किसानों और ग्राहकों के बीच की दूरी को खत्म कर रहा है बेंगलुरु का यह मार्केट
बेंगलुरु के सरजापुर में स्थित यह एनजीओ पर्यावरण और किसानों की भलाई के लिए तत्पर है। यह पहल एनजीओ भूमि की ट्रस्टी और संस्थापक सदस्य सीता अनंतशिवन के दिमाग की उपज थी। आईआईएम अहमदाबाद से ग्रैजुएट सीता को पर्यावरण से बेहद लगाव है।
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भूमि मार्केट
सबसे अच्छी बात यह है कि किसानों को जहां उनकी सब्जियों का उचित दाम मिलता है वहीं ग्राहकों को बाजार से कम दाम में सामान मिल जाता है। एक तरह से इससे दोनों को बराबर फायदा हो रहा है। इससे बिचौलियों का काम भी खत्म हो गया है।
क्या आप जानते हैं कि आप बाजार से जो सब्जी खरीदते हैं उसका वास्तविक फायदा किसान को मिलता है? अगर आप हां में जवाब देने की सोच रहे हैं तो शायद आप गलत हैं। भारत में किसानों को उनकी फसल का वास्तविक दाम कभी नहीं मिलता। उनसे काफी कम कीमतों पर फसलें खरीदी जाती हैं और फिर बिचौलिए उसे महंगे दाम पर बाजार में बेचते हैं। इस समस्या को दूर करने के लिए बेंगुलुरू में एक मार्केट की शुरुआत हुई है, जिसमें किसान सीधे अपनी सब्जियां और बाकी का सामान ग्राहकों को बेच सकता है। किसानों के हित में काम करने वाले एनजीओ 'भूमि नेटवर्क' की ओर से इस मार्केट का आयोजन होता है।
बेंगलुरु के सरजापुर में स्थित यह एनजीओ पर्यावरण और किसानों की भलाई के लिए तत्पर है। यह पहल एनजीओ भूमि की ट्रस्टी और संस्थापक सदस्य सीता अनंतशिवन के दिमाग की उपज थी। आईआईएम अहमदाबाद से ग्रैजुएट सीता को पर्यावरण से बेहद लगाव है। इसीलिए उन्हें कभी मोटी तनख्वाह वाली कॉर्पोरेट जॉब रास नहीं आई। वह हमेशा प्रकृति के करीब रहकर काम करना चाहती थीं। बेंगलुरू में लगने वाले इस बाजार का नाम भूमि सांते रखा गया है। यहां पर कर्नाटक के कई कई क्षेत्रों से स्थानीय किसान अपनी सब्जियां लेकर आते हैं और सीधे ग्राहकों को बेचते हैं।
इसमें नारियल, ताजी सब्जियां, गुड़ जैसे सामान रहते हैं। सबसे अच्छी बात यह है कि किसानों को जहां उनकी सब्जियों का उचित दाम मिलता है वहीं ग्राहकों को बाजार से कम दाम में सामान मिल जाता है। एक तरह से इससे दोनों को बराबर फायदा हो रहा है। इससे बिचौलियों का काम भी खत्म हो गया है। सरजापुर के भूमि कॉलेज में ही यह मार्केट लगता है। कॉलेज का कैंपस भी काफी खूबसूरत और हरा भरा है। यहां पर सैकड़ों पेड़ लगे हैं और हर वक्त चिड़ियों का बसेरा भी रहता है। इस कॉलेज की स्थापना 2010 में सीता अनंतसिवन ने की थी। यहां पर पर्यावरण और जैविक खेती की पढ़ाई होती है।
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भूमि नेटवर्क की मीडिया प्रभारी आदिल बाशा ने कहा, 'हमारा मकसद ग्राहकों और किसानों के बीच की दूरी को समाप्त करना है। आज का दौर ऐसा हो गया है कि हमारे बच्चों को नहीं पता कि सब्जियां कहां से आती हैं। किसान कैसे काम करता है। इसलिए हम ग्राहकों से कहते हैं कि वे सब्जी लेने आएं तो अपने बच्चों को भी साथ लेकर आएं। अच्छी बात यह है कि शहर के हर कोने से लोग यहां खरीददारी करने के लिए आते हैं।' यह पहल सिर्फ खरीददारी के लिए नहीं शुरू की गई है। बल्कि इससे किसान और शहर में रहने वाला समाज एक साथ जुड़ रहा है और आपस में सीधे बातें कर रहा है।
![बच्चों को खेती से रूबरू करा रहा है भूमि एनजीओ](https://images.yourstory.com/production/document_image/mystoryimage/qv7zd86m-bhumia.jpg?fm=png&auto=format&w=800)
बच्चों को खेती से रूबरू करा रहा है भूमि एनजीओ
आदिल ने कहा कि अधिकतर लोगों को मालूम नहीं होता है कि वो जो खाना खा रहे हैं उसे कहां और कैसे उगाया गया है। उसे उगाने में कितनी मेहनत लगी है। यहां इस बाजार में ग्राहक और किसान दोनों आपस में मिलते हैं और एक दूसरे कीबात सुनते हैं। इससे समाज में जो एक खाई बन गई थी वह कुछ कम हो रही है। एनजीओ के द्वारा समय-समय पर किसानों के लिए वर्कशॉप आयोजित की जाती है। जिसमें सतत विकास, कचरा प्रबंधन जैसे विषय शामिल होते हैं। उन्होंने कहा कि हम चाहते हैं कि आने वाले समय में इस पहल से ज्यादा से ज्यादा किसान जुड़ें और लाभान्वित हों। भूमि नेटवर्क आने वाले समय में कई और शहरों में ऐसी ही पहल शुरू करने की योजना बना रहा है।
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