इंटरनेट पर वीडियो देखकर बना डाली 'नेकी की दीवार', 2 हजार जरूरतमंदों तक पहुंचाई मदद
भला हो इस इंटरनेट का जिसकी वजह से 'वॉल ऑफ काइंडनेस' मूवमेंट का वीडियो मध्यप्रदेश के दतिया में बैठे कुछ लड़के देख रहे थे। वीडियो से प्रेरणा लेकर उन लोगों ने भी ठान लिया कि वे भी इसी की तर्ज पर गरीबों की मदद के लिए अभियान चलायेंगे।
'नेकी की दीवार' का ये कॉन्सेप्ट शुरू तो ईरान से हुआ था, लेकिन अब ये दुनिया के कई देशों में फैल गया है। लोग इंटरनेट पर इसे देखकर अपने शहरों में इसकी शुरूआत कर रहे हैं। भारत के भी कई शहरों में अलग-अलग तरह से नेकी की दीवार का आयोजन हो रहा है, कहीं गरीबों में कंबल बांटा जा रहा है, तो कहीं खाने का सामान।
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साढ़े सात लाख की आबादी वाले दतिया जिले में युवाओं की संख्या ढाई लाख है, जो कि जिले की आबादी का 33 प्रतिशत है। जिसमें एक बड़ा वर्ग समाज के लिए कुछ करते हुए अलग-अलग ढंग से काम कर रहा है।
आप सबने इंटरनेट पर एक रंगीन दीवार पर कई हैंगर लगी हुई फोटो जरूर देखी होगी। ये दीवार 'वॉल ऑफ काइंडनेस' कहलाती है। इसकी शुरूआत ईरान में हुई थी, जिसमें लोगों से अपील की गई थी कि इस दीवार पर वे जरूरतमंदों और बेघरों के लिए कपड़े लटकाकर जायें। सोशल मीडिया से की गई इस अपील पर भारी मात्रा में लोग आगे आये और इस नेक काम में अपना-अपना योगदान दिया। भला हो इस इंटरनेट का, कि इस मूवमेंट का वीडियो मध्यप्रदेश के दतिया में बैठे कुछ भी लड़के देख रहे थे, जिससे प्रेरणा लेकर उन लोगों ने ठान लिया कि दतिया में भी वे इसी की तर्ज पर गरीबों की मदद के लिए अभियान चलायेंगे।
साढ़े सात लाख की आबादी वाले दतिया जिले में युवाओं की संख्या ढाई लाख है, जो कि जिले की आबादी का 33 प्रतिशत है। जिसमें एक बड़ा वर्ग समाज के लिए कुछ करने के लिए अलग अलग ढंग से कार्य कर रहा है। खास बात तो ये है कि इन युवाओं ने समाज सेवा के लिए सोशल साइट्स को अपना जरिया बनाया है।
6,000 लोगों ने छोड़ा सामान, 2,000 की हुई आवश्यकता पूर्ति
वॉल ऑफ काइंडनेस की तर्ज पर दतिया के नौजवानों ने नेकी की दीवार बनाई है। पिछले पांच महीने में वे इस दीवार के माध्यम से दो हजार लोगों को जरूरत का सामान मुहैया करा चुके हैं। इस दीवार के सूत्रधार हैं- विकास गुप्ता और लक्की अप्पा।
इन दोनों ने फेसबुक शेयर हुए वीडियो को देखकर आइडिया लिया था। पिछले साल 15 अक्टूबर को उन्होंने अपने दोस्तों के साथ मिलकर नेकी की दीवार की शुरुआत की। करीब छह हजार लोगों ने इस दीवार पर उनके लिए अनुपयोगी हो चुकी वस्तुओं को छोड़ा। वहीं दो हजार से अधिक लोगों ने उन वस्तुओं को लेकर आवश्यकता की पूर्ति की।
आदिवासी बच्चों को पढ़ाने के साथ उनकी जरूरत भी कर रहे हैं पूरी
इसके अलावा शहर के और भी कई नौजवान अपनी ही तरह से समाज की सेवा कर रहे हैं। अपनी रोजी-रोटी चलाने के बाद चार-पांच युवा लड़के मिलकर आदिवासी बच्चों को नि:शुल्क पढ़ा रहे हैं। पिछले छह महीने से आदिवासी बच्चों को नि:शुल्क कोचिंग दी जा रही है, साथ ही इन बच्चों को पढ़ाई के लिए कॉपी, किताब, पेंसिल सहित अन्य सामग्री भी उपलब्ध करा रहे हैं।
रक्तदाताओं का व्हाटसएप ग्रुप कहीं भी उपलब्ध करा देता हैं ब्लड
नेकी की दीवार और आदिवासी बच्चों को मुफ्त में पढ़ाने के अलावा दतिया शहर के नौजवान मिलकर एक और बेहतरीन काम कर रहे हैं। सुनील कनकने और प्रशांत दांगी नाम के दो लड़कों ने अपने साथियों के साथ मिलकर रक्तदान करने की मुहिम शुरू की है। इन सबने रक्तदाताओं का एक व्हाट्सएप ग्रुप बनाया है। खास बात ये है, कि ये युवा सिर्फ दतिया जिले में ही नहीं बल्कि आसपास के झांसी, ग्वालियर, मुरैना, भिंड और भोपाल में भी जिले के लोगों को जरूरत होने पर तत्काल रक्त उपलब्ध कराते हैं।
'नेकी की दीवार' का ये कॉन्सेप्ट शुरू तो ईरान से हुआ था, लेकिन अब दुनिया के कई देशों में फैल गया है। लोग इंटरनेट पर इसे देखकर अपने शहरों में भी इसकी शुरूआत कर रहे हैं। भारत के भी कई शहरों में अलग-अलग तरह से नेकी की दीवार का आयोजन हो रहा है, कहीं गरीबों में कंबल बांटा जा रहा है, तो कहीं खाने का सामान। युवाओं की सोच बदल रही है। अब वे अपने कॅरियर के साथ-साथ समाज के लिए भी कुछ करने का प्रयास कर रहे हैं, जिसके सकारात्मक परिणाम भी सामने आ रहे हैं। इन सबमें सोशल मीडिया का इस्तेमाल करना उनके काम को तेजी दे रहा है और बाकी के लोगों तक भी पहुंचा रहा है।