25 साल पुराना चॉकलेट रैपर, 4 करोड़ की फंडिंग और तीन युवा
100% ईको-फ़्रेंडली और ज़ीरो-प्लास्टिक स्टार्ट अप Beco सस्टेनेबल लिविंग को आम लोगों के बजट में लाने की कोशिश कर रहा है.
एक बार इस्तेमाल होने वाला प्लास्टिक हमारे पर्यावरण के लिए सबसे बड़े ख़तरों में से एक है. ऐसे प्लास्टिक को डी-कम्पोज होने में 500 से अधिक साल लग जाते हैं. इतने लम्बे समय तक यह हमारे आस-पास गली-मोहल्लों में, नदियों-तालाबों में, समुद्र में पड़ा रहता है. इसके खतरे अनेक हैं जिसमे एक खतरा हमारे स्वास्थ्य का भी है. खतरा इतना बड़ा है जनता की प्लास्टिक पर बेहद निर्भरता के बावजूद भारत जैसे बड़े देश ने इस पर कंप्लीट बैन लगा दिया है.
भारत में इस दिशा में जो ग़ैर-सरकारी प्रयास हो रहे हैं उसमें भारत के नए स्टार्ट अप एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं. उद्यमियों की युवा पीढ़ी पर्यावरण को लेकर बहुत सजग नज़र आती है और उनमें इसे लेकर कुछ ठोस करने की बेचैनी है. यही बेचैनी तीन दोस्तों अक्षय वर्मा, अनुज रूइआ और आदित्य रूइआ को 2018 में एक एक ऐसा नया स्टार्ट अप
खोलने की ओर ले गयी जो पर्यावरण की बेहतरी में सबकी भागीदारी को आसान बना दे. Beco भारत का पहला नैचुरल होम-केयर ब्रांड है. Beco आपके घर के रोज़मर्रा की ज़रूरतों वाले इको-फ्रेंडली प्रोडक्ट्स का एक पूरा रेंज बनाता है.उनका इरादा है कि उनके कस्टमर्स इको-फ्रेंडली जीवन शैली बिना ज़्यादा मुश्किल के अपना सकें. लेकिन ऐसा क्या हुआ कि यह तीन युवा जो अपनी अपनी जिंदगियों में कुछ और ही कर रहे थे, अचानक Save the planet का नारा लगाने लगे?2017-18 की बात है. अक्षय वर्मा आईआईटी मद्रास से मेटलर्जी में इंजीनीयरिंग की पढ़ाई करने के बाद पेट केयर का एक स्टार्टअप शुरू कर चुके थे. उधर आदित्य रूइआ भी BITS पिलानी से मैकेनिकल इंजीनीयरिंग करने के बाद बिजनेस कम्यूनिकेशन का स्टार्टअप शुरू कर चुके थे. आदित्य के भाई अनुज एमबीए की पढ़ाई कर रहे थे. उन दिनों मुंबई में बीच सफ़ाई अभियान चल रहे थे और ऐसे ही एक अभियान के दौरान आदित्य की नज़र एक चॉकलेट रैपर पर पड़ी. और उस रैपर ने उनकी, उनके भाई और दोस्त अक्षय की ज़िंदगी बदल दी. आज Beco को सफलतापूर्वक काम करते हुए चार साल हो गए हैं. आदित्य को फ़ोर्ब्स पत्रिका अपने प्रतिष्ठित 30 under 30 में फ़ीचर कर चुकी है. पिछले साल जुलाई में कंपनी ने Climate Angels Fund और अन्य इंवेस्टर्स से चार करोड़ रुपए की फ़ंडिंग जुटाई और तीनों को-फ़ाउंडर उस निर्णय से खुश हैं जो एक चॉकलेट रैपर देख कर लिया गया था.
योर स्टोरी हिंदी से आदित्य की यह एक्सक्लूजिव बातचीत है Beco के मक़सद, चुनौतियों और हाँ उस रैपर के बारे में भी.
योर स्टोरी हिंदी
पॉल्यूशन और क्लाइमेट चेंज आज के दौर में ट्रिलियन डॉलर इंडस्ट्री है, आपने Beco किस मकसद से शुरू करने की सोची?
आदित्य रूइआ
हमें लगा प्लास्टिक का यूज करके हम अपने आप को पेट्रोलियम के केमिकल्स से एक्सपोज करते रहते हैं. हमें पता है कि प्लास्टिक कम्पोस्टेड पोलिमर, गैस, क्रुड आयल से बनते हैं और इनका लगातार यूज हमें कैंसर जैसी सीरियस बीमारियों से एक्सपोज कर सकती हैं लेकिन इसके बावजूद हम उसका इस्तेमाल करते जाते हैं.
