अब महिला बस कंडक्टरों को मिलेगी 9 महीने की पेड मैटरनिटी लीव
महाराष्ट्र स्टेट रोड ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन ने महिला बस कंडक्टर्स की पेड मैटरनिटी लीव में किया इज़ाफ़ा...
क्या आपने कभी सोचा है कि महिला बस कंडक्टर, प्रेग्नेंसी के समय अपने शरीर और काम के बीच किस तरह से सामंजस्य बिठाती हैं ? उनके काम में बेशुमार शारीरिक मेहनत की आवश्यकता होती है, लेकिन प्रेग्नेंसी के दौरान उन्हें भी पूरे आराम का अधिकार है।
महाराष्ट्र स्टेट रोड ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन (एमएसआरटीसी) ने महिला कंडक्टरों को एक ख़ास तोहफ़ा दिया है। कॉर्पोरेशन ने पेड मैटरनिटी लीव की अवधि को 6 महीनों से बढ़ाकर 9 महीने कर दिया है।
प्रेग्नेंसी का समय महिलाओं के लिए जितना रोमांचक और उत्साहपूर्ण होता है, उतना ही संवेदनशील और जोखिमभरा भी होता है। ख़ासतौर पर काम पर जाने वाली महिलाओं (वर्किंग वुमन) के लिए यह वक़्त और भी चुनौतीपूर्ण होता है। उन्हें अपने काम और अपने जीवन के बिल्कुल ही नए अनुभव के बीच तालमेल बिठाना होता है। किसी भी तरह के शारीरिक या मानसिक दबाव का असर गर्भ में पल रहे बच्चे पर पड़ सकता है। क्या आपने कभी सोचा है कि महिला बस कंडक्टर, इस समय अपने शरीर और काम के बीच किस तरह से सामंजस्य बिठा पाती होंगी? उनके काम में बेशुमार शारीरिक मेहनत की आवश्यकता होती है, लेकिन प्रेग्नेंसी के दौरान उन्हें भी पूरे आराम का अधिकार है। महिला कंडक्टरों की इस ज़रूरत का ख़्याल रखते हुए महाराष्ट्र स्टेट रोड ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन ने उनकी पेड मैटरनिटी लीव की अवधि में इज़ाफ़ा किया है।
महाराष्ट्र स्टेट रोड ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन (एमएसआरटीसी) ने महिला कंडक्टरों को एक ख़ास तोहफ़ा दिया है। कॉर्पोरेशन ने पेड मैटरनिटी लीव की अवधि को 6 महीनों से बढ़ाकर 9 महीने कर दिया है। इसके साथ-साथ महिला बस कंडक्टर प्रेग्नेंसी के दौरान काम के साथ बेहतर तालमेल बना सकें, इसलिए उन्हें इस दौरान डेस्क जॉब देने का प्रस्ताव भी रखा गया है ताकि उन्हें कम शारीरिक मेहनत करनी पड़े।
एक व्यापक प्रदर्शन के फलस्वरूप महाराष्ट्र रोड ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन ने यह बड़ा फ़ैसला लिया है। आपको बता दें कि इस व्यापक प्रदर्शन ने एक सर्वे की रिपोर्ट में आए गंभीर आंकड़ों के बाद ज़ोर पकड़ा था। रिपोर्ट में बताया गया था कि 25 प्रतिशत महिला कंडक्टर, गर्भपात के बुरे अनुभव से गुज़रती हैं। सर्वे ने यह भी बताया था कि सिर्फ़ 43 प्रतिशत महिला कंडक्टरों को ही प्रेग्नेंसी के दौरान डेस्क जॉब की अनुमति मिल पाती है। सर्वे में पाया गया कि प्रेग्नेंसी के दौरान मुख्य रुप से अधिक शारीरिक मेहनत की वजह से ही महिला कंडक्टरों को गर्भपात का शिकार होना पड़ा।
एक महिला कंडक्टर ने टाइम्स ऑफ़ इंडिया से बात करते हुए कहा कि जिन रूटों पर वे बस में चलती हैं, ज़रूरी नहीं है कि वहां की सड़कें हमेशा अच्छी ही हों। साथ ही, उन्होंने बताया कि काम के दौरान ही गर्भपात का ख़तरा सबसे अधिक होता है। उन्होंने कॉर्पोरेशन के इस फ़ैसले की सराहना करते हुए, महिलाओं की चिंताओं को संज्ञान में लेने के धन्यवाद भी दिया।
इंटरनैशनल ट्रांसपोर्ट वर्कर्स फ़ेडरेशन (आईटीएफ़) की आधिकारिक साइट के हवाले से आईटीएफ़ प्रोजेक्ट की को-ऑर्डिनेटर शीला नाइकवडे ने कहा कि अंततः महिला कंडक्टरों के गर्भपात के बढ़ते आंकड़ों को रोकने के लिए, एक प्रभावी कदम सामने आया है। उन्होंने कहा कि उनकी टीम ट्रांसपोर्ट मिनिस्टर और कंपनी को इस नियम के लिए राज़ी करने में कामयाब हुई और उन्हें इस बात की बेहद ख़ुशी है। इस बड़े कदम के पीछे महाराष्ट्र के ट्रांसपोर्ट मिनिस्टर और एमएसआरटीसी के चेयरमैन, दिवाकर राओत का विशेष योगदान रहा। कॉर्पोरेशन के अधिकारिओं का मानना है कि इस फ़ैसले और सुधार के बाद महिलाओं का अपने वर्कप्लेस पर भरोसा बढ़ेगा और अधिक से अधिक महिलाओं को एमएसआरटीसी से जुड़ने की प्रेरणा मिलेगी।
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