उत्कल एक्सप्रेस हादसा: मंदिर की ओर से की गई 500 यात्रियों के खाने की व्यवस्था
यात्रियों की मदद करने के लिए पास के एक मंदिर की तरफ से खाने-पीने की व्यवस्था की गई है और साथ ही मंदिर में करीब 75 रेल यात्रियों को ठहराया भी गया है।
हादसा इतना भीषण था कि ट्रेन के बेकाबू डिब्बे घरों और स्कूलों में जा घुसे, जिसके बाद हर तरफ चीख-पुकार मच गई और हादसे के पास खड़े लोगों को भी काफी चोटें आईं।
मंदिर कमेटी की अध्यक्ष ने बताया कि लगभग 500 यात्रियों ने शनिवार रात खाना खाया। स्थानीय लोगों ने यहां ठहरे हुए रेलयात्रियों के खाने की भी व्यवस्था की।
बीते शनिवार को उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले में पुरी से हरिद्वार जा रही ट्रेन कलिंग-उत्कल एक्सप्रेस (18477) के 14 डिब्बे शनिवार को पटरी से उतर गए। इस भीषण हादसे में कम से कम 21 यात्रियों की जान चली गई, जबकि 100 से ज्यादा यात्री घायल हो गए। कई यात्री गंभीर रूप से घायल हो गए। हादसा इतना भीषण था कि ट्रेन के बेकाबू डिब्बे घरों और स्कूलों में जा घुसे। हादसे के बाद जिसके बाद हर तरफ चीख-पुकार मच गई। हादसे के पास खड़े लोगों को भी काफी चोटें आईं। कुछ लोगों ने तो ट्रेन के डिब्बे अपनी ओर आते देखकर अपनी जान तो बचा ली, लेकिन इस दौरान कई और घायल हो गए।
घायलों ने बताया कि उन्होंने बेहद करीब से मौत का मंजर देखा, सिर्फ 10 सेकंड में सबकुछ बदल गया, बोगी हवा में उछल गई और लोग एक-दूसरे के ऊपर गिरने लगे। जिन लोगों की जान बची, वे सरकारी मदद की परवाह किए बिना स्थानीय लोगों की मदद से अस्पताल पहुंचे। कुछ यात्री ऐसे भी थे जो वहीं पर रह गए। उन्हें वहां से ले जाने वाला कोई और नहीं था और वे बेचारे भूखे-प्यासे बेहाल तड़पते रहे। उन यात्रियों की मदद करने के लिए पास के एक मंदिर की तरफ से खाने-पीने की व्यवस्था की गई। मंदिर में करीब 75 रेल यात्रियों को ठहराया भी गया।
मुजफ्फरगर के जिस खतौली गांव में हादसा हुआ वहीं पास एक श्री झारखंड महादेव मंदिर की ओर से दुर्घटना में घायल और पीड़ित लोगों के लिए फ्री में भोजन की व्यवस्था की गई। मंदिर प्रबंधन कमिटी ने ट्रेन हादसे में बिछड़े लोगों के लिए फ्री में मोबाइल की भी व्यवस्था की जहां से लोग अपने-अपने परिवारों से भी संपर्क कर सकते हैं। मंदिर कमेटी की अध्यक्ष ने बताया कि लगभग 500 यात्रियों ने शनिवार रात खाना खाया। स्थानीय लोगों ने यहां ठहरे हुए रेलयात्रियों के खाने की भी व्यवस्था की।
हादसे के बाद खतौली गांव के लोगों ने राहत एवं बचाव कार्य में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। यात्रियों की मदद करने वाले राकेश कुमार ने बताया कि चीख-पुकार में कुछ सुनाई नहीं पड़ रहा था। एक डिब्बे से कुछ लोग आधे बाहर और आधे अंदर थे, उनको स्थानीय निवासी संजीव सिंह, गुरमीत और सलीमुद्दीन ने बाहर निकाला। इन लोगों को हाइवे स्थित एक अस्पताल में भर्ती कराया गया। दुर्घटना की साफ वजह तो अभी सामने निकलकर नहीं आई है, लेकिन बताया जा रहा है कि वहां पटरी की मरम्मत का काम चल रहा था और दूसरी ओर कहा जा रहा है कि इस ट्रेन में पुरानी तकनीक वाले कन्वेंशनल कोच लगे होने को भी यात्रियों की मौत का कारण माना जा जा रहा है।
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