अपनी ईमानदार छवि और सख्त रवैये से सिस्टम को सुधार रहीं महिला आईएएस किरण कौशल
सरगुजा में महिला आइएएस का इक़बाल बुलंद
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह आइएएस किरण कौशल को सार्वजनिक मंच से कोई बेवजह नहीं सराहते हैं। सरगुजा जिले की इस कलक्टर की कार्यशैली ने वहां के बाशिंदों को भी अभिभूत किया है और सरकार को भी। वह कभी हाथियों के आतंक से सहमे गांव में घर-घर जाकर ग्रामीणों को ढांढस बंधाने लगी हैं, कभी शिक्षाकर्मियों की हड़ताल पर स्कूल जाकर स्वयं बच्चों को पढ़ाने लगती हैं, एंड्रॉयड एप्लिकेशन से मेडिकल कॉलेज के लापरवाह डॉक्टरों पर नकेल कसती हैं तो कभी बड़े अफसरों समेत अपने तमाम मातहतों को भरी मीटिंग में बाहर का रास्ता दिखा देती हैं।
कलेक्टर किरण कौशल को सूबे के सीएम से कोई ऐसे ही शाबासी नहीं मिल गई। उनके सामाजिक सरोकार भी सियासत और शासन, दोनों को आकर्षित करते हैं। कभी वह बच्चों को पढ़ाने खुद स्कूल पहुंच जाती हैं तो कभी हाथियों से थर्राए गांव के लोगों को तसल्ली देने।
छत्तीसगढ़ में सरगुजा जिले की कलेक्टर हैं किरण कौशल। पिछले दिनो अपने मातहतों पर गुस्सा फूट पड़ने से भी वह सुर्खियों में आ गईं। वैसे प्रायः प्रदेश की चर्चित जिलाधिकारी होने की उनकी वजहें कुछ और रहती हैं। भारतीय प्रशासनिक सेवा की 2009 बैच की आइएएस किरण कौशल सरगुजा जिले की 48वीं कलेक्टर हैं और जिले की दूसरी महिला कलेक्टर। इससे पहले वह सरगुजा जिले में ही जिला पंचायत की मुख्य कार्यपालन अधिकारी रह चुकी हैं। पहले वह मुंगेली जिले में तैनात थीं। वह महिला एवं बाल विकास विभाग प्रमुख का भी ओहदा संभाल चुकी हैं।
इसी साल जनवरी में शासन की महत्वाकांक्षी योजनाओं के क्रियान्वयन में सरगुजा जिले के फर्स्ट आने पर मुख्यमंत्री रमन सिंह ने मंच से उनको जमकर सराहा था। डीएम के नेतृत्व में जिले ने उज्जवला योजना में एक लाख हितग्राहियों का रिकॉर्ड बनाया है। लेकिन इससे पहले, आइए जान लेते हैं, पिछले दिनो इन महिला कलक्टर को गुस्सा क्यों आया! आइएएस किरण उस समय अपने मातहतों की मीटिंग ले रही थीं। मीटिंग योजनाओं की समीक्षा पर फोकस थी। मीटिंग में ही कलक्टर ने अंबिकापुर जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी एसएस रात्रे को हटा दिया। इतना ही नहीं, उन्होंने लापरवाह कर्मियों के धड़ाधड़ तबादले और कारण बताओ नोटिस थमा कर रवाना कर दिए।
कलेक्टर के इतने कड़े तेवर से पूरे प्रशासन में हड़कंप-सा मच गया। जिला पंचायत सीईओ, छह पंचायतों के सचिवों के तबादले और इतने ही रोजगार सहायकों को एक साथ नोटिस थमा देना कलक्टर का कोई आसान कदम नहीं था। कलेक्टर किरण कौशल को सूबे के सीएम से कोई ऐसे ही शाबासी नहीं मिल गई। उनके सामाजिक सरोकार भी सियासत और शासन, दोनों को आकर्षित करते हैं। कभी वह बच्चों को पढ़ाने खुद स्कूल पहुंच जाती हैं तो कभी हाथियों से थर्राए गांव के लोगों को तसल्ली देने।
