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इंजीनियर बना किसान, यूट्यूब से सीख शुरू की स्ट्रॉबेरी की खेती

यूट्यूब और इंटरनेट की मदद से इंजीनियर बन गया किसान, अच्छी कमाई के साथ-साथ खेती से मिल रही आत्म-संतुष्टि भी...

इंजीनियर बना किसान, यूट्यूब से सीख शुरू की स्ट्रॉबेरी की खेती

Monday January 08, 2018 , 8 min Read

दीपक राजस्थान में अपनी पुस्तैनी जमीन पर स्ट्रॉबेरी की खेती कर रहे हैं। इंजीनियरिंग की डिग्री लेने के बाद वह फ्रीलांस वेब डिजाइनिंग करने लगे और उनका वह काम भी अच्छा चल निकला। दीपक को सिर्फ देश से ही नहीं, बल्कि विदेशी क्लाइंट्स भी मिलने लगे।

दीपक और उनकी स्ट्रॉबेरी

दीपक और उनकी स्ट्रॉबेरी


दीपक बताते हैं कि सबसे बड़ी चुनौती है कि किसानों को अपने तरीके बदलने के लिए तैयार करना। दीपक मानते हैं कि यह तभी संभव है, जब किसानों को कोई व्यावहारिक उदाहरण दिया जाए।

दीपक ने इंटरनेट और यूट्यूब के जरिए स्ट्रॉबेरी की खेती के संबंध में नोट्स बनाना शुरू किया। उन्होंने नियमित तौर पर कृषि-विशेषज्ञों से सलाह लेना शुरू किया और स्ट्रॉबेरी की खेती से जुड़ी हर बारीकी को समझा। 

आजकल की पीढ़ी फिर से गांवों की ओर रुख कर रही है और खेती के तरीकों में बड़े बदलावों की भूमिका तैयार कर रही है। कुछ ऐसी ही कहानी है राजस्थान के दीपक नायक की, जो इंजीनियरिंग करने के बाद अब अपनी पुश्तैनी जमीर पर स्ट्रॉबेरी की खेती कर रहे हैं। दिलचस्प बात है कि उन्होंने यूट्यूब से खेती के नुस्खे सीखे। दीपक राजस्थान में अपनी पुस्तैनी जमीन पर स्ट्रॉबेरी की खेती कर रहे हैं। इंजीनियरिंग की डिग्री लेने के बाद वह फ्रीलांस वेब डिजाइनिंग करने लगे और उनका वह काम भी अच्छा चल निकला। दीपक को सिर्फ देश से ही नहीं, बल्कि विदेशी क्लाइंट्स भी मिलने लगे।

अच्छा काम मिलने के बाद भी दीपक अपने पुराने दिनों के सुकून की कमी महसूस कर रहे थे, जो उन्हें अपने खेतों में घूमने के दौरान मिलता था। दीपक की पुश्तैनी जमीन राजस्थान के पाली जिले के बिरंतिया कलां गांव में थी। दीपक ने पाया कि किसान सालों पुराने तरीकों से ही खेती कर रहे हैं और साल दर साल एक ही फसल लगा रहे हैं। इस वजह से ही किसानों को पर्याप्त मुनाफा भी नहीं मिल रहा है।

खेती शुरू करने की वजह

दीपक बताते हैं कि वह रिटायरमेंट के बाद चैन की जिंदगी चाहते हैं और उनका मानना है कि यह सिर्फ तभी संभव है, जब प्रकृति के नजदीक रहा जाए और इस वजह से ही उन्होंने खेती शुरू की। दीपक किसान जरूर बनना चाहते थे, लेकिन खेती के परंपरागत तरीकों पर उनका विश्वास नहीं था। दीपक ने बताया कि एक बार जब वह छुट्टियों के दौरान महाराष्ट्र गए थे, तब उन्होंने सतारा और जलगांव जैसी जगहों पर किसानों को स्ट्रॉबेरी की खेती करते देखा था। राजस्थान की जलवायु भी महाराष्ट्र जैसी ही है। इसके बाद ही दीपक को अपने खेत में स्ट्रॉबेरी उगाने का ख्याल आया।

