कभी होटल में धोए थे जूठे बर्तन, आज हैं करोड़पति
विक्की के करोड़पति बनने की दास्तान जितनी दिलचस्प, उतनी ही अजूबे भरी है। गरीबी में घर से भागे। दिल्ली में गरीब बच्चों के साथ कचरा बीनकर, होटलों में जूठे बर्तन धोकर भूख मिटाई। हार नहीं मानी। एक दिन वक्त ने साथ दिया, आज वह करोड़पति बन चुके हैं।
जिन दिनों वह होटल में मेहनत-मशक्कत कर रहे थे, वहां ठहरे एक व्यक्ति ने 'सलाम बालक' ट्रस्ट द्वारा संचालित स्कूल की छठवीं कक्षा में उनका एडमीशन करवा दिया। वहां से उनकी जिंदगी ने एक नया मोड़ लिया।
गरीब बच्चों को लेकर अक्सर अजीब तरह की अनहोनियां सामने आती रहती हैं। उनमें कई एक दिलचस्प तो ज्यादातर दुखद होती हैं। पश्चिम बंगाल के विक्की की कामयाबी तो अब दिलचस्प मोड़ पर है लेकिन उसे जानने से पहले आइए, बच्चों की एक-दो अन्य तरह की दास्तानों से रूबरू हो लेते हैं। हाल ही में सुपरस्टार शाहरुख खान के बेटे आर्यन अपने दोस्तों के साथ मुंबई के बांद्रा स्थित एक होटल पहुंचे, जहां पहले से कई स्टार किड्स मौजूद थे। उसी में श्रीदेवी की छोटी बेटी खुशी भी। जैसे ही ये वेन्यू से बाहर निकले, एक गरीब बच्ची उनसे पैसे मांगने लगी। खुशी तो मुस्करा कर निकल गईं, आर्यन अपनी जेब टटोलने लगे।
इन दिनों पंजाबी सिंगर अमृत मान का लेटेस्ट सॉन्ग 'परियां तो सोहणी' यूट्यूब पर धमाल मचाए हुए है। इसमें एक गरीब बच्चा एक रईस लड़की के इशारे पर नाच रहा है। इस डांस पर जब बच्चे को इनाम मिला, खुशी से वह मुस्करा उठता है। इस बीच देश की सियासत, स्वास्थ्य, शिक्षा की बात करें तो कहा जाता है कि ओबीसी आरक्षण के लिए क्रीमी लेयर की सीमा बढ़ाने पर कहीं गरीबों बच्चे आरक्षण लाभ से वंचित रह जाएं। ऐसे सवाल भी चर्चाओं में आ जाते हैं कि जब नेताओं और अफसरों के बच्चे छोटी-छोटी बीमारियों के लिए एम्स पहुंच सकते हैं तो गरीब बच्चे क्यों नहीं! ऐसे में बेंगलुरु की ईलू अफशां एक मिसाल की तरह सामने आती है। वह अपने शहर के लगभग एक दर्जन घरों में झाड़ू-पोंछा करती हुई पढ़ाई-लिखाई में अपने स्कूल में फर्स्ट आती है। इससे मिलती-जुलती है कचरा बीनते-बीनते करोड़पति बन जाने वाले गांव पुरुलिया (प.बंगाल) के विक्की की सफलता की दास्तान। अपने हुनर और मेहनत से आज वह करोड़ों का मालिक हैं।
पुरुलिया गांव में जिन दिनो विक्की का जन्म हुआ था, उनका परिवार भीषण गरीबी के दौर से गुजर रहा था। जब वह थोड़े बड़े हुए तो गरीबी में उनके साथ इतनी ज्यादतियां हुईं कि बर्दाश्त बाहर हो गया और एक दिन वह अपने मामा की जेब से कुछ पैसे चुराकर घर से भाग खड़े हुए। सीधे और कहीं नहीं, देश की राजधानी दिल्ली पहुंच गए। वहां उनकी पहली मुलाक़ात कचरा बीनते बच्चों से हुई। पेट की भूख मिटाने के लिए वह भी उनके साथ कचरा बीनने लगे। इसके बाद खाली बोतलों में पानी भर कर रेलवे स्टेशन पर बेचने लगे। इतने से भी रोजाना का खर्च नहीं चला तो दिल्ली के ही एक होटल में जूठे बर्तन धोने लगे। अन्य दिनो में तो उन्हें ज्यादा दिक्कत नहीं रहती थी, सर्दी के मौसम में सुबह-सवेरे उठकर होटल में साफ-सफाई और बर्तन धोने का काम उनको झकझोर देता। इतनी मुश्किलों के बावजूद वह कभी हिम्मत हारे नहीं, रोजी-रोजगार के रूप में जो भी काम मिला, करते गए।
