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कोयला बीनकर भूख मिटाने वाले ओमप्रकाश से ओम पुरी बनने की दास्तां

कोयला बीनकर भूख मिटाने वाले ओमप्रकाश से ओम पुरी बनने की दास्तां

Thursday October 18, 2018 , 7 min Read

बचपन से ही कठिन संघर्ष करते हुए रेलवे पटरियों के किनारे कोयला बीनकर पेट की आग बुझाने वाले हिंदी फिल्मों के मशहूर अभिनेता ओम पुरी का आज यानी 18 अक्तूबर को जन्मदिन है। ओम जी अपनी जिन बातों के लिए चर्चित रहे, उनमें एक उनकी स्वयं की मृत्यु की भविष्यवाणी भी रही।

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ओमपुरी की इस जीवनी का नामकरण करने में सुप्रसिद्ध फिल्मकार श्याम बेनेगल की भूमिका रही। उन्होंने ओम को 'असाधारण नायक' कहकर निश्चय ही कोई गलती नहीं की है लेकिन इस असाधारण नायक की जीवनी पढ़कर लगता है कि वे हमेशा साधारण व्यक्ति रहे।

अपने 'अनिश्चित' से बर्थडे 18 अक्टूबर, 1950 को अंबाला में पैदा हुए मशहूर अभिनेता पद्मश्री ओम पुरी ने कभी स्वयं अपनी मृत्यु की भविष्यवाणी करते हुए कहा था कि वह किसी दिन अचानक दुनिया छोड़ जाएंगे। सचमुच, 6 जनवरी 2017 को 66 साल की उम्र में संदिग्ध हालात में इस शीर्ष चरित्र अभिनेता का देहावसान हो गया। उनके जाने से पूरी फिल्म इंडस्ट्री ही नहीं, देश-दुनिया के उनके करोड़ो चाहने वालो के लिए वह वाकया एक गहरे सदमे जैसा रहा। ओम पुरी का कहना था कि 'उन्हें मृत्यु का भय नहीं। बीमारी का भय होता है। जब हम देखते हैं कि लोग लाचार हो जाते हैं, बीमारी की वजह से और दूसरों पर निर्भर हो जाते हैं। उससे डर लगता है। मृत्यु से डर नहीं लगता। वह कहते थे कि मृत्यु का तो आपको पता भी नहीं चलेगा। सोए-सोए चल देंगे। आपको पता चलेगा कि ओम पुरी का कल सुबह 7 बजकर 22 मिनट पर निधन हो गया।' ओम पुरी ने पहली शादी 1991 में सीमा कपूर से हुई। एक साल बाद वे अलग हो गए। उन्होंने 1993 में नंदिता से शादी कर ली। 2013 में उनका नंदिता से भी तलाक हो गया।

एक वक्त में कोयला बीनकर अपने पेट की आग बुझाने वाले ओम पुरी का घर बचपन के दिनो में एक रेलवे यार्ड था। वह अक्सर उसी ट्रेन में सोने के लिए चले जाते थे और उन दिनों ट्रेन से उन्हें लगाव हो गया था। उस समय उन्होंने तय किया कि वे रेलवे में ड्राइवर बनेंगे। ओम पुरी ने बचपन से कठोर संघर्ष किया। पांच वर्ष की उम्र में रेल की पटरियों से कोयला बीनकर घर लाया करते थे। सात वर्ष की उम्र में वह चाय की दुकान पर जूठे गिलास धोकर गुजर करने लगे। सरकारी स्कूल से पढ़ाई कर कॉलेज पहुंचे, तब भी साथ-साथ छोटी-मोटी नौकरियां करते रहे। कॉलेज में ही 'यूथ फेस्टिवल' में नाटक में हिस्सा लेने के दौरान उनका परिचय पंजाबी थिएटर के पिता हरपाल तिवाना से हुआ और यहीं से उनको वह रास्ता मिला जो आगे चलकर उन्हें मंजिल तक पहुंचाने वाला था।

