Brands
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
ADVERTISEMENT
Advertise with us

माता-पिता से मिले संस्कारों की वजह से ही ‘किसन’ बचपन में ही बन गए थे सभी के ‘अन्ना’

अन्ना का अभिभावकों को सन्देश है – “हर परिवार को संस्कार केंद्र बनाना चाहिए।”

माता-पिता से मिले संस्कारों की वजह से ही ‘किसन’ बचपन में ही बन गए थे सभी के ‘अन्ना’

Tuesday August 23, 2016 , 3 min Read

अन्ना हज़ारे सादगी की प्रतिमूर्ति हैं। उनका रहन-सहन, खान-पान और सारे दूसरे कार्य सादगी भरे हैं। वे खादी के कपड़े पहनते हैं। अक्सर सफ़ेद धोती और कुर्ते में दिखाई देते हैं। सिर पर गांधी टोपी उनकी वेश-भूषा की ख़ास पहचान है। शुद्ध शाकाहारी हैं, किसी तरह का नशा कभी किया नहीं है और हमेशा लोगों की मदद के लिए आगे रहते हैं।

अन्ना का कोई भी कार्य क्यों न हो उस पर उनके माता-पिता का असर साफ़ दिखाई देता है। अन्ना के मुताबिक, बचपन से ही उन्होंने अपने माता-पिता से बहुत कुछ सीखा। माता-पिता से मिले संस्कारों ने ही उन्हें अन्याय के खिलाफ लड़ने के लिए प्रेरित किया था।

माँ ने न सिर्फ अन्ना हज़ारे को मास्टर की पिटाई और स्कूल में बदनामी से बचाया था, बल्कि वो सबक दिया था जिससे उनका चरित्र महान और आदर्श बना। अपना झूठ छिपाने के लिए माँ से झूठ बुलवाने के बाद अन्ना ने फिर जीवन में कभी भी झूठ नहीं बोला।

अन्ना ने बताया कि उनकी माँ ने छोटी उम्र से ही उन्हें अच्छे संस्कार देने शुरू कर दिए थे। अन्ना कहते हैं, “मैं जब छोटा था माँ हमेशा सिखाती थी – किसी का बुरा नहीं करना, किसी की चोरी नहीं करना, किसी से झगड़ा नहीं करना और उल्टा समाज के लिए अच्छा करना।” माँ लक्ष्मी बाई ने अन्ना को बचपन में ही ये कहा था – अगर तुम ज्यादा भी नहीं कर पाए तब भी जितना भी कर सकते हो उतना करना और तुम्हें हमेशा दूसरों का दुःख दूर करना चाहिए।”

माँ की इन्हीं बातों का अन्ना के बाल-मन पर बहुत ही गहरा प्रभाव पड़ा। अन्ना के शब्दों में – “माँ से मैंने जो बातें सीखीं उससे मेरा माइंड सोशल माइंड बन गया।”

अन्ना का परिवार ग़रीब था। अन्ना ने भी गरीबी की मार झेली थी। घर-परिवार को चलाने में अपने पति की मदद करने के मकसद से अन्ना की माँ दूसरों के यहाँ बर्तन भी मांजती थीं। अन्ना कहते हैं, “ मेरी माँ के पास ज्यादा पैसे नहीं थे, वो अमीर भी नहीं थी, लेकिन अपने चरित्र को बहुत मजबूती से बनाये रखती थी।”

अन्ना पर उनके पिता बाबू राव का भी गहरा प्रभाव है। अन्ना बचपन में देखते थे कि उनके पिता किस तरह से दिन-रात मेहनत कर रहे हैं। अन्ना ने कई मामलों में अपने पिता का अनुकरण किया है।

अन्ना कहते हैं, “ मेरे पिता सिंपल आदमी थे। सीधे-सादे थे। उन्होंने कभी भी नशा नहीं किया। किसी से झूठ नहीं बोला। कभी भी किसी की संपत्ति हड़पने की कोशिश नहीं की। इस सब का भी मुझपर काफी असर पड़ा। वे ज्यादा पढ़े-लिखे भी नहीं थे। अल्प-शिक्षित थे। मैं उन्हें सुबह से शाम तक देखता था – वो क्या खाते हैं? क्या पीते हैं? कैसे रहते हैं? कैसे चलते हैं ? कैसे घूमते हैं? उनका मुझ पर काफी प्रभाव पड़ा।”

अन्ना इस बात को लेकर तंज़ कसने ने नहीं चूके कि आज-कल कई अभिभावक अपने बच्चों को संस्कारी बनने के लिए ‘संस्कार केंद्र भेज रहे हैं। अन्ना ने कहा, “बहुत लोग हैं, जो कि ये सोचते हैं कि संस्कार केंद्र में भर्ती करने से उनके बच्चों को अच्छे संस्कार मिलेंगे। लेकिन ये गलत हैं। सही संस्कार बच्चों को अपने माता-पिता से मिलते हैं।”

अन्ना का अभिभावकों को सन्देश है – “हर परिवार को संस्कार केंद्र बनाना चाहिए।”