इस 11 साल के लड़के ने अपने घायल माता-पिता को गांव वापस ले जाने के लिए चलाई 600 किमी साइकिल
तबारक के पिता इसराफिल के साथ हुई दुर्घटना उनका पैर फ्रैक्चर हो गया, जबकि उनकी माँ सोगरा धान की फ़सल काटते समय लगी एक चोट के चलते अंधी हो गई थीं।
देश ने प्रवासी मजदूरों की उन कई तस्वीरों को देखा जो महामारी के चलते हुए लॉकडाउन की शुरुआत के दौरान पैदल यात्रा कर रहे थे। हालांकि परिवहन सेवाओं के धीरे-धीरे देश भर में चरणबद्ध तरीके से खुलने के बाद भी अभी मजदूरों को उनके मूल राज्य जाने में तमाम परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।
स्थिति को अपने हाथों में लेते हुए 11 वर्षीय तबारक ने उत्तर प्रदेश के वाराणसी से बिहार के अररिया तक अपने माता-पिता को ले जाने के लिए लगातार नौ दिनों तक तिपहिया रिक्शा चलाया।
दंपति के छह बच्चों में से पाँचवें बच्चे तबारक ने यह सुनिश्चित करने के लिए 600 किमी की यात्रा की कि उनके माता और पिता गाँव सुरक्षित पहुँचे। उनका परिवार भूमिहीन है और अररिया के जोकीहाट ब्लॉक में एक झोपड़ी में रहता है। उनके पिता इसराफिल के साथ हुई दुर्घटना उनका पैर फ्रैक्चर हो गया, जबकि उनकी माँ सोगरा धान की फ़सल काटते समय लगी एक चोट के चलते अंधी हो गई थीं।
तबारक के 55 वर्षीय पिता इसराफिल ने द वायर को बताया,
“काम के चौथे दिन एक पत्थर मेरे पैर पर गिर गया और दुकान के मालिक ने मेरा मेडिकल करवाया। लॉकडाउन से ठीक पहले मेरी पत्नी और बेटे ने मुझसे मुलाकात की थी। हमारे पास खाना नहीं था। मेरे पास एक तिपहिया गाड़ी है, इसलिए हमने यह सोचकर यात्रा शुरू की कि हम यहाँ (वाराणसी में) वैसे भी मर रहे हैं लेकिन रास्ते में हम जिन लोगों से मिले, उन्होंने हमें घर तक सुरक्षित पहुंचाने में मदद की।”
गाँव पहुँचने पर तबारक और इसराफिल को जोकीहाट के एक सरकारी स्कूल में एक आइसोलेशन वार्ड में ले जाया गया, जबकि उनकी माँ सोगरा घर पर ही रह रही हैं, क्योंकि एक ही आइसोलेशन वार्ड में महिलाओं को ठहराने की कोई सुविधा नहीं थी।
इससे पहले एक 15 वर्षीय किशोरी ज्योति ने लॉकडाउन के दौरान परिवहन की कमी के कारण 10 मई को दिल्ली से अपने पिता को एक साइकिल में बिठाकर एक सप्ताह की यात्रा और 12 सौ किलोमीटर की दूरी तय कर दरभंगा, बिहार आई थी।
हालांकि तबारक और ज्योति की कहानी उनके साहस और दृढ़ संकल्प के बारे में बात करती है, लेकिन 24 मार्च को पहली बार देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा के बाद से प्रवासी मजदूरों और दैनिक वेतन भोगियों द्वारा सामना की जाने वाली मुश्किलों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।