राजस्थान के एक छोटे से गांव की अनपढ़ महिलाएं पूरी दुनिया में फैला रही हैं रोशनी, सीखाती हैं सोलर प्लेट्स बनाने के गुर
तिलोनिया गांव में अनपढ़ और दादी-नानी की उम्र की महिलाएं भी बन रही है सोलर इंजीनियर...
अफ्रीकी देशों और एशिया के कई देशों से बड़ी संख्या में महिलाएं आकर गांव में सीख रही हैं सोलर सिस्टम का काम...
कहते हैं अगर सही दिशा में ईमानदारी के साथ काम किया जा रहा है तो उसका अंजाम तो बेहतर निकलता ही है। इसमें सफल न होने का प्रतिशत बहुत कम है। ऐसे में अगर सारा समाज आपके साथ हो तो फिर कहना ही क्या। सफलता की पूरी गारंटी है। बल्कि कहना चाहिए सिर्फ सफल ही नहीं सार्थक भी होता है ऐसा काम।
आपको जानकर हैरानी होगी कि राजस्थान का एक छोटा सा गांव पूरी दुनिया में रौशनी फैला रहा है। वो भी ऐसी औरतों की वजह से जिन्होंने ठीक से स्कूल का मुंह नहीं देखा। इस गांव की अनपढ़ औरतों ने सौर उर्जा में इंजीनियरिंग कर दुनियाभर से आई गांव के औरतों को सौर उर्जा से गांव को रौशन करने की तकनीक सीखा रही है। दादी-नानी की उम्र की महिलाओं को सौर उर्जा की प्लेट बनाते और सर्किट लगाते देख आप हैरान रह जाएंगे। इस उर्जा क्रांति ने जहां गांव की औरतों को दुनिया भर में पहचान दी है वहीं गांव में भी शहर की तरह सौर उर्जा के स्ट्रीट लाईटें जगमगाती नजर आती है।
जयपुर से करीब 100 कि.मी. किशनगढ़ का तिलोनिया गांव, महज दो हजार लोगों की आबादी वाला ये गांव बाहर से तो किसी भी सामान्य गांव की तरह ही दिखता है, लेकिन दुनिया के नक्शे पर यह गांव रोशनी बिखेरने के लिए जाना जाता है। दरअसल यहां बुनकर रॉय द्वारा स्थापित एक सामाजिक संस्था बेयरफुट कॉलेज करीब 40 सालों से कार्यरत है। इसी बेयरफुट कॉलेज ने 2009 में सौर उर्जा का प्रोजेक्ट शुरु किया गया था, जिसने गांव के औरतों की पूरी जिंदगी ही बदल दी। इस प्रोग्राम में पहले तो इन महिलाओं प्राथमिक शिक्षा दी गई और फिर इन्हें सौर उर्जा की सर्किट बनाने की जिम्मेदारी दी गई। जब गांव की ये महिलाएं इस काम में पारंगत हो गईं तो फिर इनके बनाए सोलर लैंप गांवों में बिकने लगे। तब से इस गांव की महिलाओं ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। देखते ही देखते इस प्रोजेक्ट की सफलता ने तिलोनिया की महिलाओं में ऐसा उत्साह भरा कि वो देश भर से आई महिलाओं को यहां सौर उर्जा की तकनीक सीखाने लगी। अब तो इस गांव में अकसर आपको विदेशी महिलाएं दिख जाएंगी। बताया जाता है कि गांव में हमेशा तीस से चालीस अफ्रीकी, उत्तरी अमेरिका और एशिया के दूसरे देशों की महिलाएं सौर उर्जा तकनीक सीखती हैं।
सोलर प्रोजक्ट पर काम करने वाली मोहनी कंवर (जो अब यहां टीचर हैं) ने योरस्टोरी को बताया,
बेयरफुट की वजह से इस गांव में ये सारी सुविधाएं हैं। अब इस गांव में बिजली से नहीं हर चीज़ सोलर से चलती है।