दीपक इस क्षेत्र में नए थे, इसलिए उन्होंने किसानों से खेती के नुस्खे सीखना शुरू किया। दीपक बताते हैं कि उन्हें बहुत निराशा हुई, जब उन्हें पता चला कि अधिकतर किसान स्ट्रॉबेरी के बारे में जानते ही नहीं। दीपक ने जानकारी दी कि उनके गांव में अधिकतर किसान चना, मूंग और बाजरा जैसी फसलें उगाते हैं। दीपक ने जब गांव के किसानों को बताया कि वह स्ट्रॉबेरी की फसल उगाने जा रहे हैं, तो लोगों ने उनका मजाक उड़ाया।

यूट्यूब से सीखी खेती

ऐसी प्रतिक्रिया के बाद दीपक ने तय किया कि वह अब अपने आप ही चीजें सीखेंगे। दीपक ने इंटरनेट और यूट्यूब के जरिए स्ट्रॉबेरी की खेती के संबंध में नोट्स बनाना शुरू किया। उन्होंने नियमित तौर पर कृषि-विशेषज्ञों से सलाह लेना शुरू किया और स्ट्रॉबेरी की खेती से जुड़ी हर बारीकी को समझा। जब उन्हें अपने ऊपर यकीन हो गया कि अब वह इस काम को करने के लिए तैयार हैं, वह अक्टूबर, 2017 में अपने गांव चले गए और सिर्फ 1 एकड़ जमीन पर उन्होंने स्ट्रॉबेरी की खेती शुरू की। सिर्फ दो महीनों में उन्होंने स्ट्रॉबेरी की फसल खड़ी कर ली। दीपक ने इस सफलता के पीछे की कहानी और तरीके साझा किए। आइए जानते हैं, उनके बारे में:

1) मिट्टी की जांच

दीपक को इस बात की जानकारी नहीं थी कि उनकी जमीन स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए उपयुक्त है या नहीं, इसलिए उन्होंने मृदा परीक्षण विभाग की मदद ली। सिर्फ 700 रुपए के खर्च में आप अपनी जमीन की मिट्टी की जांच करा सकते हैं और उसकी विस्तृत रिपोर्ट हासिल कर सकते हैं। दीपक के मुताबिक, स्ट्रॉबेरी उगाने के लिए मिट्टी का पीएच स्तर 7 और पानी का स्तर (वॉटर ईसी लेवल) 0.7 होना चाहिए।

2) तापमान

स्ट्रॉबेरी उगाने के लिए न्यूनतम तापमान 10 डिग्री सेल्सियस और अधिकतम तापमान 30-32 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए। यही वजह है कि इस फसल को लगाने के लिए सर्दियों का समय सबसे उपयुक्त होता है।

3) जमीन तैयार करना

फसल के लिए जमीन तैयार करने के लिए दीपक ने मिट्टी में गाय के गोबर से तैयार जैविक खाद मिलाई। दीपक के पास अपने मवेशी नहीं थे, इसलिए उन्होंने साथी गांव वालों से गोबर इकट्ठा किया। खाद मिलाने से पहले और बाद मिट्टी को खोदकर पलटा गया। इसके बाद 2×180 फुट के बेड तैयार किए गए और मिट्टी को फसल रोपने के लिए तैयार किया गया।

4) उर्वरकों का सही इस्तेमाल

बेड तैयार करने के बाद उस पर डीएपी उर्वरक का छिड़काव किया गया। उर्वरकों के इस्तेमाल के लिए दीपक ने मात्रा और मिश्रण के संबंध में विशेषज्ञों से सलाह ली। प्रत्येक बेड पर 50 किलो कम्पोस्ट खाद डाली गई।

5) तकनीक का इस्तेमाल

दीपक ने अपने खेत में ड्रिप सिंचाई का सिस्टम लगवाया। दीपक मानते हैं कि स्ट्रॉबेरी की खेती करने वालों को इस तरह की ही सिंचाई का इस्तेमाल करना चाहिए। सिंचाई के बाद दीपक ने मल्किंग जैसी आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल किया।

6) रोपण

दीपक ने केएफ बायोप्लान्ट्स प्राइवेट लिमिटेड (पुणे) से पौधे खरीदे। दीपक को 9.50 रुपए की दर से पौधे मिले। शुरूआत में दीपक ने 15,000 पौधे खरीदे और उन्हें 1 एकड़ जमीन पर रोपित किया। दीपक बताते हैं कि 1 एकड़ में 24,000 तक पौधे तक लगा सकते हैं। दीपक ने अधिकतम संभावित दूरी पर पौधे लगाए। दीपक ने सुझाव दिया कि दो पंक्तियों के बीच की दूरी शुरूआत में 10-12 इंच तक होनी चाहिए। हालांकि, दीपक ने यह दूरी 12-14 इंच तक रखी।