पंजाब से निकलकर वे दिल्ली पहुंचे। एन.एस.डी. में भर्ती हुए लेकिन अपनी कमजोर अंग्रेजी के कारण वहां से निकलने की सोचने लगे। तब इब्राहिम अल्काजी ने उनकी यह कुंठा दूर की और हिंदी में ही बात करने की सलाह दी। धीरे-धीरे अंग्रेजी भी सीखते रहे। एन.एस.डी. के बाद 'फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया' से एक्टिंग का कोर्स करने के बाद वह मुंबई चले गए। कला फिल्मों से टेलीविजन, व्यावसायिक फिल्मों और हॉलीवुड की फिल्मों तक का सफर तय करके उन्होंने सफलता का स्वाद भी चखा।

उनकी इस सफलता के बारे में उनके मित्र अभिनेता नसीरुद्दीन शाह ने ठीक ही लिखा है- 'ओमप्रकाश पुरी से ओम पुरी बनने तक की पूरी यात्रा जिसका मैं चश्मदीद गवाह रहा हूं, एक दुबले-पतले चेहरे पर कई दागों वाला युवक जो भूखी आंखों और लोहे के इरादों के साथ एक स्टोव, एक सॉसपैन और कुछ किताबों के साथ एक बरामदे में रहता था, अंतर्राष्ट्रीय स्तर का कलाकार बन गया।' ओमपुरी की इस जीवनी का नामकरण करने में सुप्रसिद्ध फिल्मकार श्याम बेनेगल की भूमिका रही। उन्होंने ओम को 'असाधारण नायक' कहकर निश्चय ही कोई गलती नहीं की है लेकिन इस असाधारण नायक की जीवनी पढ़कर लगता है कि वे हमेशा साधारण व्यक्ति रहे।

फिल्मों में वह कॉमेडी हो या इमोशन, ओम पुरी जो भी किरदार निभाते, उसमें जान डाल देते थे। बॉलीवुड में ओम पुरी ने आस्था, डर्टी पॉलिटिक्स, अर्ध सत्या, चाइना गेट, आक्रोश, जाने भी दो यारो, गांधी, बजरंगी भाईजान, घायल, प्यार तो होना ही था, नरसिंहा, डॉन-2, सिंह इज किंग, माचिस, चाची 420, रंग दे बसंती, दिल्ली-6 और पार जैसी बेहतरीन फिल्मों में काम किया। साल 1981 में आई फिल्म आक्रोश के लिए उनको सपोर्टिंग एक्टर के लिए फिल्मफेयर अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। इसके अलावा आरोहण और अर्ध सत्य के लिए नेशनल अवॉर्ड मिले। ट्यूबलाइट उनकी आखिरी फिल्म थी। इस फिल्म की शूटिंग के दौरान ही उन्हें हार्ट अटैक आया था।

ओम पुरी अपने अभिनय से ही नहीं, बोलचाल से भी सामने वाले को हैरत में डालने के आदी रहे। जीवन के आख़िरी वक्त में वह कई विवादों से जुड़े रहे। एक टीवी चैनल पर बहस के दौरान उन्होंने सरहद पर भारतीय जवानों के मारे जाने पर कहा था- 'उन्हें आर्मी में भर्ती होने के लिए किसने कहा था? उन्हें किसने कहा था कि हथियार उठाओ?' इसके बाद उनके ख़िलाफ़ केस दर्ज हो गया था। बाद में उन्होंने माफी मांगते हुए कहा था- 'मैंने जो कहा, उसके लिए काफी शर्मिंदा हूं। मैं इसके लिए सजा का भागीदार हूं। मुझे माफ नहीं किया जाना चाहिए। मैं उड़ी हमले में मारे गए भारतीय सैनिकों के परिवारों से माफी मांगता हूं।' जब नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बने थे, उस समय अपने एक बयान से सुर्खियों में आ गए थे ओम पुरी।

