जंगली घास फूस को फर्नीचर में बदल युवाओं को रोजगार दे रहीं माया महाजन
जंगली घास की यह प्रजाति पर्यावरण और पारिस्थितिकी के लिए एक नया खतरा बनकर उभरी है। लेकिन इस जंगली प्रजाति से खूबसूरत इको फ्रेंडली फर्नीचर तैयार किए जा रहे हैं, जिससे एक तरह से पर्यावरण पर खतरा भी कम हो रहा है। यह अनोखा और अभूतपूर्व काम कोयंबटूर की माया महाजन द्वारा किया जा रहा है जो कि एक पीएचडी स्कॉलर हैं।
लैन्टाना से बने हुए फर्नीचर में दीमक लगने की संभावना लकड़ी और बांस से काफी कम होती है। इसके साथ ही यह काफी टिकाऊ भी होता है।
पेड़ों की कटाई ही जंगलों के खत्म होने की एकमात्र वजह नहीं है। जंगल में कई तरह की घास फूस और खरपतवार उग आती है जो जमीन के भीतर से सारे पोषण और पानी को खींच लेती है जिससे बाकी कीमती पेड़ पौधों का जीवन खतरे में आ जाता है। लैन्टाना कैमरा एक ऐसी ही फूस की प्रजाति है जो नीलगिरी जैवमंडल में पाई जाती है। जंगली घास की यह प्रजाति पर्यावरण और पारिस्थितिकी के लिए एक नया खतरा बनकर उभरी है। लेकिन इस जंगली प्रजाति से खूबसूरत इको फ्रेंडली फर्नीचर तैयार किए जा रहे हैं, जिससे एक तरह से पर्यावरण पर खतरा भी कम हो रहा है। यह अनोखा और अभूतपूर्व काम कोयंबटूर की माया महाजन द्वारा किया जा रहा है जो कि एक पीएचडी स्कॉलर हैं।
माया महाजन को 2018 में इंटरनेशनल वूमन अचीवर अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। माया जब नीलगिरी जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र में शोध कर रही थीं तो उन्गें लैन्टाना कैमरा के बारे में मालूम चला। आम बोलचाल की भाषा में इस पौधे को केतकी के नाम से भी जाना जाता है। वैज्ञानिक भाषा में नाम इसे लैंटाना कहा जाता है। कहा जाता है कि अंग्रेज इस पौधे को सजावट के लिए भारत लाए थे जो कि अब उपजाऊ जमीन के लिए मुसीबत बन गई है। कोयंबटूर के सिरुवनी क्षेत्र समेत पूरे पश्चिमी घाट में इसकी वजह से वनस्पतियों की वृद्धि पर बुरा असर पड़ा है।
इसे हटाने के लिए केमिकल का इस्तेमाल भी प्रभावी नहीं है क्योंकि इससे बाकी वनस्पतियों पर भी बुरा असर पड़ेगा। एक रिसर्च में यह बात सामने आ चुकी है कि लैन्टाना के पौधे की पत्तियों से अलीलो कैमिक्स नाम से जहरीला पदार्थ निकलता है। जो उपजाऊ जमीन को बंजर कर रहा है। यह पदार्थ इतना जहरीला होता है कि अपने आसपास उगने वाली घास को भी सड़ाकर नष्ट कर देता है। वहीं इसके पत्ते कांटेदार होते हैं. इस कारण इन्हें जानवर भी नहीं खाते हैं।
माया बताती हैं कि इसे हटाने के लिए हाथी का इस्तेमाल सबसे मुफीद होता है, लेकिन उसमें समय और धन दोनों का अधिक इस्तेमाल करना होगा। माया को इको फ्रैंडली फर्नीचर की बढ़ती डिमांड के बारे में जानकारी थी। उन्होंने इस जंगली वनस्पति के बारे में रिसर्च किया और फर्नीचर बनाने के नतीजे पर पहुंचीं। वह बताती हैं कि लैन्टाना से बने हुए फर्नीचर में दीमक लगने की संभावना लकड़ी और बांस से काफी कम होती है। इसके साथ ही यह काफी टिकाऊ भी होता है।
मुफ्त में कच्चा माल मिल जाने के कारण लैन्टाना से बना फर्नीचर काफी सस्ता भी होता है। साथ ही स्थानीय लोगों को फर्नीचर बनाने के काम से रोजगार भी मिलता है। हालांकि जंगलों में महिलाओं पर हाथियों द्वारा हमले आम होते हैं, लेकिन इलाके में 95 फीसदी आदिवासी महिलाओं को यह जंगली प्रजाति रोजगार उपलब्ध करवा रही है। वन विभाग भी इस जंगली प्रजाति को लेकर काफी चिंतित था, लेकिन अब उसकी चिंता भी कम हो रही है। द बेटर इंडिया से बात करते हुए माया ने कहा, 'हमने बेंगलुरु के एक संगठन ATREE के साथ मिलरक आदिवासी महिलाओं को फर्नीचर बनाने की ट्रेनिंग दी।'
माया बताती हैं, 'हमने तीन गांवों के लगभग 40 लोगों को तीन महीने में ट्रेनिंग दी। यह 2015 की बात है। इस प्रॉजेक्ट को विज्ञान एवं प्रोद्योगिकी विभाग से भी सहायता मिली।' इसके तहत आदिवासी लोगों को लैन्टाना की लकड़ी काटने औऱ कम लागत में फर्नीचर, हैंडीक्राफ्ट, खिलौने और अन्य उपयोगी वस्तुएं बनाने की ट्रेनिंग दी गई। माया आगे कहती हैं, 'मैंने अपने शोध के दौरान शांत घाटी, वायनाड,, सिरुवनी और मुदुमलाई में रहने वाले आदिवासियों से काफी करीब से बात की। जब मैंने उनसे इस लकड़ी से फर्नीचर बनाने की तरकीब साझा की तो उन्होंने इसकी सफलता पर संदेह जताया।'
भारत में जनजातीय सहकारी विपणन विकास संघ (TRIFED) ने इन आदिवासी समुदाय के लोगों को कोयंबटूर और बाकी बड़े शहरों में बाजार स्थापित करने में मदद की। अब माया इन उत्पादों को ई-कॉमर्स वेबसाइट्स के माध्यम से बड़े पैमाने पर लॉन्च करने की योजना बना रही हैं। इस प्रॉजेक्ट को पर्यावरण मंत्रालय द्वारा सहायता प्रदान की जा रही है। इसके साथ ही कई सोशल मीडिया कैंपेन और एक दूसरे द्वारा की जाने वाली तारीफ से लैन्टाना से बने इन फर्नीचर को काफी बढ़ावा मिला है।
आगे की राह
लैन्टाना से बनने वाले फर्नीचर का काम सिंगाम्पति, कालकोटिपति और सरकारपोरति गांवों में चल रहा है। नए लोगों को भी इसकी ट्रेनिंग दी जा रही है। इससे ग्रामीण युवाओं को रोजगार के लिए बाहर नहीं जाना पड़ रहा है और महिलाओं को भी आर्थिक मदद मिल रही है, जिससे वे सशक्त बन रही हैं।
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