ध्यान रखने योग्य बातें

स्ट्रॉबेरी के पौधों में जल्द ही फंफूद लग जाती है, इसलिए सुझाव है कि नियमित अंतराल पर फंफूद-रोधक दवाई डालते रहना चाहिए। दीपक सलाह देते हैं कि ऑर्गेनिक दवाइयों का इस्तेमाल करना चाहिए। दूसरी महत्वपूर्ण बात है कि तापमान में अंतर भी संभव है और इसलिए नियमित अंतराल पर पौधों पर पानी का छिड़काव भी करते रहना चाहिए। दीपक कहते हैं कि हमें खराब और सड़ी-गली पत्तियों को भी हटाते रहना चाहिए।

फल आने की शुरूआत

रोपण से 40-50 दिनों के भीतर फल आने की शुरूआत हो जाती है। इसके कुछ दिनों बाद ही फल तोड़े जा सकते हैं। दीपक ने हाल ही में 5 किलो तक फल निकाले हैं और अगले कुछ ही दिनों के भीतर 20-30 किलो स्ट्रॉबेरी एक दिन के अंतराल में निकाले जा सकते हैं। अगले 20 दिनों के बाद एक एकड़ जमीन से एक दिन के अंतराल में 40-50 किलो तक फल तोड़े जा सकते हैं। इस हिसाब से हर मौसम में हम 1 एकड़ जमीन से 4-5 टन तक स्ट्रॉबेरी प्राप्त की जा सकती है।

मार्केटिंग

दीपक के गांव से जुड़े बिलावर और अजमेर में दीपक की स्ट्रॉबेरी की अच्छी मांग है। ऐसा इसलिए क्योंकि आस-पास के इलाकों में इसकी खेती ही नहीं हो रही है। दीपक 200 रुपए प्रति किलो की दर से स्ट्रॉबेरी बेचते हैं। वह सीधे ग्राहकों को अपनी फसल बेचते हैं। स्ट्रॉबेरी को ज्यादा समय तक स्टोर करके नहीं रखा जा सकता। महाराष्ट्र में उगने वाली स्ट्रॉबेरी को पहले अहमदाबाद लाया जाता है और फिर आस-पास के बाजारों तक पहुंचाया जाता है। इस पूरी प्रक्रिया में एक हफ्ते तक का समय लगता है और इस वजह से ग्राहकों को ताजी स्ट्रॉबेरी नहीं मिल पाती। दीपक को इस बात की खुशी है कि वह ग्राहकों को ताजी स्ट्रॉबेरी उपलब्ध करा रहे हैं।

आत्म-संतोष

दीपक बताते हैं कि सबसे बड़ी चुनौती है कि किसानों को अपने तरीके बदलने के लिए तैयार करना। दीपक मानते हैं कि यह तभी संभव है, जब किसानों को कोई व्यावहारिक उदाहरण दिया जाए। दीपक कहते हैं कि उन्होंने किसानों को स्ट्रॉबेरी का स्वाद चखाया और उन्हें इसी तरह की गैर-परंपरागत फसलें उगाने के लिए प्रेरित किया। दीपक कहते हैं कि यह उनके लिए आत्म-संतुष्टि का विषय है।

दीपक ने अपने खेत के पास एक पॉली हाउस बनाने की योजना बनाई है, जहां पर वह विदेशी फल और सब्जियां उगाना चाहते हैं। उन्होंने एक सेकंड हैंड गैलवनाइज्ड पाइप भी खरीदा है और अभी तक अपने निवेश के लिए उन्होंने कोई सब्सिडी भी नहीं ली है। नुकसान के चलते खेती से दूरी बनाने वाले किसानों को दीपक संदेश देते हैं कि ऐसा नहीं है कि आपको बिजनेस या नौकरी में नुकसान नहीं झेलना पड़ता। हर क्षेत्र में सभी को उतार-चढ़ाव देखने पड़ते हैं, लेकिन किसी चीज से भागना कोई उपाय नहीं है। दीपक कहते हैं कि यह हमारी जमीन है और हमें इसे नहीं छोड़ना है। दीपक मानते हैं कि अगर हम चाहते हैं कि अगर हमारी आने वाली पीढ़ियां एक प्रदूषण मुक्त और स्वस्थ जीवन जिएं तो सबसे उपयुक्त उपाय है कि हम खेती की ओर रुख करें।

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