उन्होंने कहा था - 'अभी देखिए हमारे पास कोई च्वॉइस नहीं है, सिवाय मोदीजी की गोदी में बैठने के, बाकी गोदियां हमने देख ली हैं।' इसी तरह रामलीला मैदान में अन्ना हजारे की जनसभा में उन्होंने नेताओं पर तीखा हमला बोलते हुए कहा था- 'जब आईएस और आईपीएस ऑफिसर गंवार नेताओं को सलाम करते हैं तो मुझे शर्म आती है। ये अनपढ़ हैं, इनका क्या बैकग्राउंड है? आधे से ज़्यादा सांसद गंवार हैं।' इस बयान पर भी माफी मांगते हुए उन्होंने कहा- 'मैं संसद और संविधान की इज्जत करता हूं। मुझे भारतीय होने पर गर्व है।' जब अभिनेता आमिर ख़ान ने भारत में बढ़ती असहिष्णुता पर कहा था कि उनकी पत्नी ने एक दिन देश छोड़ने का जिक्र किया था। इस पर ओम पुरी ने कहा था- 'वह हैरान हैं कि आमिर ख़ान और उनकी पत्नी इस तरह से सोचते हैं। असहिष्णुता पर आमिर ख़ान का बयान बर्दाश्त करने लायक नहीं है। आमिर अपने समुदाय के लोगों को उकसा रहे हैं कि भैया, या तो तैयार हो जाओ, लड़ो या मुल्क छोड़कर जाओ।' भारत में गोहत्या पर प्रतिबंध को लेकर ओम पुरी ने कहा था- 'जिस देश में बीफ़ का निर्यात कर डॉलर कमाया जा रहा है, वहां गोहत्या प्रतिबंधित करने की बात एक पाखंड है।' ओम पुरी का कहना था कि नक्सली फाइटर हैं न कि आतंकवादी। नक्सली ग़ैरजिम्मेदाराना काम नहीं करते हैं। अपने हक़ों के लिए लड़ रहे हैं।

ओम पुरी ने हिन्दी फिल्मों के अलावा ब्रिटिश तथा अमेरिकी सिनेमा में भी काम किया। उन्होंने स्वयं का थिएटर ग्रुप 'मजमा' बनाया था। जब वह छह साल के थे, पिता रेलवे में कर्मचारी थे। एक आरोप में नौकरी चली गई। पूरा परिवार बेघर हो गया तो पुरी को चाय की दुकान में काम करना पड़ा। उन्नीस सौ अस्सी के दशक में हिंदी सिनेमा में कला फिल्मों का एक ऐसा दौर आया था जिसमें देश की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक समस्याओं को काफी गहराई में जाकर पर्दे पर दिखलाने की कोशिश की गई थी। कला फिल्मों ने आकर्षक चेहरे और आकर्षक शरीर वाले नायकों की जगह बिल्कुल आम आदमी की शक्ल-सूरत वाले अभिनेताओं को तरजीह देकर भी एक क्रांतिकारी काम किया था।

नसीरुद्दीन शाह, ओम पुरी, कुलभूषण खरबंदा, अनुपम खेर, नाना पाटेकर, शबाना आजमी, स्मिता पाटिल जैसे कलाकार उसी दौर में उभर कर सामने आए थे और अपने वास्तविक अभिनय के बल पर कला फिल्मों की जान बन गए थे। व्यावसायिक फिल्मों के अभिनेताओं जैसा भव्य रूप-सौंदर्य इन्हें भले ही न मिला हो, अभिनय के मामले में ये उन 'सुदर्शन-पुरुषों' से बहुत आगे थे। और रूप-सौंदर्य में सबसे निचले पायदान पर खड़े ओम पुरी जैसे अभिनेता ने तो अभिनय के बल पर अपनी अंतर्राष्ट्रीय पहचान तक बना ली थी। अभाव और संघर्ष में बचपन और जवानी गुजारने वाले ओम पुरी के संघर्षों, सफलताओं, जीवन जीने के तरीकों आदि पर अपनी पुस्तक 'असाधारण नायक ओम पुरी' में उनकी पत्नी नंदिता सी. पुरी ने इतनी बेबाकी से लिखा कि वह विवादों में आ गई।

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