दोस्त को खोने के बाद मरीज़ों की मदद के लिए बनाया एक अनोखा प्लेटफॉर्म 'हेल्थखोज'
कभी–कभी बीमारी का छोटा-सा लक्षण भी आने वाले वक़्त में आपके लिए ख़तरे की घंटी होता है। ज्यादातर मामलों में ये देखा गया है कि हम प्रायः इन्हें नज़रअंदाज़ कर देते हैं और तब ये एक ऐसा ख़तरा बन कर उभरता हैं, जिससे शायद ही निजात पाई जा सके। कुछ ऐसा ही हुआ आशीष तिवारी के साथ, जिन्होंने दुर्भाग्यपूर्ण बीमारी का उपचार सही न होने के चलते अपना एक दोस्त खो दिया।
आशीष ने ये महसूस किया कि यदि कोई सही प्लेटफॉर्म और बेहतर विकल्प मौजूद होते तो अवश्य ही वो लोग, अपने मित्र की जान बचा सकते थे। एक मित्र की मृत्यु ही वो कारण था, जिसके चलते “हेल्थखोज” की शुरुआत हुई।
इस प्लेटफॉर्म का उद्देश्य एक मरीज़ को वो सभी सुविधाएँ देना है जिसकी उसे तलाश है। ये प्लेट फॉर्म मरीज़ को बीमारी, उसके लक्षण, उपचार सभी सुविधाएँ मुहैया कराता है। कहा जा सकता है ये प्लेटफॉर्म मरीज़ों के उन तीमारदारों के लिए वरदान हैं, जो अपने मरीज़ को लेकर इधर उधर दौड़ते भागते हैं और अंत में परिणाम स्वरूप मरीज़ इन्हें छोड़कर चला जाता है। इस प्लेटफॉर्म से जहाँ एक तरफ़ मरीज़ के ख़र्चों में कमी आती है, तो वहीँ उसका समय भी बचता है, जिससे सही समय पर अस्पताल और जरूरी चिकित्सीय सुविधाएँ मिलने के चलते मरीज़ की जान बच सकती है।
ज़रूरत को समझना
हेल्थखोज के को-फाउंडर रत्नेश पाण्डेय के अनुसार “हमारा सारा ध्यान मरीज़ के स्वास्थ्य और उसकी स्थिति पर रहता है जहाँ हम मरीज़ की लम्बे समय तक देखभाल कर पाते हैं। इससे मरीज़ को तो फायदा होता ही है, साथ में तीमारदारों की परेशानियाँ भी कम होती हैं।
रत्नेश ये भी कहते हैं कि फ़िलहाल हमारा और टीम का सारा ध्यान इस दिशा में है कि कैसे हम इस बात का पता लगाएँ कि मरीज़ को सर्जरी और उससे निपटने के लिए सही प्रक्रियाओं के विषय में किस तरह की जानकारी है। हेल्थखोज कई अस्पतालों के साथ जुड़ा है, जहाँ मरीज़ प्रक्रियाओं का चयन कर सकते हैं। साथ ही उन्हें अपने ख़र्चों का एक एस्टीमेट भी मिल जायगा वो अलग – अलग जगह जा सकते हैं और जहाँ उन्हें बेहतर लगे वो उस अस्पताल का चयन कर सकते हैं।
2015 में स्थापित हेल्थखोज की शुरुआत रत्नेश, आशीष और प्रभाष ठाकुर के द्वारा की गयी थी। ये लोग तब से मित्र हैं, जब ये रीवा के सैनिक स्कूल में पढ़ रहे थे। हेल्थखोज की शुरुआत से पहले आईआईएम लखनऊ के पूर्व छात्र रह चुके रत्नेश विप्रो टेक्नोलॉजीज के लिए काम कर रहे थे और एक सॉफ्टवेर की टीम का नेतृत्कव कर रहे थे। आशीष आईआईटी खड़गपुर के पूर्व छात्र हैं, जो सिस्को में कार्यरत थे और प्रभाष आईआईटी-बी और एक्सएलआरआई के पूर्व छात्र हैं, जिन्होंने टीसीएस, जेनपेक्ट, टीपीआई और आईबीएम के साथ काम किया।
रत्नेश बताते हैं कि जैसे–जैसे हमने स्वास्थ्य संबंधी देखभाल प्रणाली को समझा वैसे–वैसे हमें ये समझ आया कि आज भी अस्पताल का चयन, सर्जरी के विकल्प, प्रक्रिया की जानकारी आदि कई ऐसे क्षेत्र हैं जिनपर बहुत सा काम होना बाकी है।
प्रक्रिया का पता लगाना
अपनी रिसर्च में इन लोगों ने पता लगाया कि अपनी पहली विजिट में 10 में से 7 मरीज़ सदैव सूचना के अभाव में गलत विकल्पों का चयन करते हैं। आज भारत का हेल्थ केयर सिस्टम बहुत ख़स्ता हाल है। 100 लोगों के लिए केवल 0.6 डॉक्टर और 1000 लोगों के लिए केवल 0.9 बिस्तरों का होना इस बात को साफ करते हैं।
