जानिए कैसे बनता है साबूदाना, खेत में उगता है या फैक्ट्री से निकलता है? यूं करें इसका बिजनेस
अक्सर लोग सोचते हैं कि आखिर साबूदाना कैसे बनता है. क्या ये कोई फल है, या किसी फल का बीज है या फिर किसी प्रोडक्ट को बनाने के दौरान बनता है? साबूदाने की खेती होती है या फैक्ट्री में बनता है? आइए जानते हैं.
शायद ही कोई शख्स होगा, जिसे ये नहीं पता होगा कि साबूदाना (Sabudana) क्या होता है. कभी ना कभी सभी ने साबूदाने की खीर, खिचड़ी या कोई दूसरी डिश खाई होगी. हालांकि, साबूदाने को देखते ही बहुत सारे लोगों के मन में ये सवाल आता होगा कि आखिर साबूदाना बनता कैसे (How sabudana is made) है? क्या ये कोई फल है, या किसी फल का बीज है या फिर किसी प्रोडक्ट को बनाने के दौरान बनता है? साबूदाने की खेती (Sabudana Farming) होती है या फैक्ट्री में बनता (Sabudana Making) है? आइए पहले जानते हैं कहां से आता है साबूदाना. साथ ही समझते हैं कि साबूदाना का बिजनेस (Sabudana Business Ideas) कैसे शुरू कर सकते हैं.
कहां से आता है साबूदाना?
साबूदाना कसावा (Tapioca Farming) नाम के कंद से बनाया जाता है. यह कंद देखने में शकरकंद (Sweet Potato) जैसा होता है. कसावा कंद को पहले अच्छे से धुला जाता है और फिर उसे छीलकर पीसा जाता है. इसके बाद इसे कई प्रक्रियाओं से गुजारा जाता है, जिससे कंद का फाइबर अलग हो जाता है और लिक्विड फॉर्म में सिर्फ इसका स्टार्च बचता है. इसके बाद इस स्टार्च को बड़े-बड़े टैंक में भरकर उसे फर्मेंट किया जाता है. फर्मेंटेशन की प्रक्रिया के तहत पानी और स्टार्च अलग-अलग हो जाते हैं. इसके बाद स्टार्च का पाउडर बनाकर उससे छोटी-छोटी गोलियां बनाई जाती हैं. इन गोलियों को थोड़ी देर गरम बर्तन में रखकर हिलाया जाता है और उसके बाद गोलियों को सूखने के लिए रख देते हैं. आखिरी स्टेप होता है ग्लूकोज और स्टार्च के मिश्रण से इसकी पॉलिश करने का. बस आपका साबूदाना किचन में जाने के लिए तैयार है. यहां से छोटे-बड़े पैकेट में भरकर साबूदाने की डिलीवरी देश भर में की जाती है.
कैसे होती है कसावा की खेती?
कसावा कंद की खेती के लिए आपको सबसे पहले जरूरत होगी कसावा की कलम की. कसावा की खेती के लिए इसी पौधे के तने का इस्तेमाल होता है. इस तने को छोटा-छोटा काटकर उसे मिट्टी में लगा दिया जाता है. कसावा एक तरह से जंगली पौधा है. ऐसे में यह बहुत ही विषम परिस्थितियों में भी आसानी से उग जाता है. इसे पूरी तरह से परिपक्व होने में करीब 12 महीनों का वक्त लगता है.
कसावा कंद को सागो पाम भी कहा जाता है. यह पहले अमेरिका में पाया जाता था और वहां से यह अफ्रीका पहुंचा. वहां से 19वीं सदी के बाद यह भारत आया और अब दक्षिण भारत में इसकी खेती की जाती है. इसकी खेती उन जगहों पर की जा सकती है, जहां अधिक गर्मी पड़ती है. दक्षिण भारत के राज्य जैसे केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश इसकी खेती के लिए बहुत ही अच्छे हैं. इसकी खेती में सारा खेल कंद का होता है तो खेती से पहले मिट्टी को अच्छे से जोत कर भुरभुरा कर लें, ताकि कंद मोटे-मोटे बैठें.
कैसे करें साबूदाने का बिजनेस?
अगर आप साबूदाने का बिजनेस करने की सोच रहे हैं तो आपको दो चीजें सुनिश्चित करनी होंगी. पहला ये कि आप कसावा कंद कहां से लाएंगे? अगर आप गर्म इलाके में नहीं रहते हैं तो आपको इसे दूसरे इलाकों से खरीदना होगा. वहीं इसके लिए आपको पूरा सेटअप लगाना होगा. इसमें आपको धुलाई करने वाली मशीन, कंद छीलने वाली मशीन, कटिंग की मशीन, जूस निकालने की मशीन, पिसाई की मशीन, छोटी गोलियां बनाने वाली मशीन और उसके बाद पैकेजिंग जैसी मशीनों की जरूरत होगी.
अगर आप छोटे लेवल पर साबूदाने का बिजनेस करना चाहते हैं तो आपको ये सारे काम मैनुअल तरीके से करने होंगे. हालांकि, फिर भी आपको कुछ मैनुअल मशीनों की जरूरत होगी और साथ ही लेबर की भी जरूरत पड़ेगी. सबसे बड़ा चैलेंज इस बिजनेस में यही है कि कसाव की खेती पूरे देश में नहीं होती है. ऐसे में अगर आपके आस-पास इसकी खेती नहीं होती है तो इसका बिजनेस ना करें, वरना आपकी लागत अधिक आएगी और इस वजह से आपका प्रोडक्ट दूसरों से महंगा हो जाएगा.
कितना फायदेमंद है साबूदाना?
अगर सेहत के हिसाब से देखें को साबूदाने को बहुत ही फायदे वाला कहा जाता है. इसमें कैल्शियम, आयरन और विटामिन भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं. कार्बोहाइड्रेड भी इसमें पाया जाता है. इन्हीं सब की वजह से व्रत में इसे खाया जाता है, ताकि पोषण भी मिले और शरीर को ताकत भी मिले. साबूदाना ग्लूटन फ्री होता है. ध्यान रखे कि इसे अच्छे से पका कर ही खाएं, वरना पेट में दर्द हो सकता है. हालांकि, ऐसे भी बहुत सारे लोग होते हैं तो साबूदाने के व्रत के लिए शुद्ध नहीं मानते हैं. इसे बनाने की प्रक्रिया में इसे लंबे वक्त तक पानी में रखा जाता है, जिससे कई बार उसमें कीड़े भी पड़ जाते हैं और पानी भी खराब हो जाता है. ऐसे में व्रत के लिए बहुत सारे लोग इसे अच्छा नहीं मानते हैं.