पिछले साल नवंबर में जब अंबिकापुर के शिक्षाकर्मी हड़ताल पर थे, कलक्टर ने जिले के सभी स्कूलों में शिक्षा व्यवस्था बहाल रखने के उद्देश्य से रेगुलर टीचर, प्रेरक, निजी स्कूलों के शिक्षकों एवं समाज सेवी संस्थाओं का तो सहयोग लिया ही, वह स्वयं भी शासकीय माध्यमिक शाला सोहगा के बच्चों की क्लास लेने पहुंच गईं। उन्हें काफी देर तक पढ़ाया। इसी तरह पिछले साल जून में सगुजा से साठ किलोमीटर दूर मैनपाट के बरिमा गांव में हाथियों के आतंक से ग्रामीण रतजगा करने लगे। एक रात हाथियों ने एक ग्रामीण को मार डाला और कई घरों को तोड़फोड़ कर जंगल की ओर चले गए। मृत ग्रामीण की पत्नी ने किसी तरह मौके से भागकर जान बचाई थी। कई लोग घर की खिड़कियों से कूद-कूदकर भाग निकले। इससे पूरा गांव दहशत में आ गया।
जब कलेक्टर किरण कौशल को घटना का पता चला तो वह बरिमा गांव पहुंच गईं। वह गांव के एक-एक पीड़ित व्यक्ति के घर जाकर उनसे मिलीं। साथ ही वहां की सुरक्षात्मक स्थियों और उपायों का जायजा लिया। उसके बाद, हाथी ने जिस ग्रामीण को मारकर उसके शरीर के तीन टुकड़े कर डाले थे, उसके परिवार को तत्काल 20 हजार रुपए की सहायता देने के साथ ही उस परिवार को प्रभावित क्षेत्र से दूर बसावट पर विचार किया। गौरतलब है कि मैनपाट के बरिमा जंगल के हाथी पूरे इलाके में दहशत फैलाए रहते हैं। यहां के लोग अपनी रातें यहां के आंगनबाड़ी केंद्रों में गुजारने को मजबूर रहते हैं। वे रातभर आग जला कर सुबह होने का इंतज़ार करते रहते हैं।
इसी साल जनवरी में कलेक्टर किरण कौशल अपने एक और कदम से सुर्खियों में आ गईं। जिले के लापरवाह डॉक्टरों की नकेल कसने के लिए उन्होंने एक नायाब तरीका निकाला। मेडिकल कॉलेज अस्पताल के डॉक्टर जब लाख समझाने के बावजूद प्रशासन के निर्देशों पर अमल के लिए सहमत नहीं हुए तो उनकी उपस्थति सुनिश्चित करने के लिए कलेक्टर ने एक 'DMAAA' नाम से एक एंड्रायड एप्लिकेशन बनवाने के बाद इसका उपयोग भी शुरू करा दिया। एंड्रायड एप्लिकेशन में व्यस्था दी गई कि डॉक्टर दिन में दो बार अस्पताल में राउंड के समय अपने मरीज की फोटो अपलोड करेंगे और स्टुवर्ट के लोग मरीजों के भोजन की थाली की फोटो अपलोड करेंगे जिसकी मानिटरिंग खुद कलेक्टर करेंगी।
इसके बाद मेडिकल कालेज के दो चिकित्सको ने इस्तीफा दे दिया। अफवाह फैला दी गई कि एंड्रायड एप्लिकेशन की वजह से डॉक्टर अपनी नौकरियां छोड़ने लगे हैं। इससे मरीजों और उनके तीमारदारों में हलचल पैदा हो गई। कलेक्टर डॉक्टरों के लाख दबाव बनाने के बावजूद झुकी नहीं। एंड्रायड एप्लिकेशन बनाने वाले आईटी एक्सपर्ट राजेश कुशवाहा के साथ प्रेस कांफ्रेंस कर उन्होंने सारी सच्चाई जनता के सामने रख दी। इसके बाद मेडिकल कॉलेज प्रबंधन को जवाब देते नहीं बना। किरण कौशल ने स्पष्ट कर दिया की एंड्रायड एप्लिकेशन की वजह से डॉक्टरों का नौकरी छोड़ना, फोटो अपलोड करते समय दिक्कतें आना, सब कहने और बचने की बातें हैं। उन्होंने मीडिया के सामने ये भी स्पष्ट कर दिया कि एंड्रायड एप्लिकेशन में फोटो ऑफलाइन 'सेव' होती है और नेटवर्क में आने पर फोटो खुद ही अपलोड हो जाती है। लिहाजा डॉक्टरों को सिर्फ फोटो क्लिक करनी होती है। दिक्कत एंड्रायड एप्लिकेशन का फॉर्मूला फॉलो करने में नहीं, बल्कि मरीजों के प्रति ठीक से ड्यूटी न निभाने की है।
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