अपनी कमज़ोरी को ही कामयाबी का मंत्र बनाकर दूसरों का जीवन बदलने वाली निशिता मंत्री
कभी अपने मोटापे के कारण हास्य का पात्र बनने वाली निशिता मंत्री ने मंदी के समय अपना उद्यम शुरू किया था... आज कई लोगों के जीवन में परिवर्तन लाने का कारण बनीं
'माई लाइफ ट्रांस्क्रिप्ट' की सीईओ निशिता मंत्री कहती हैं, "जीवनपर्यन्त, मैंने आगे बढ़ना सीखा है, अपने सुविधा क्षेत्र से बाहर निकल कर आगे बढ़ पायी हूँ।"
निशिता ने अपने जीवन के नकारात्मक पक्ष को सकारात्मक दिशा में बदल दिया। एक बिखरे हुए घर की सदस्य, मोटे होने के कारण सबकी हंसी की पात्र, निशिता एक लापरवाह बच्चे के रूप में बड़ी हुईं। इसका श्रेय जाता हैं उनकी माँ को, जिनको कि वो "मिस्टर माँ- दोहरी जिम्मेदारीवाला एकल अभिभावक कहती हैं।
निशिता की माँ ने उनमें विश्वास भरा और जब भी जीवन में समस्याएं आई तो हमेशा उनके साथ खड़ी हुयीं। और उन्हें समस्याओं से निबटना सिखाया। उन्होंने हर मुश्किलों का सामना डट कर किया, क्योंकि उनके व्यक्तित्व का निर्माण एक मजबूत नींव पर हुआ था। उन्होंने चुप रहना सीखा है, क्योंकि उनका मानना है कि आप का काम बोलता है। वो मानती हैं कि अपने अतिरिक्त आपको किसी अन्य के समक्ष स्वयं को सिद्ध करने कि कोई आवश्यकता नहीं है। वो कहती हैं, "मैं सदैव स्वयं को बेहतर बनने की चुनौती देती हूँ"
हांलाकि निशिता को जिंदगी में सब कुछ हासिल हुआ है, लेकिन बढ़ती हुयी उम्र के साथ पिता का ना होना उन्हें सालता है, या फिर उनके जीवन में किसी मित्र की कमी भी उन्हें खलती है। किसी और के लिए वो द्वितीय विकल्प हैं यह भाव भी उन्हें पीड़ा देता है। उन्होंने अपनी भावनाओं को सकारात्मकता की तरफ मोड़ दिया है, और इस काम में पुस्तकें उनकी मददगार है। साथ ही इसके लिए उन्होंने कई कार्यशालाओं में भी हिस्सा लिया है। और इन सब से उन्हें आगे बढ़ते रहने में मदद मिली है।
निशिता ने खुशियों के लिए लोगों के संघर्ष को को देखा है। स्वयं को जानने की उनकी असमर्थता को देख कर उन्होंने लोगों की जिंदगियों में बदलाव लाने का निर्णय किया। उनकी यह अभिलाषा उनके उद्यम "माई लाइफ ट्रांस्क्रिप्ट" के रूप में उभर कर सामने आयी। यह मूल्यों की शिक्षा देने वाला एक संस्थान है, जिसका उद्देश्य सभी बच्चों को तीन साल की उम्र से जब तक वो निर्णय लेने की अवस्था तक नहीं पहुँच जाएँ तब तक मूल्यों की शिक्षा देना है।
वो बताती है,"यदि हमारे अंदर बचपन से ही अच्छे मूल्य भरे जाएँ तो जैसे जैसे हम बड़े होंगें बहुत सी बातें और स्पष्ट होती जाएंगी।"
यह उनका पहला उद्यम नहीं है। पढाई में सुसंगत प्रदर्शन करने वाली निशिता, मुंबई विश्वविदयालय से मॉस मीडिया एंड कम्युनिकेशन में स्नातक की पढाई करने के बाद एडवर्टाइजिंग एवं मार्केटिंग में एमए करने के लिए लीड्स विश्वविद्यालय चली गयीं। मंदी के दौर में भारत लौटने के बाद उनकी मारवाड़ी जड़ों ने उन्हें उद्यमशीलता की दिशा में प्रेरित किया।
बिना किसी अनुभव के कोई व्यापार शुरू करना अच्छा विचार नहीं था और उनके ज्यादातर मित्रोें को उनके इस विचार को लेकर पूर्वाग्रह था। वो बताती हैं, "लेकिन मुझे व्यापार के लिए किसी विशेष प्रारूप की आवश्यकता नहीं थी। और मैं इसे अपने तरीके से गढ़ना चाहती थी।"
साल 2009 में, उन्होंने "बम्बू शूट प्रतियोगिता" का प्रारम्भ किया और साथ ही उन्होंने मुंबई के कुछ कॉलेजों और प्रबंधन संस्थानों में पढ़ाना भी शुरू किया जो कि आज भी जारी है। उन्होंने एक पुस्तक "ब्रांड मैनजमेंट" भी लिखी है जो कि मॉस मीडिया और कम्मुनिकेशन के स्नातक स्तर की कक्षाओं के तीसरे साल के पाठ्यक्रम में शामिल है।
