एक RTO अफसर की बदौलत हज़ारों HIV पीड़ितों ने की शादी, ज़रिया बना ‘पॉजिटिव साथी’
साल 2007 में शुरू किया “पॉजिटिव साथी”...
एचआईवी पीड़ितों के लिए नायाब प्लेटफॉर्म...
हजारों एचआईवी पीड़ितों की हो चुकी है शादी...
दुनिया में एचआईवी पीड़ितों की आबादी के मामले में हमारा देश तीसरा स्थान रखता है। यहां 15 से 20 लाख लोग एड्स से पीड़ित हैं और इसकी वजह से डेढ़ लाख लोग साल 2011-2014 के बीच मर चुके हैं। आकंडे बताने के लिए काफी हैं कि ये बीमारी कितनी खतरनाक है। ऐसे में वो इंसान जिसे ये बीमारी होती है तो क्या वो जीना छोड़ दे, परिवार को बढ़ाने की अपनी इच्छा को त्याग दे। नहीं, ऐसा नहीं हो सकता। जिस तरह आम इंसान को आपस में शादी करने का हक है तो वैसे ही क्या एचआईवी पीड़ित लोगों को भी शादी करने का हक नहीं होना चाहिए। बावजूद इसके एचआईवी पीड़ित लोगों को अपने साथी की तलाश करने में बड़ी दिक्कत आती है, क्योंकि हमारे समाज में अभी इतना खुलापन नहीं आया कि कोई ये बताये कि उनको एचआईवी है और उसे एचआईवी साथी की तलाश है। एचआईवी पीड़ितों की इसी दिक्कत को समझते हुए महाराष्ट्र के आरटीओ विभाग में काम कर रहे अनिल वालिव ने इस समस्या का तोड़ निकाला और एक ऐसा प्लेटफॉर्म तैयार किया जहां पर एचआईवी पीड़ित लोग आपस में मिल सकते हैं, बात कर सकते हैं और शादी भी कर सकते हैं। अनिल ने इसके लिये ‘पॉजिटिव साथी’ नाम एक वेबसाइट शुरू की है। जिसके जरिये वो अब तक हजारों एचआईवी पीड़ितों की शादी करवा चुके हैं।
अनिल वालिव महाराष्ट्र के आरटीओ विभाग में सहायक आरटीओ के पद पर पुणे में काम कर रहे हैं। अमरावती, लातूर, शोलापुर में काम कर चुके अनिल ने योरस्टोरी को बताया-
“जब मैं अमरावती में था तो ट्रक ड्राइवरों के लिए रोड सेफ्टी को लेकर कई कार्यक्रम चलाता था। इस दौरान ट्रक ड्राइवर को हर तीन साल में अपना लाइसेंस रिन्यू करने के लिए एक वर्कशॉप में आना होता था जहां पर रोड सेफ्टी की बातें और लेक्चर देने का काम करता था। इसके बाद जब ट्रांसफर लातूर जिले में हुआ तो वर्कशॉप के साथ ट्रक ड्राइवरों को एचआईवी के बारे में भी जानकारी देने का काम शुरू किया।"
इसकी एक खास वजह भी थी और वो थी कि इनके एक दोस्त को एचआईवी हो गया था जिसके बाद उसका पूरा परिवार बिखर गया था। इस घटना को इन्होंने काफी करीब से देखा था। ऐसे में दूसरों को जागृत करने के लिए अनिल ने एचआईवी के बारे में भी जानकारी देने का काम शुरू किया। साथ ही सरकारी अस्पताल की मदद से ट्रक डॉइवरों की काउंसलिंग का काम भी शुरू कर दिया।
आरटीओ में नौकरी करने के दौरान इन्होंने अपने दोस्त और दूसरे लोगों के जरिये महसूस किया कि एचआईवी संक्रमित लोगों की शादी एक बड़ी अड़चन है। इन्होने देखा की कई बार घर का इकलौता लड़का जो एचआईवी संक्रमित होता है बावजूद उसके माता पिता उसकी शादी कराना चाहते हैं। इसके अलावा एचआईवी लोग ज्यादातर अपनी पहचान नहीं बताते थे इसलिए उनको अपना साथी ढूंढने में काफी दिक्कत होती थी और बमुश्किल ही कोई अपना साथी ढूंढने में कामयाब हो पाता था। इसके अलावा इन्होने देखा कि शादी करने के लिए कई एचआईवी पीड़ित लोग अपने बारे में सही जानकारी नहीं बताते थे और वो गरीब, अनपढ़ या अपंग साथी के साथ शादी कर लेते। जिसके बाद ये बीमारी दूसरे साथी को भी हो जाती। अनिल बताते हैं--