जिन दिनों वह होटल में मेहनत-मशक्कत कर रहे थे, वहां ठहरे एक व्यक्ति ने 'सलाम बालक' ट्रस्ट द्वारा संचालित स्कूल की छठवीं कक्षा में उनका एडमीशन करवा दिया। वहां से उनकी जिंदगी ने एक नया मोड़ लिया। स्कूली शिक्षा जारी रही लेकिन खूब मन लगाकर पढ़ाई के बावजूद जब दसवीं के एग्जाम में उनको अच्छे अंक नहीं मिले तो मन खिन्न हो गया। वह वर्ष 2004 का साल था। उनके स्कूल में 'सलाम बालक' ट्रस्ट ने फोटोग्राफी का एक बड़ा वर्कशॉप आयोजित किया। उस वर्कशॉप में ब्रिटिश फोटोग्राफर पिक्सी बेंजामिन भी आए हुए थे। अंग्रेजी का अच्छा ज्ञान न होने के कारण विक्की को उस वर्कशॉप में शामिल होने का अवसर नहीं मिला। उनकी ललक धरी की धरी रह गई। बस एक ही बात दिमाग पर सवार रहने लगी कि आखिर वह कैसे कुछ बनकर दिखाएं। यह सपना ही एक दिन उनकी जिंदगी में तेज रोशनी लेकर आया।
जब उनके स्कूल में फोटोग्राफी का वर्कशॉप चल रहा था, एक दिन वह प्रसिद्ध फोटोग्राफर एनी मान से मिले। परिचय देने, गुजारिश के बाद मान ने उनमें प्रतिभा और ललक देखते हुए उन्हे अपने साथ जोड़ लिया। मान उनको काम करने के साथ-साथ तीन हजार रुपए भी देने लगे। फिर क्या था, 'सलाम बालक' ट्रस्ट की ओर से उन्हें एक कैमरा भी दिलवा दिया गया। उसके कुछ साल बाद वर्ष 2007 में पहली बार उसी दिल्ली के इंडिया हैबिएट सेंटर में विक्की की फोटोग्राफी की प्रदर्शनी लगी, जहां उन्हें कभी कचरा बीनकर, होटलों में जूठे बर्तन माजकर अपना पेट पालना पड़ा था। इंडिया हैबिएट सेंटर में उनकी फोटोग्राफी की प्रदर्शनी जिंदगी का टर्निंग प्वॉइंट साबित हुई। उनकी किस्मत चमक गई।
इसके बाद विक्की अब भविष्य की बड़ी योजना पर काम करने के प्रोजेक्ट में जुट गए। उन्होंने अपने एक दोस्त के साथ मिलकर चार साल बाद सन् 2011 में स्टॉक फोटोग्राफी लाइब्रेरी बनाई। इसके पीछे उद्देश्य था, उन लोगो को किताबें उपलब्ध कराना, जो गरीबी के कारण पुस्तकों से वंचित रह जाते हैं। अपने फटेहाली के दिनों को याद करते हुए उनके मन में यह आइडिया आया था। विक्की की कामयाब जिंदगी की कहानी यहीं पर खत्म नहीं हुई। दो साल बाद 'मिशन कवर शॉट' के लिए आठ फोटोग्राफरों के साथ वह भी सेलेक्ट हो गए। इसके बाद उन्होंने पहली बार देश से बाहर कदम रखा। वह श्रीलंका गए। इसी दौरान उनका रुझान लिखने-पढ़ने में भी बना रहा। उन्होंने पहली किताब लिखी 'होम स्ट्रीट होम'। इसे नजर फाउंडेशन ने प्रकाशित किया। विक्की आज अपनी मेहनत से करोड़पति बन चुके हैं।
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