हमने सोचा कि आम लोगों की रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में प्लास्टिक का इस्तेमाल कम करने की दिशा में काम कर सकते हैं. इसीलिए हमने घरेलू इस्तेमाल में आने वाले सेक्टर पर फोकस किया. अगर हम अपने प्लास्टिक से बने टूथ ब्रश या गार्बेज बैग ही बदल दें तो यही अपने आप में एक बड़ा कदम होगा. अगर हम सब अपने वाटर बौटल या अपने बैग बाहर ले जाना शुरू करे दें तो इन छोटे क़दमों से बड़ा इम्पैक्ट क्रिएट कर सकते हैं.
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लेकिन पर्यावरण के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी दिखाने के लिए काफी पैसे खर्च करने पड़ते हैं. बहुत लोग इसलिए भी प्लास्टिक यूज करने को मजबूर होते हैं कि ईको-फ्रेंडली प्रॉडक्ट्स उनकी पहुँच के बाहर होते हैं. अमूल जैसी कंपनियों ने यही तर्क दिया जब सरकार ने 1 जुलाई को सिंगल यूज प्लास्टिक पर बैन घोषित किया. आप इसे कैसे देखते हैं?
आदित्य रूइआ
मुझे लगता है सस्टेनेबल लिविंग अब फैड नहीं रह गया है. साफ़ सुथरे पर्यावरण में रहना हर इंसान का हक है. हमारा मकसद जितनी कोशिश इस दिशा में हो सकती है करने की है. इसीलिए हमने अपने प्रोडक्ट्स को अफोर्डेबल रेंज में रखा है ताकि इसकी पहुँच ज्यादा से ज्यादा लोगों तक हो.
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लेकिन आप इंजीनेयरिंग करने के बाद पेट केयर के अपना स्टार्ट अप शुरू कर चुके थे. इधर कैसे आ गए?
आदित्य रूइआ
हम कुछ सालों से मुंबई के बीच-क्लीनिंग अभियानों में शामिल होते आ रहे हैं. ऐसे ही एक अभियान के दौरान मेरी नज़र बीच पर पड़े एक चॉकलेट रैपर पर पड़ी जिसका रंग ब्राइट था और मुझे उसकी ऐसा लगा मुझे उसकी हल्की-हल्की याद है. मेरे पापा ने बताया की यह चॉकलेट 90 के दशक में खूब चलती थी और अब ये ब्रांड डिसकंटिन्यु हो गया है. पर रैपर अब तक वहां पड़ा था. और उस वक़्त मुझे यह बात समझ आ गयी थी कि प्लास्टिक का वेस्ट डीकम्पोज नहीं होता और हमारे पर्यावरण में पड़ा रहता है. इस अनुभव ने हमें अपने स्टार्ट अप को सस्टेनिबिलिटी की दिशा में देखने के लिए प्रेरित किया. Beco के प्रॉडक्ट्स जैसे टिशू पेपर, टूथ पिक कॉर्न, कॉटन बॉल्स स्टार्च, कोकोनट फाईबर, बैम्बू से बनाए जाते हैं, इसके अलावा इनकी पैकेजिंग के लिए भी री-साय्क्ल्ड पेपर का इस्तेमाल किया जाता है.
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Beco के अलावा आप लोग कुछ और भी कर रहे हैं जिससे पर्यावरण को लेकर लोगों में अवेयरनेस भी बढ़ाई जा सके?
आदित्य रूइआ
हम मुंबई के बीच साफ़ करने के लिए हर दूसरे हफ्ते अभियान चलाते हैं.
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अभी आपका बिज़नेस डायरेक्ट टू कस्टमर D2C है. क्या B2B में भी जाने का कोई प्लान है? भारत के बाहर के मार्केट को एक्स्प्लोर करना चाहते हैं?
आदित्य रूइआ
ताज़ होटल, कुछ को-वर्किंग स्पेसेज और कैफ़े में Beco के प्रॉडक्ट्स जा रहे हैं. भारत के बाहर, यूरोप और स्कैन्डेवियन देशों में कुछ पार्टनरशिप हैं और डिस्ट्रिब्यूशन का काम है पर हम अभी डोमेस्टिक मार्केट पर ही फोकस कर रहे हैं.
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दिया मिर्ज़ा Beco की ब्रांड अम्बैसडर और इन्वेस्टर हैं. उन्हें जोड़ने का कारण क्या रहा?
आदित्य रूइआ
हमारी दुनिया में टेक्नोलॉजी के आने से सब कुछ इवोल्व हो रहा है तो हमने सोचा कस्टमर्स के अनुभव को भी टेक्नोलॉजी के मदद से यूनिक बनाया जा सकता है. आर्टफ़िशिअल इंटेलिजेंस की मदद से Beco से शॉपिंग करने वाले कस्टमर्स को हम दिया मिर्ज़ा के अवतार में वेलकम मेसेज भेजेंगे. हमें लगता है इससे अपने कस्टमर्स के साथ अपना इंगेजमेंट बढ़ा सकते है. हम जानते ही हैं कि ब्रांड एम्बेसडर सिर्फ एक फेस नहीं रह जाता बल्कि ब्रांड की जर्नी का हिस्सा भी बन जाता है.