"मैंने सोचा कि क्यों ना एक ऐसा प्लेटफॉर्म तैयार किया जाए जहां पर एचआईवी पीड़ित लोग मिल सकें और जिन लोगों को ये बीमारी नहीं है उनकी जान बच सके। जिसके बाद साल 2007 में इन्होने एचआईवी पीड़ित लोगों के लिए ‘पोजिटिव साथी’ नाम से एक वेबसाइट शुरू कर दी।"
इस वेबसाइट के जरिये कोई भी एचआईवी पीड़ित महिला या पुरुष अपने लिये उचित साथी की तलाश कर सकता है। वो यहां पर अपने बारे में जानकारी दे सकता है और दूसरे पक्ष को अगर उसकी दी गई जानकारी पसंद आती है तो वो उससे संपर्क भी कर सकता है। इस वेबसाइट में कोई भी व्यक्ति मुफ्त में अपनी जानकारी दे सकता है और शादी के बाद उस जानकारी को वहां से हटा सकता है। हालांकि शुरूआत में इस काम को लेकर अनिल को थोड़ा संदेह था कि एचआईवी लोग उनकी इस पहल को पसंद भी करेंगे कि नहीं लेकिन वक्त के साथ लोगों को उनका ये आइडिया काफी अच्छा लगा। एक अनुमान के मुताबिक अब तक करीब एक हजार से ज्यादा लोग इस वेबसाइट के जरिये शादी कर चुके हैं। अनिल बताते हैं कि इस वेबसाइट को लोग इतना पसंद करते हैं कि कई बार ना सिर्फ वो फोन पर शुक्रिया करते हैं बल्कि दिल्ली, बैंगलौर जैसे दूर दराज के शहरों से लोग पुणे सिर्फ उनको धन्यवाद करने के लिए आते हैं। अनिल के मुताबिक वो कई एचआईवी पीड़ित दंपति को जानते हैं जिन्होने उनकी वेबसाइट के जरिये शादी की। जिसके बाद उनके जो बच्चे हुए वो स्वस्थ्य हैं।
वेबसाइट को चलाने का सारा खर्च अनिल खुद ही उठाते हैं। लोगों से मिली अच्छी प्रतिक्रिया के बाद उन्होने ‘पॉजिटिव साथी’ नाम से एक संस्था भी बनाई है। जो एचआईवी पीड़ित लोगों को आपस में मिलाने का काम करती है। इसके लिए ये समय समय पर पुणे, मुंबई, सांगली, शोलापुर जैसे विभिन्न शहरों में सम्मेलन का भी आयोजन करते हैं। जहां पर एचआईवी पीड़ित लोग आमने सामने बैठकर शादी की बात करते हैं। अब तक ये करीब 20 ऐसे सम्मेलन आयोजित कर चुके हैं। कई सम्मेलन में तो दो-ढ़ाई सौ से ज्यादा एचआईवी पीड़ित लोगों ने हिस्सा लिया।
अनिल जितना अपने सरकारी काम को लेकर ईमानदार हैं उतना ही वो इस नेक काम को लेकर गंभीर भी हैं। तभी तो वो बताते हैं कि उनकी वेबसाइट के जरिये कुछ शादी चंद घंटों में ही हो गई और आज वो अपने परिवार के साथ खुश हैं, आबाद हैं। भविष्य में अनिल की योजना अब एचआईवी पीड़ित अनाथ बच्चों के लिए काम करने की है। फिलहाल वो एक ऐसी योजना पर काम कर रहे हैं जिसके जरिये अनाथ एचआईवी पीड़ित बच्चों को आम लोग गोद ले सकें या फिर उनका खर्चा उठाने की जिम्मेदारी ले सकें। ताकि एचआईवी पीड़ित जरूरतमंद बच्चों की दिक्कतों को दूर किया जा सके।
Website : www.positivesaathi.com