रत्नेश ये भी बताते हैं कि “ 70 % यही सम्भावना रहती है कि एक मरीज़ इलाज के लिए गलत जगह जाता है। ऐसा करके मरीज़ का गलत उपचार, ख़र्चों में इज़ाफ़ा, परिवार के बीच तनाव और समय की कमी में इज़ाफ़ा कर देता है। रत्नेश मानते हैं कि भारत में मरीज़ की मृत्यु होने के ये अहम कारण हैं। आपको बताते चलें कि कैंसर केयर, मधुमेह की बीमारी, सांस की बीमारी, मानसिक स्वास्थ्य की बीमारी और हृदय की बीमारियाँ ही वो बीमारियाँ हैं, जिनसे भारत में हर साल लाखों लोग मरते हैं।
कोई भी व्यक्ति जब इस प्लेटफॉर्म या ऐप पर आता है, तब उसे इस ऐप में डाले गए 'सिमटम्स चेकर' में अपने लक्षण डालने होते हैं जो तीन या चार बार के बाद खुद ही इस बात का पता लगा लेता है कि अब मरीज़ को क्या करना चाहिए और क्या उसके लिए ठीक रहेगा। साथ ही इसमें ये भी पता लगाया जा सकता है कि कब और कैसे डॉक्टर से अपनी बीमारी के निदान के लिए मिलना चाहिए। इसे इस्तेमाल करने का दूसरा तरीका ये है कि व्यक्ति या तो वेब साईट पर या फिर ऐप में जाए। वहाँ पर भी इस बात का पूरा ख्याल रखा गया है कि व्यक्ति को बेहतर सेवाएँ मिलें। इसे इस्तेमाल करने का तीसरा तरीका ये है कि चयन प्रक्रिया में सीधे ही एक फॉर्म भरा जाये जो अंत में मरीज़ का मार्गदर्शन करता है।
डिफरेंशियेटर का निर्माण
हालाँकि आज चिकित्सा के इस डिजिटल क्षेत्र में भी प्रतियोगिता ज्यादा बढ़ चुकी है, तो यहाँ निवेश और व्यय की भी संभावनाएं अधिक हैं। पिछले वर्ष इस क्षेत्र में $277 मिलियन की फंडिंग और 57 डील हुईं थीं, इस साल के शुरुआत में ऑनलाइन फार्मेसी स्टार्टअप में ये आंकड़े बड़े ही अनोखे तरीके से बदले है, जहाँ बाज़ार कई महत्त्वपूर्ण डील्स का साक्षी बना।
फंडिंग और डील्स के अलावा आज ये क्षेत्र बाज़ार के बड़े खिलाडियों से भरा पड़ा है, जिनमें प्रैक्टो, लाएब्राटा,पोर्शिया और डॉक्टर्स सर्कल और 1एमजी प्रमुख हैं, जो लोगों का ध्यान अपनी ओर केंद्रित कर रहे हैं।
ज्ञात हो कि अपने अनोखे प्रयासों के चलते 'हेल्थखोज' उपरोक्त बताए गए सभी प्लेटफॉर्म से अलग है। मरीज़ को वो सब कुछ देता है, जिसकी उसे तलाश है। ये सब कुछ उन तीन प्रक्रियाओं से होता है जहाँ एक 'सिमटम चेकर' की मदद से मरीज़ को सही चिकित्सक तक पहुँचाया जाता है। ऐसे में यदि चिकित्सक मरीज़ को किसी सर्जरी प्रक्रिया से अवगत कराता है, तो ये स्टार्टअप मरीज़ के लिए अस्पताल, सस्ता इलाज, समय, इलाज के दौरान होने वाली परेशानियाँ सभी बातों का ध्यान रखता है।
रत्नेश की माने तो इस ऐप में बेहतरीन कंटेंट और उम्दा टूल हैं, जिससे आप मरीज़ की सटीक बीमारी का अवलोकन कर सकते हैं। साथ ही इस ऐप का बेहतर प्रबंध द्वारा बड़े ख़तरों को काफ़ी हद तक कम किया जा सकता है।
यह टीम सभी बड़े अस्पतालों के साथ जुड़ी है, जिससे अस्पताल और मरीज़ के बीच काफ़ी हद तक पारदर्शिता बनी हुई है। इन्होंने ये भी कहा कि ये हमारी मेहनत का ही परिणाम है, जो हमारी साइट और ऐप पर लोगों की बड़ी संख्या बनी हुई है और आज हमारे पास करीब 40 % रिटर्निंग विजिटर हैं।
आज गूगल प्ले स्टोर पर ये ऐप टॉप 20 में है और आज तक इसके 1000 डाउनलोड हो चुके हैं। टीम अपने राजस्व और कनेक्शनों की संख्या के बारे में कोई जानकारी मुहैया नहीं कराती है। फ़िलहाल ये स्टार्टअप अपने शुरुआती दौर में है मगर इसपर बेहतर निवेश के लिए निवेशकों से बातचीत चल रही है। आपको बताते चलें कि टीम इसमें अन्य भारतीय भाषाओं में इसके विस्तार के बारे में भी सोच रही है और ये काम जल्द से जल्द किया जायगा।
मूल- सिंधु कश्यप
अनुवाद- बिलाल जाफ़री