने के लिए उन्होने बहुत कम मार्जिन में अपने उत्पाद को साल भर तक बेचने का फैसला लिया। इसके अलावा दूसरी समस्या थी श्रमिकों की जब उनको बड़े ऑर्डर मिलते तो उनको इसके लिए श्रमिक ढूंढे नहीं मिलते थे। इस समस्या का तोड़ उन्होने अपनी मशीनों को बदल कर निकाला। जहां पहले वो सेमी-ऑटोमेटिक मशीन का इस्तेमाल करती थी वहीं अब ऑटिमेटिक मशीन ने जगह ले ली।
व्यक्तिगत तौर पर भी उनको कई परेशानियों का सामना करना पड़ा। जहां एक ओर परिवार का उनको कोई समर्थन नहीं था वहीं वो एक छोटी सी झोपड़ी में रहने को मजबूर थी। जहां पर साफ-सफाई की पर्याप्त व्यवस्था नहीं थी, उन्होने कई ऐसे शारीरिक काम किये जिनको अक्सर मर्द ही करते हैं। एक मां के तौर पर उन्होने अपने बच्चों के लिए जितना अच्छा कर सकती थी किया। ज्यादा शिक्षित ना होने और कोई डिग्री ना होने के कारण उनके बच्चों को इंग्लिश मीडियम स्कूल में एडमिशन नहीं हो रहा था। तो सरोजा ने इसे चुनौती के तौर पर लिया और इस मुश्किल से पार पाने का फैसला किया। उन्होने तय किया वो पहले इंग्लिश सीखेंगी। इसके लिए उन्होने एक टीचर रखा वो उनको स्कूल में पूछे जाने वाले प्रश्नों का अंग्रेजी में कैसे उत्तर देना है इसके लिए ट्रेनिंग दी। इसके बाद बच्चों के एडमिशन के लिए जब सरोजा का इंटरव्यू हुआ तो उन्होने अंग्रेजी में ही सारे सवालों के जवाब दिये जिसके बाद उनके बच्चों का एडमिशन इंग्लिश मीडियम स्कूल में संभव हो सका।
सरोजा में आत्मविश्वास था यही वजह थी कि उसने अपने परिजनों से कह दिया था कि जब तक वो सफल नहीं होती तब तक वो उनके घर में नहीं आएंगी। यही वजह रही कि वो 10 सालों तक अपने परिवार वालों से दूर रहीं। सरोजा को इस लड़ाई में ताकत मिली लेकिन एक वक्त वो भी था जब उनको चारों और अंधेरा ही अंधेरा दिख रहा था। एक खूबसूरत महिला होने के नाते ना चाहते हुए भी पुरूष अक्सर उन पर नजर गढ़ाये रहते। ये समस्या तब और बढ़ जाती जब वो अपना उत्पाद बेचने के लिए किसी घर में जाती और पुरूष उनको बुरी नजर से देखते, छेड़खानी करते उसके सामने प्रस्ताव रखते। तब सरोजा के मन में ख्याल आता कि वो बदसूरत क्यों नहीं है ताकि वो लोगों का ध्यान ना खींच सके।
सरोजा ने जब अपने बच्चों के साथ अकेले रहने का फैसला लिया तो कई ऐसा काम किये जो अक्सर औरतें नहीं करती हैं। जैसे अपना समान ढोने वाला वाहन वो खुद ही चलाती थी। तब कई मौकों पर सरोजा के मन में ख्याल आता कि वो अपने बच्चों के साथ आत्महत्या क्यों नहीं कर लेती। लेकिन ईश्वर के आर्शीवाद से और अपनी मेहनत से वो इन मुश्किल हालात से पार पाने में सफल रहीं। लेकिन आज वो बड़े गर्व से बताती हैं कि उनके पास हेवी व्हिकल चलाने का लाइसेंस है।
सरोजा ने सदैव अपने काम से प्यार किया जो उनको आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता रहा। फिर चाहे मामला खुद अपने पैरों में खड़े होने का हो या फिर दूसरी महिलाओं को रोजगार देकर उनको ताकतवर बनाने का, सरोजा को इससे बहुत संतुष्ट हैं। कारोबार के क्षेत्र में प्रतियोगिता तो बनी ही रहती है और कोई भी नया प्रतियोगी उनको मेहनत करने के लिए प्रेरित करता है। सरोजा अपने काम को खूब पसंद कर रही हैं और अपने उत्पाद के ज्यादा से ज्यादा ऑर्डर प्राप्त कर रही हैं। अपने उत्पाद की डिमांड बनाये रखने के लिए वो विभिन्न प्रकार की सेंवई बनाती हैं। फिलहाल उनके उद्यम की बनाई सेंवई कर्नाटक में बिक रहीं हैं लेकिन वो चाहती हैं कि उनकी पहुंच दिल्ली तक हो जहां से उनको अच्छी प्रतिक्रिया मिलने की उम्मीद है। इतने सालों की मेहनत के बाद उन्होने मान लिया है कि कोई भी कारोबार अपने आप घाटे में नहीं जाता। किसी भी कारोबार के घाटे में जाने की वजह होती है अज्ञानता, लापरवाही और अपने आसपास देखने की कम क्षमता। तरक्की की राह में उनका एक ही मंत्र है अगर कोई ऊंची उड़ान भरना चाहता है तो उसे अपने पंख फैलाने होंगे और जब कोई उस ऊंचाई पर पहुंच जाए तो उसे अपने आसपास के लोगों को नहीं भूलना चाहिए।