सबसे बड़ी बात है कि चाहे तिलोनिया की महिलाएं हों या फिर विदेश की महिलाएं, इनमें से कोई भी दसवीं पास नहीं है। लेकिन इनकी इंजनियरिंग देख कर हक कोई दांतो तले उंगली दबा ले। सीखने-सीखाने के लिए सबसे जरुरी होती है भाषा। लेकिन यहां भाषा आड़े नही आती। रंगों और इशारों से ये आपस में बात कर तकनीकि ज्ञान हासिल कर रहे हैं। यहां टीचर के तौर पर काम करने वाली मोहनी कंवर बताती हैं कि किस तरह से हम इन्हें गांव में बड़े ही अपने पन से काम सिखाते हैं। यहां काम करने वाली दूसरी टीचर विभा बताती हैं,
जब मैं यहां आई थी तो वो कुछ नहीं जानती थीं, यहां तक मैं हिन्दी भी नहीं बोल पाती थी। आज मैं यहां टीचर के तौर पर काम करती हूं और दूसरी महिलाओं को सोलर उर्जा के सर्किट बनाना सीखा रही हूं।
इस सेंटर की संचालिका रतन देवी पहले घरेलू महिला थीं। पहले कभी घर से बाहर कदम नहीं रखा था। लेकिन आज वो दुनिया भर के महिलाओं को ट्रेनिंग दिलवा रही है। रतन देवी ने योरस्टोरी को बताया,
सूरज की ये रोशनी महिलाओं के इंपावरमेंट में बहुत बड़ा योगदान दे रहा है। महिलाएं ना केवल तकनीक सिख रही हैं बल्कि पैसा भी कमा रही हैं।
बाहर से आईं महिलाएं सोलर तकनीक के बारे जानकारी पाकर काफी खुश हैं। अफ्रीकी देश से आई रोजलीन कहती हैं, "हमारे यहां बिजली नहीं है और यहां से सोलर सिस्टम की तकनीक सीख कर जाउंगी तो सबको सोलर सिस्टम से लाईट जलाना सिखाउंगी।" इसी तरह वोर्निका भी कहती हैं, "हमारे देशों में महिलाएं इस करह की काम नही करती हैं लेकिन हम सीख कर जाएंगे तो वहां सिखाएंगे।"
केवल विदेशी हीं नही यहां बिहार, झारखंड और आंध्र प्रदेश से आई महिलाएं भी सोलर सिस्टम बनाने की ट्रेनिंग ले रही हैं। अपने पति बच्चों और परिवार को छोड़कर ये महिलाएं 6 महीने के लिए तिलोनिया गांव में आकर रहती हैं। तिलोनिया की गांवों की महिलाएं ट्रेनिंग देने के लिए ऑडियो-विजुअल माध्यम का इस्तेमाल करती
बिहार के बेतिया जिले के उजेमनी गांव से आई प्रभावती देवी यहां ट्रेनिंग लेने आई हैं। उनके गांव में बिजली नहीं है इसलिए पंचायत समिति ने इनको यहां भेजा है। चौथी क्लास तक पढ़ी-लिखी प्रभावती के लिए सोलर के बारे में सीखना आसान नही था। पहले पति और घर वालों को समझाया कि सोलर सीख कर आउंगी तो पूरे गांव में रोशनी लगाउंगी और इससे आमदनी भी बढ़ेगी।
तिलोनिया गांव का बेयरफूट कालेज अबतक करीब 100 से ज्यादा ऐसे गांवों में सोलर लाईट की रोशनी पहुंचा चुका है जहां पर बिजली जाना आसाना नहीं था। तिलोनिया में लोग अपने घरों में अब किरोसिन का दिया नहीं जलाते हैं, हालांकि गांव में बिजली है लेकिन गांव में सोलर व्यवस्था से ही ज्यादातर काम होते हैं। आलम यह है कि गांव में ही रहकर सोलर ऊर्जा से सम्बद्ध महिलाएं करीब आठ हजार रुपए तक कमाई कर लेती हैं। इससे घर की हालत भी सुधर रही है और महिलाओं में आत्मविश्वास आ रहा है।