मिजोरम में बना इतिहास: पहली बार गर्ल्स कै़डेट्स ने सैनिक स्कूल में लिया एडमिशन
भारत के पूर्व रक्षा मंत्री वीके कृष्णा ममेनन ने सैनिक स्कूल की स्थापना की इस मकसद से की थी ताकि भारतीय सेना में क्षेत्रीय और वर्ग अंतर को कम किया जा सके। पहला सैनिक स्कूल केंद्र सरकार द्वारा महाराष्ट्र के सतारा में 1961 में स्थापित किया गया था।
हालांकि इस साल लखनऊ सैनिक स्कूल ने 9वीं कक्षा में 17 लड़कियों को दाखिल किया था लेकिन इसी साल मई में मिजोरम के छिंगछिप में स्थापित सैनिक स्कूल ने लड़कियों को पूरी तरह से एडमिशन दे दिया है।
मिजोरम के छिंगछिप सैनिक स्कूल ने अपनी दाखिला प्रक्रिया में बदलाव कर के एक इतिहास बना दिया है। 50 सालों में पहली बार सैनिक स्कूल में लड़कियों को प्रवेश मिला है। इसके पहले सैनिक स्कूलों में सिर्फ लड़कों को प्रवेश दिया जाता था। भारत के पूर्व रक्षा मंत्री वीके कृष्णा ममेनन ने सैनिक स्कूल की स्थापना की इस मकसद से की थी ताकि भारतीय सेना में क्षेत्रीय और वर्ग अंतर को कम किया जा सके। पहला सैनिक स्कूल केंद्र सरकार द्वारा महाराष्ट्र के सतारा में 1961 में स्थापित किया गया था। इसके बाद पूरे देश में 28 स्कूलों की स्थापना की गई। ये सारे स्कूल राज्य सरकार और रक्षा मंत्रालय की देखरेख में चलते हैं। सिर्फ लखनऊ सैनिक स्कूल एक ऐसा स्कूल है जो पूरी तरह से राज्य सरकार के अधीन आता है।
हालांकि इस साल लखनऊ सैनिक स्कूल ने 9वीं कक्षा में 17 लड़कियों को दाखिल किया था लेकिन इसी साल मई में मिजोरम के छिंगछिप में स्थापित सैनिक स्कूल ने लड़कियों को पूरी तरह से एडमिशन दे दिया है। बीते साल अगस्त में स्कूल ने एक विज्ञप्ति के माध्यम से सूचना दी थी कि स्कूल की 10 फीसदी सीटें लड़कियों के लिए आरक्षित रहेंगी। इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक मिजोरम स्कूल के पूर्व प्रिंसिपल लेफ्टिनेंट कर्नल इंदरजीत सिंह ने कहा, 'हमारे लिए 10 प्रतिशत का मतलब हर कक्षा में 6 लड़कियां। हमारा स्कूल अभी नया है इसलिए यहां केवल दो बैच हैं। पहला 6वीं कक्षा जिसमें 60 बच्चे हैं और दूसरा 7वीं कक्षा जिसमें 100 बच्चे पढ़ते हैं।'
स्कूल के विज्ञप्ति निकालने के एक माह के भीतर ही 31 लड़कियों के एडमिशन फॉर्म मिले। इन लड़कियों ने लड़कों के साथ ही एंट्रेंस एग्जाम दिया। जिसमें से 21 को इंटरव्यू के लिए चुना गया। 21 में से 6 लड़कियां भाग्यशाली रहीं और उन्हें एडमिशन मिला। ये लड़कियां हैं- ज़ोनुनपुई लालनुन्पुआ, जुरीसा चक्मा, मालस्वमथरी खियांगटे, (11 वर्षीय) और एलिसिया लालमुआनपुई, लालहमिंगहुई लेलियाज़ुआला और एलिजाबेथ माल्सवामतुलूंगी। ये सभी लड़कियां अलग-अलग जिलों और अलग समुदाय, पृष्ठभूमि से आती हैं, लेकिन स्कूल में सब एक परिवार की तरह हैं।
इन बच्चियों को एडमिशन लिए पूरे चार महीने बीत रहे हैं और उन्हें कई तरह की चुनौतियां का सामना करना पड़ा, लेकिन स्कूल प्रशासन हर तरह की चुनौतियों का सामना करने की कोशिश कर रहा है। कर्नल सिंह ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, 'सबसे पहली चुनौती तो इन लड़कियों की सुरक्षा की थी। इसलिए हमने लड़कियों के हॉस्टल की सुरक्षा को व्यवस्थित किया। पहले दो स्तर की बाड़ लगाई गई थी फिर इनडोर को व्यवस्थित किया गया और एक गेम रूम भी बनाया गया। हमारा मकसद था कि इन लड़कियों को यहां एकदम सुरक्षित महसूस हो सके।'
जिस सैनिक स्कूल को सिर्फ लड़कों के लिए जाना जाता था वहां लड़कियों का पहुंचना लड़कों के लिए भी थोड़ा अलग अनुभव जैसा था। हालांकि सारे लड़के लड़कियों के आने से खुश हुए। अब वे साथ में खेलने के साथ ही पढ़ाई और व्यायाम भी करते हैं। 8वीं कक्षा के लालरुत्किमा ने कहा, 'वे टी ब्रेक दौरान आती हैं। इससे पहले यहां कोई लड़कियां नहीं थीं। सिर्फ हमें पढ़ाने वाली कुछ अध्यापिकाएं थीं।' लड़कों के लिए लड़कियों का साथ रहना थोड़ा अजीब है, लेकिन लड़कियों ने घुलमिलकर सब सामान्य कर दिया है। इस स्कूल में सभी बच्चों को 5:30 पर उठना पड़ता है और सीधे पीटी के लिए जाना पड़ता है।
आमतौर पर सैनिक स्कूल के बच्चों को अध्यापकों का प्यार कम मिलता है और उन्हें अनुशासन में रहने की सीख दी जाती है, लेकिन इन लड़कियों पर खास ध्यान दिया जा रहा है। उदाहरण के तौर पर एक बच्ची जुरीसा जैसे ही हॉस्टल आई उसे मासिक होने लगा। इस वजह से उसे घरवालों से बात करने की इजाजत दी गई। स्कूल के वर्तमान प्रधानाचार्य लेफ्टिनेंट कर्नल यूपीएस राठोड़ ने कहा, 'हमें लड़कों और लड़कियों के लिए अलग क्लास या अलग खेल करने के लिए कोई वजह नहीं दिखी। हमें लगता है कि यह सबके लिए अच्छा मौका है। हमारा मकसद यही दिखाना है कि लड़के और लड़कियां एक बराबर हैं।' इन लड़कियों के सैनिक स्कूल में प्रवेश मिलते ही उनके सपनों को नए पंख लग गए हैं। इन्हें शायद पता नहीं होगा कि ये अभी से इतिहास रच रही हैं।
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