“मै आज जब अपने पिछले 6 सालों की यात्रा को पीछे मुड़कर देखती हूँ तो मैं देखती हूँ कि मेरे पास इसके लिए विचारों या नियमों का कोई निश्चित खाका नहीं था। बस मैंने अपना दिल और दिमाग हमेशा खुला रखा और मेरे रास्ते में जो कुछ भी आया उस से सदैव सीखने और कमाने के लिए तत्पर रही। मुझे यह लग रहा था कि यह मेरे सपनों को साकार करने, स्वयं अपने लिए काम करने और अपना स्वयं का व्यवसाय प्रारंभ करने के लिए यह उपयुक्त समय है।"
उनके अभिभावक उनकी शक्ति के सबसे बड़े स्रोत रहें हैं और वो सदा कहा करते थे कि कुछ भी हो हम तुम्हें प्यार करते हैं और तुम्हारे साथ खड़े हैं। निशिता कहती है, "और जब आप इस तरह के शब्द उन लोगों से बार बार सुनते हैं, जिनका की आपके जीवन में खास महत्व है तो आपको ताकत मिलती है। कोशिश करने की ताकत, नाकाम होने की ताकत और कुछ कर गुज़रने के जज़्बे की ताकत।"
उनकी अगली कार्यशाला भावनात्मक स्वच्छता और उसे बनाए रखने पर आधारित है। भावनात्मक स्वच्छता बनाना और उसे बनाए रखने का निशिता का अभ्यास चुनौतियों से निबटने के लिए प्राथमिक तरीका रहा है। इसके अतिरिक्त उन्होंने उनके काम पर दूसरों के द्वारा प्रतिक्रिया के बजाय अपने दिल की बात सुनना सुनिश्चित किया है। वह घोर आशावादी हैं और सदैव नकारात्मक लोगों और नकरात्मक ऊर्जा से दूर रहती है। आत्मसम्मान और आत्ममूल्य का उच्च स्तर, उनके जीवन में सबसे महत्वपूर्ण रहे है। वो व्याख्या करती है -
"मेरा मतलब है कि वैसे तो आत्मसम्मान और आत्ममूल्य एक जैसे ही प्रतीत होते हैं लेकिन अंतर यह है कि आत्मसम्मान दुनिया के सामने आपका सम्मान है जबकि आत्म मूल्य सबसे पहले आपकी पहचान खुद आप से कराता है।"
निशिता प्रायः आत्म-मूल्य के पाश में जाकर अपने ग्राहकों को कमतर समझ बैठती थीं। हालाँकि उनकी टीम के लोगों को यह अच्छा नहीं लगता था। वो बताती है, " वास्तव में एक दिन एक मित्र के साथ कॉफी पीते हुए आकस्मिक चर्चा के दौरान मुझे आत्म-बोध हुआ और यह एक नयी दिशा मिल जाने जैसा था, आपके लक्ष्य की ओर एक नई रौशनी जैसा।"
निशिता अपने आप को एक तरक्की कर रही औरत के रूप में देखतीं है, की महिलाओं और विशेष रूप से उद्यमी महिलाओं को कुछ महत्वपूर्ण सलाह है:
खुल कर कहें अपनी बात - पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में अधिक ऊर्जा होती है। वो अपना दिन सुबह ६ बजे से शुरू कर के आधी रात तक काम करती रह सकती है। वो बस सार्थक संवाद में पीछे रह जाती हैं। वो हमेशा शिकायत करेंगीं लेकिन अपने वास्तविक मुद्दों और चिंताओं को व्यक्त या साझा नहीं करेंगीं।
अपनी प्राथमिकताएँ तय करें- एक महिला उद्यमी के सामने हमेशा घर के काम, बच्चे, पति, सास-ससुर, माता-पिता और सामाजिक दायित्व के बीच में सामंजस्य बिठाने की चुनौती रहती है।। वो रिश्तों को बहुत अधिक प्राथमिकता देती हैं। मै सलाह दूँगी की आप अपनी स्थितियों के अनुसार प्राथमिकताएं तय करें।
अपनी पसंद निर्धारित करें- इन प्रचलित धारणाओं को तोड़ें कि महिलाओं को समझौता और त्याग करना ही चाहिए। अधिकतर महिलाएं समझौते और बलिदान के इस खतरनाक चक्र में फंस जाती है, क्योंकि वो अपनी पसंद का इजहार नहीं करती हैं। वह कहती हैं, “अपने दिल की सुने, अपनी पसंद तय करें, अपना सर्वोत्तम करने की कोशिश करें और छलांग लगाएँ..कामयाबी आपके कदम चूमेगी।"